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Adi Shankaracharya: The Eternal Light of Indian Intellectual Tradition

 आदि शंकराचार्य: भारतीय चेतना के चिरस्थायी प्रकाश भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरती पर कुछ ही ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने समय की धारा को मोड़ा और युगों तक प्रेरणा दी। आदि शंकराचार्य उनमें से एक हैं – एक ऐसी ज्योति, जिसने 8वीं शताब्दी में भारतीय बौद्धिक और आध्यात्मिक जगत को नया जीवन दिया। केरल के छोटे से कालड़ी गाँव में जन्मे इस युवा सन्यासी ने न केवल वेदों के गूढ़ ज्ञान को सरल बनाया, बल्कि उसे घर-घर तक पहुँचाकर भारत को एक सूत्र में बाँध दिया। एक युग का संकट और शंकर का उदय उस समय भारत एक बौद्धिक और धार्मिक उथल-पुथल से गुजर रहा था। अंधविश्वास, पंथों की भीड़ और बौद्ध धर्म के प्रभुत्व ने वैदिक परंपराओं को धूमिल कर दिया था। लोग सत्य की खोज में भटक रहे थे। ऐसे में शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत का झंडा उठाया और कहा – "सत्य एक है, बाकी सब माया है।" उनका यह संदेश सिर्फ दर्शन नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक नया तरीका था। "अहं ब्रह्मास्मि" – मैं ही ब्रह्म हूँ शंकराचार्य का अद्वैत वेदांत सरल लेकिन गहरा है। वे कहते थे कि आत्मा और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं। हमारी आँखों के सामने ...

Left vs. Right: The Rising Global Political Divide

बामपंथ और दक्षिणपंथ की वैश्विक राजनीति में बढ़ती टकराहट चर्चा का केंद्र बनी हुई है। इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने हाल ही में वामपंथी विचारधारा की आलोचना करते हुए दक्षिणपंथी नेताओं की एकजुटता को रेखांकित किया, जिससे यह बहस और तेज हो गई है। यह लेख बामपंथ और दक्षिणपंथ की विचारधाराओं, उनके प्रभाव, वैश्विक और भारतीय राजनीति में उनकी भूमिका, मीडिया के प्रभाव और भविष्य की दिशा का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है। क्या बामपंथी और दक्षिणपंथी नीतियाँ समाज और अर्थव्यवस्था को सही दिशा दे रही हैं, या यह केवल एक राजनीतिक ध्रुवीकरण है? जानें इस लेख में विस्तार से।

यह लेख उन पाठकों के लिए उपयोगी है जो राजनीतिक विचारधाराओं और उनके समकालीन प्रभावों को समझना चाहते हैं।

"Left vs. Right: The Rising Global Political Divide"

बामपंथ बनाम दक्षिणपंथ: वैश्विक राजनीति में बढ़ता टकराव

भूमिका

वर्तमान वैश्विक राजनीति में बामपंथ (Left-wing) और दक्षिणपंथ (Right-wing) की विचारधाराओं के बीच टकराव तेज होता जा रहा है। यह सिर्फ राजनीतिक बहस नहीं, बल्कि समाज, अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित करने वाला मुद्दा बन गया है। हाल ही में, इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी के बयानों ने इस बहस को और तेज कर दिया है, जिसमें उन्होंने वामपंथी नीतियों की आलोचना करते हुए दक्षिणपंथी नेताओं की एकजुटता को रेखांकित किया।

बामपंथ और दक्षिणपंथ की विचारधारा

बामपंथ समानता, सरकारी हस्तक्षेप और कल्याणकारी राज्य की वकालत करता है। इसमें समाजवाद, साम्यवाद और उदारवाद शामिल हैं।

दक्षिणपंथ पारंपरिक मूल्यों, पूंजीवाद और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देता है। यह व्यक्ति की स्वतंत्रता, सीमित सरकार और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा पर जोर देता है।

भारत और वैश्विक राजनीति में बामपंथ-दक्षिणपंथ का प्रभाव

भारत में वामपंथी विचारधारा CPI(M), CPI जैसे दलों में दिखती है, जो समाजवाद और श्रमिक वर्ग के अधिकारों की बात करते हैं।

