भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत आर्थिक सर्वे 2024-25 देश की आर्थिक नब्ज को समझने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। यह सर्वे केवल आंकड़ों का संकलन नहीं, बल्कि यह देश की आर्थिक नीति, उसकी दिशा और उसके संभावित प्रभावों का प्रतिबिंब है। इस वर्ष का सर्वे मिश्रित संकेत दे रहा है—एक ओर विकास दर स्थिर बनी हुई है, तो दूसरी ओर महंगाई में मामूली गिरावट और शेयर बाजार की मजबूती उम्मीदें जगाती हैं। लेकिन क्या यह पूरी तस्वीर है, या कुछ अहम मुद्दे इस चमक के पीछे छिपे हुए हैं?
स्थिर विकास दर: क्या यह पर्याप्त है?
आर्थिक सर्वे के अनुसार, वित्त वर्ष 2025 और 2026 में GDP की वृद्धि दर क्रमशः 6.4% और 6.3-6.8% के बीच रहने का अनुमान है। यह एक सकारात्मक संकेत है, खासकर तब जब वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितताओं से घिरी हुई है। परंतु यह सवाल भी उठता है कि क्या यह विकास दर भारत जैसे विशाल और तेजी से बढ़ते देश की आवश्यकताओं के अनुरूप है? विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत को अगले दशक में एक वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनना है, तो 8% से अधिक की निरंतर वृद्धि दर आवश्यक होगी।
महंगाई में गिरावट: राहत या सतर्कता का संकेत?
खुदरा महंगाई दर में गिरावट, जो अप्रैल-दिसंबर 2024 में 5.4% से घटकर 4.9% रह गई, एक राहतभरी खबर है। लेकिन यह गिरावट मुख्यतः कुछ विशेष कारकों, जैसे खाद्य और ऊर्जा कीमतों में अस्थायी स्थिरता के कारण हो सकती है। यदि वैश्विक तेल कीमतों में उछाल आता है या मानसून कमजोर रहता है, तो खाद्य मुद्रास्फीति फिर से सिर उठा सकती है। इसलिए, सरकार को सतर्क रहकर मूलभूत सुधारों पर ध्यान देना होगा, जिससे यह गिरावट स्थायी बनी रहे।
शेयर बाजार की मजबूती: असल विकास या सट्टेबाजी का खेल?
भारतीय शेयर बाजार ने अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। विदेशी निवेशकों का विश्वास बढ़ा है, और घरेलू निवेशकों की भागीदारी भी अधिक हुई है। लेकिन क्या यह केवल लिक्विडिटी आधारित उछाल है, या असली आर्थिक सुधारों का परिणाम? कई अर्थशास्त्री चेतावनी दे रहे हैं कि बाजार की यह तेजी वास्तविक आर्थिक गतिविधियों से असंगत हो सकती है। यदि इस वृद्धि को आर्थिक सुधारों और औद्योगिक विकास का समर्थन नहीं मिला, तो यह जल्द ही अस्थिर हो सकती है।
चुनौतियां और आगे की राह
हालांकि आर्थिक सर्वे सकारात्मक संकेत देता है, लेकिन कुछ गंभीर चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं:
1. रोजगार संकट: उच्च विकास दर के बावजूद नई नौकरियां अपेक्षित दर से नहीं बढ़ रही हैं।
2. ग्रामीण अर्थव्यवस्था की सुस्ती: कृषि क्षेत्र में आय वृद्धि धीमी बनी हुई है।
3. वैश्विक अनिश्चितताएं: भू-राजनीतिक तनाव और आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएं भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती हैं।
निष्कर्ष: आशा और यथार्थ के बीच संतुलन
आर्थिक सर्वे 2024-25 एक मिश्रित परिदृश्य पेश करता है—जहां विकास की संभावना है, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। सरकार को संरचनात्मक सुधारों, रोजगार सृजन, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने पर ध्यान देना होगा। केवल आंकड़ों में सुधार से नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर बदलाव लाने से ही भारत सशक्त आर्थिक महाशक्ति बन सकता है।
अगला कदम नीति निर्माताओं के हाथ में है—क्या वे सतर्क दृष्टिकोण अपनाएंगे, या लहर के सहारे बहते रहेंगे?
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