भारत सरकार ने बजट 2025 में बांग्लादेश को 120 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता देने का निर्णय लिया है। यह राशि पिछले वर्ष की तुलना में स्थिर रही है और इसमें कोई वृद्धि नहीं की गई है। यह निर्णय भारत की "पड़ोसी पहले" (Neighbourhood First) नीति का प्रतिबिंब है, लेकिन इससे कई सवाल भी उठते हैं—क्या यह स्थिरता आर्थिक रणनीति का हिस्सा है, या भारत-बांग्लादेश संबंधों में बदलते समीकरण का संकेत?
भारत-बांग्लादेश संबंधों की पृष्ठभूमि
भारत और बांग्लादेश के संबंध ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ रहे हैं। 1971 के मुक्ति संग्राम में भारत की भूमिका से लेकर वर्तमान में व्यापार और बुनियादी ढांचे में सहयोग तक, दोनों देशों के बीच मजबूत साझेदारी बनी हुई है। भारत बांग्लादेश को सड़क, रेलवे, बंदरगाह, और ऊर्जा परियोजनाओं में सहायता प्रदान करता रहा है।
लेकिन हाल के वर्षों में चीन का बढ़ता प्रभाव और बांग्लादेश की विदेश नीति में संतुलन साधने की कोशिश ने नई चुनौतियाँ खड़ी की हैं। ऐसे में, वित्तीय सहायता को स्थिर रखना भारत का एक कूटनीतिक संकेत हो सकता है।
आर्थिक और कूटनीतिक संदेश
1. सहायता राशि में वृद्धि क्यों नहीं?
भारत की आर्थिक प्राथमिकताएँ अब घरेलू बुनियादी ढांचे और सामाजिक कल्याण योजनाओं पर अधिक केंद्रित हैं।
भारत ने म्यांमार, नेपाल और अन्य पड़ोसी देशों को दी जाने वाली सहायता में भी इसी तरह स्थिरता रखी है।
बांग्लादेश की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था अब बाहरी सहायता पर उतनी निर्भर नहीं है जितनी पहले थी।
2. चीन के बढ़ते प्रभाव का असर?
बांग्लादेश में चीन का निवेश तेजी से बढ़ा है, विशेष रूप से बंदरगाहों, रेलवे, और रक्षा क्षेत्र में। भारत के लिए यह चुनौतीपूर्ण स्थिति है, क्योंकि दक्षिण एशिया में चीन की उपस्थिति भारत की सामरिक स्थिति को प्रभावित कर सकती है। भारत द्वारा वित्तीय सहायता की स्थिर राशि यह संकेत दे सकती है कि भारत बांग्लादेश को स्वायत्त निर्णय लेने के लिए स्थान दे रहा है, लेकिन उसकी नीतियों पर नजर बनाए हुए है।
आगे की राह
बांग्लादेश के साथ भारत को सिर्फ वित्तीय सहायता तक सीमित नहीं रहना चाहिए। व्यापार, सुरक्षा सहयोग, और बुनियादी ढांचा विकास के माध्यम से संबंधों को और मजबूत करना जरूरी है। भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी और बांग्लादेश के साथ कनेक्टिविटी परियोजनाएँ इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।
निष्कर्ष
भारत द्वारा बांग्लादेश को दी जाने वाली 120 करोड़ रुपये की सहायता एक स्थिरता का संकेत है, लेकिन यह बदलते कूटनीतिक समीकरणों को भी दर्शाता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत अपनी आर्थिक और रणनीतिक प्राथमिकताओं को कैसे संतुलित करता है और बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को नई ऊँचाइयों तक ले जाता है।
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