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Adi Shankaracharya: The Eternal Light of Indian Intellectual Tradition

 आदि शंकराचार्य: भारतीय चेतना के चिरस्थायी प्रकाश भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरती पर कुछ ही ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने समय की धारा को मोड़ा और युगों तक प्रेरणा दी। आदि शंकराचार्य उनमें से एक हैं – एक ऐसी ज्योति, जिसने 8वीं शताब्दी में भारतीय बौद्धिक और आध्यात्मिक जगत को नया जीवन दिया। केरल के छोटे से कालड़ी गाँव में जन्मे इस युवा सन्यासी ने न केवल वेदों के गूढ़ ज्ञान को सरल बनाया, बल्कि उसे घर-घर तक पहुँचाकर भारत को एक सूत्र में बाँध दिया। एक युग का संकट और शंकर का उदय उस समय भारत एक बौद्धिक और धार्मिक उथल-पुथल से गुजर रहा था। अंधविश्वास, पंथों की भीड़ और बौद्ध धर्म के प्रभुत्व ने वैदिक परंपराओं को धूमिल कर दिया था। लोग सत्य की खोज में भटक रहे थे। ऐसे में शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत का झंडा उठाया और कहा – "सत्य एक है, बाकी सब माया है।" उनका यह संदेश सिर्फ दर्शन नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक नया तरीका था। "अहं ब्रह्मास्मि" – मैं ही ब्रह्म हूँ शंकराचार्य का अद्वैत वेदांत सरल लेकिन गहरा है। वे कहते थे कि आत्मा और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं। हमारी आँखों के सामने ...

विश्व आर्थिक मंच (WEF) की रिपोर्ट "ग्लोबल साइबरसिक्योरिटी आउटलुक 2025"

 विश्व आर्थिक मंच (WEF) की रिपोर्ट "ग्लोबल साइबरसिक्योरिटी आउटलुक 2025" साइबर सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों और जोखिमों पर एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। रिपोर्ट के अनुसार, तेजी से डिजिटल हो रही दुनिया में साइबर खतरों की गंभीरता और जटिलता बढ़ती जा रही है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

1. भू-राजनीतिक तनाव:

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते तनाव ने साइबर हमलों के खतरे को बढ़ा दिया है।

देश और गैर-राज्यीय तत्वों द्वारा साइबर युद्ध और संवेदनशील डेटा को निशाना बनाना प्रमुख चिंता है।

आर्थिक और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए "रैनसमवेयर" और "स्पाइवेयर" हमलों में वृद्धि हो रही है।

2. अप्रचलित प्रणालियाँ:

कई देशों और संगठनों में पुरानी और कमजोर तकनीकी प्रणालियाँ (legacy systems) हैं, जो उन्नत साइबर खतरों के खिलाफ असुरक्षित हैं।

तकनीकी अपग्रेड में निवेश की कमी जोखिम को और बढ़ा रही है।

3. साइबर सुरक्षा कौशल की कमी:

वैश्विक स्तर पर कुशल साइबर सुरक्षा पेशेवरों की भारी कमी है।

संगठनों में विशेष रूप से छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों (SMEs) में साइबर सुरक्षा जागरूकता और प्रशिक्षण की कमी है।

4. आर्थिक प्रभाव:

साइबर हमलों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को अरबों डॉलर का नुकसान हो रहा है।

साइबर अपराध के बढ़ते मामले व्यापार के लिए गंभीर व्यवधान पैदा कर रहे हैं, खासकर वित्तीय और स्वास्थ्य क्षेत्रों में।

5. साइबर सुरक्षा में निवेश:

रिपोर्ट ने संकेत दिया कि साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता देने वाले देशों और संगठनों को दीर्घकालिक लाभ होगा।

साइबर सुरक्षा में निवेश केवल तकनीकी उपकरणों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें प्रशिक्षित मानव संसाधन, नीति निर्माण, और साइबर सुरक्षा जागरूकता अभियान भी शामिल हैं।

आगे का रास्ता:

1. सार्वजनिक-निजी साझेदारी:

सरकारों और निजी क्षेत्र को मिलकर काम करना होगा, ताकि साइबर सुरक्षा रणनीतियों को मजबूत किया जा सके।

साझा जानकारी और अनुसंधान पर बल देना होगा।

2. वैश्विक सहयोग:

एक समन्वित वैश्विक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय संगठन और समझौते शामिल हों।

साइबर अपराध के लिए कड़े नियम और प्रवर्तन आवश्यक हैं।

3. नए कौशल और जागरूकता:

साइबर सुरक्षा में कौशल विकास पर जोर देने के साथ-साथ शिक्षा प्रणाली में इसे शामिल करना होगा।

कंपनियों और संगठनों को नियमित रूप से अपने कर्मचारियों को साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण देना चाहिए।

4. प्रौद्योगिकी में निवेश:

AI और मशीन लर्निंग जैसे उन्नत तकनीकी समाधानों का उपयोग करके खतरों की पहचान और प्रतिक्रिया को तेज करना होगा।

भारत के लिए संदेश:

भारत जैसे उभरते डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह रिपोर्ट बेहद प्रासंगिक है।

डिजिटलीकरण में तेजी के कारण साइबर खतरों का जोखिम बढ़ा है, विशेषकर महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे जैसे बैंकिंग, स्वास्थ्य और ऊर्जा क्षेत्रों में।

"डिजिटल इंडिया" पहल को सफल बनाने के लिए साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता देना आवश्यक है।

निष्कर्ष:

रिपोर्ट "ग्लोबल साइबरसिक्योरिटी आउटलुक 2025"  यह स्पष्ट करती है कि सुरक्षित डिजिटल भविष्य सुनिश्चित करने के लिए सभी देशों और संगठनों को समन्वित प्रयास करना होगा। भारत के लिए यह एक अवसर है कि वह अपने साइबर सुरक्षा ढांचे को मजबूत करे और इस क्षेत्र में एक वैश्विक नेता बने।


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