2025 में भारतीय नागरिकों का डिपोर्टेशन: सऊदी अरब और संयुक्त राज्य अमेरिका - एक तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य
भूमिका
अंतरराष्ट्रीय प्रवासन भारत की आर्थिक-सामाजिक संरचना का अभिन्न हिस्सा रहा है। खाड़ी देशों से लेकर अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्रों तक, लाखों भारतीय नागरिक रोजगार, शिक्षा और बेहतर अवसरों के उद्देश्य से विदेशों में काम करते हैं। लेकिन प्रवासन का एक कठोर पक्ष भी है — डिपोर्टेशन (निष्कासन), जो प्रायः वीज़ा ओवरस्टे, अवैध रोजगार, दस्तावेज़ी कमी या कानूनी उल्लंघनों के कारण लागू किया जाता है।
भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) द्वारा संसद में 18 दिसंबर 2025 को प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2025 में 81 देशों से 24,600 से अधिक भारतीय नागरिकों को डिपोर्ट किया गया। यह संख्या न केवल वैश्विक स्तर पर प्रवासन-विनियमन की कड़ाई को दर्शाती है, बल्कि अलग-अलग देशों की नीतिगत प्राथमिकताओं की भी झलक दिखाती है।
सामान्य धारणा यह रही है कि डिपोर्टेशन के मामले अधिकतर पश्चिमी देशों—विशेषकर अमेरिका—से सामने आते हैं। किंतु 2025 के आंकड़े इस मिथक को तोड़ते हैं। सऊदी अरब ने इस वर्ष 11,000 से अधिक भारतीयों को डिपोर्ट किया, जबकि इसके मुकाबले संयुक्त राज्य अमेरिका से लगभग 3,800 भारतीय नागरिकों को वापस भेजा गया—जो पिछले पाँच वर्षों में अमेरिका का सर्वाधिक आंकड़ा होते हुए भी सऊदी अरब से काफी कम है।
2025 के प्रमुख डिपोर्टेशन आँकड़े — एक संक्षिप्त झलक
MEA के अनुसार:
- कुल वैश्विक डिपोर्टेशन → 24,600+
- सऊदी अरब → 11,000+ (सबसे अधिक)
- संयुक्त राज्य अमेरिका → ~3,800
- वॉशिंगटन डीसी क्षेत्र → 3,414
- ह्यूस्टन → 234
अन्य उल्लेखनीय देश:
- म्यांमार → 1,591
- मलेशिया → 1,485
- संयुक्त अरब अमीरात (UAE) → 1,469
- बहरीन → 764
- थाईलैंड → 481
- कंबोडिया → 305
छात्र डिपोर्टेशन के मामलों में
यूके, ऑस्ट्रेलिया, रूस और अमेरिका प्रमुख रहे।
ये आँकड़े बताते हैं कि प्रवासन-निगरानी अब बहु-क्षेत्रीय और बहु-आयामी रूप ले चुकी है।
सऊदी अरब से उच्च डिपोर्टेशन के संरचनात्मक कारण
सऊदी अरब में भारतीय प्रवासी समुदाय विश्व में सबसे बड़ा है, जिनमें से बड़ी संख्या निर्माण, घरेलू कार्य, रख-रखाव और सेवाक्षेत्र जैसे कम-कुशल श्रम क्षेत्रों में कार्यरत है। विशेषज्ञों के अनुसार उच्च डिपोर्टेशन के प्रमुख कारण हैं:
- वीज़ा की अवधि से अधिक समय तक रुकना
- बिना वैध परमिट के काम करना
- श्रम नियमों का उल्लंघन
- नियोक्ता से अनुबंध टूटना या कार्यस्थल त्यागना
- छोटे-मोटे सिविल/कानूनी प्रकरण
कई श्रमिक निजी एजेंटों के माध्यम से विदेश जाते हैं, जहाँ धोखाधड़ी, जानकारी की कमी और कानूनी जटिलताओं के चलते वे अनजाने में नियमों का उल्लंघन कर बैठते हैं। हाल के वर्षों में खाड़ी देशों ने श्रम विनियमन और कड़ाई से प्रवर्तन पर विशेष जोर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप डिपोर्टेशन के मामलों में वृद्धि देखी गई है।
अमेरिका का परिदृश्य — अलग नीतिगत दृष्टिकोण
2025 में अमेरिका से हुए करीब 3,800 डिपोर्टेशन मामलों में प्रमुख रूप से शामिल थे:
- वीज़ा ओवरस्टे
- दस्तावेज़ी विसंगतियाँ
- वर्क परमिट शर्तों का उल्लंघन
- अवैध प्रवेश/आप्रवासन प्रयास
यह प्रवृत्ति विशेष रूप से कड़े प्रशासनिक निरीक्षण और दस्तावेज़ जाँच से जुड़ी रही। कई मामले उन क्षेत्रों से जुड़े पाए गए जहाँ अनियमित प्रवासन का दबाव अधिक रहा—जैसे पंजाब, हरियाणा और गुजरात के कुछ हिस्से।
ग़ौरतलब है कि अमेरिका में डिपोर्टेशन का फोकस केवल श्रम नियमों पर नहीं, बल्कि सीमा-सुरक्षा और आप्रवासन प्रवर्तन के व्यापक ढाँचे से जुड़ा है—जो इसे खाड़ी देशों से अलग बनाता है।
समानताएँ, भिन्नताएँ और व्यापक संकेत
भारत के प्रवासी समुदाय के संदर्भ में 2025 के डिपोर्टेशन आँकड़े तीन महत्वपूर्ण तथ्य रेखांकित करते हैं—
-
डिपोर्टेशन का पैटर्न क्षेत्र-विशेष पर निर्भर है
- खाड़ी देशों में → श्रम कानून और नियोक्ता-अनुबंध आधारित प्रवर्तन
- अमेरिका/पश्चिमी देशों में → सीमा नियंत्रण और दस्तावेज़ी सख़्ती
-
कम-कुशल श्रम क्षेत्र अधिक संवेदनशील
प्रवासी सुरक्षा सीधे भर्ती चैनल, कानूनी जागरूकता और नियामकीय पारदर्शिता से जुड़ी है। -
नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता
- विश्वसनीय भर्ती प्रणाली
- प्री-डिपार्चर ओरिएंटेशन
- कानूनी सहायता तंत्र
- प्रवासी अधिकार संरक्षण
निष्कर्ष
2025 के डिपोर्टेशन आँकड़े इस मिथक को तोड़ते हैं कि पश्चिमी देश ही भारतीय प्रवासियों को सर्वाधिक संख्या में निष्कासित करते हैं। वस्तुतः यह प्रवृत्ति श्रम संरचना, प्रवासन नीति और स्थानीय विनियमन के संयोजन का परिणाम है—विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ बड़ी संख्या में भारतीय श्रमिक कार्यरत हैं।
यह परिदृश्य इस दिशा में संकेत देता है कि भारत के लिए अब केवल प्रवासन-प्रोत्साहन नहीं, बल्कि सुरक्षित, कानूनी और अधिकार-आधारित प्रवासन तंत्र को मजबूत करना प्राथमिकता होनी चाहिए। MEA द्वारा डेटा-साझाकरण की पारदर्शिता नीति निर्माताओं, समाजशास्त्रियों और संभावित प्रवासियों—सभी के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ-सामग्री उपलब्ध कराती है।
With The Times of India Inputs
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