वहीं, भाजपा और उससे जुड़े संगठन दक्षिणपंथी विचारधारा का समर्थन करते हैं, जो हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और मुक्त बाजार को प्राथमिकता देते हैं।

अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और अन्य देशों में भी वामपंथी और दक्षिणपंथी विचारधाराओं के बीच लगातार संघर्ष देखा जा रहा है।

मेलोनी का बयान और वैश्विक प्रतिक्रिया

इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने हाल ही में अमेरिकी कंजर्वेटिव पॉलिटिकल एक्शन कॉन्फ्रेंस (CPAC) में बामपंथ पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि जब दक्षिणपंथी नेता डोनाल्ड ट्रंप, नरेंद्र मोदी, जेवियर मिलेई और वे स्वयं राष्ट्रवाद, सीमाओं की सुरक्षा और सांस्कृतिक पहचान की बात करते हैं, तो वामपंथी उन्हें लोकतंत्र के लिए खतरा बताते हैं।

मेलोनी ने यह भी आरोप लगाया कि 1990 के दशक में बिल क्लिंटन और टोनी ब्लेयर ने वामपंथी उदारवाद का एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क बनाया, जिसे उस समय लोकतंत्र का समर्थन बताया गया। लेकिन जब दक्षिणपंथी नेता एकजुट होकर वैश्विक सहयोग बढ़ाने की कोशिश करते हैं, तो इसे खतरे के रूप में देखा जाता है।

वर्तमान संदर्भ में बढ़ता टकराव

1. अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ध्रुवीकरण

अमेरिका में जो बाइडेन (डेमोक्रेट - वामपंथ) और डोनाल्ड ट्रंप (रिपब्लिकन - दक्षिणपंथ) के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा इस विभाजन को दर्शाती है।

फ्रांस में इमैनुएल मैक्रों (उदारवादी) और मारिन ले पेन (राष्ट्रवादी दक्षिणपंथ) के बीच संघर्ष इसी विचारधारा का हिस्सा है।

2. मीडिया और सोशल मीडिया का प्रभाव

वामपंथी विचारधारा वाले मीडिया प्लेटफॉर्म अक्सर दक्षिणपंथी नेताओं को कट्टरपंथी, राष्ट्रवादी और अलोकतांत्रिक बताते हैं।

वहीं, दक्षिणपंथी समर्थक मीडिया वामपंथियों को सांस्कृतिक विनाश, अतिसहिष्णुता और वैश्विक षड्यंत्र का हिस्सा मानते हैं।

3. आर्थिक और सामाजिक नीतियों में मतभेद

बामपंथी नीतियाँ: उच्च कर, मुफ्त शिक्षा-स्वास्थ्य, सरकारी नियंत्रण

दक्षिणपंथी नीतियाँ: कर कटौती, निजीकरण, बाजार स्वतंत्रता

भविष्य की दिशा

इस बढ़ते टकराव को देखते हुए यह स्पष्ट है कि वैश्विक राजनीति में बामपंथ और दक्षिणपंथ के बीच संतुलन आवश्यक है। दोनों विचारधाराएँ अपनी जगह महत्वपूर्ण हैं, लेकिन किसी एक का अत्यधिक प्रभाव लोकतांत्रिक व्यवस्था को खतरे में डाल सकता है।

भारत जैसे विविधतापूर्ण लोकतंत्र में इन दोनों विचारधाराओं का संवाद और संतुलन ही सही दिशा तय करेगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी, यह बहस तेज होती रहेगी, लेकिन अंततः समाज और जनता को तय करना होगा कि वे किस दिशा में जाना चाहते हैं।

निष्कर्ष

बामपंथ और दक्षिणपंथ के बीच यह संघर्ष सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक मुद्दों से भी जुड़ा हुआ है। मेलोनी जैसे नेताओं के बयान इस बहस को और तेज कर रहे हैं, जिससे दुनिया में एक नया ध्रुवीकरण देखने को मिल रहा है। इस पूरे विमर्श में लोकतंत्र, सहिष्णुता और बहस की स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण बनी रहनी चाहिए ताकि समाज एक संतुलित और प्रगतिशील दिशा में आगे बढ़ सके।


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✍️ARVIND SINGH PK REWA

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