Hybrid Threats and State Sovereignty: Lithuania–Belarus Balloon Crisis as a Case Study in Contemporary Geopolitics
(A UPSC Essay-Style Analytical Article)
भूमिका: आधुनिक विश्व व्यवस्था में संप्रभुता की नई परीक्षा
21वीं सदी की अंतरराष्ट्रीय राजनीति ऐसे चरण में प्रवेश कर चुकी है जहाँ युद्ध और शांति की पारंपरिक सीमाएँ धुंधली हो रही हैं। संघर्ष अब केवल गोलाबारी, सैनिक जुटान या सीमा पार आक्रमण तक सीमित नहीं रहा; बल्कि राज्य अपने प्रतिद्वंद्वी को अस्थिर करने के लिए ऐसी रणनीतियों का उपयोग कर रहे हैं जो दिखने में तो असैन्य और मामूली जान पड़ती हैं, परंतु उनके प्रभाव व्यापक, दीर्घकालिक और रणनीतिक होते हैं। इन्हें ही आधुनिक सुरक्षा साहित्य में हाइब्रिड थ्रेट्स कहा जाता है।
यूरोप के बाल्टिक क्षेत्र में 2025 में लिथुआनिया द्वारा घोषित राष्ट्रीय आपातकाल—बेलारूस से आने वाले स्मगलिंग गुब्बारों के कारण—इसी हाइब्रिड युद्ध की एक शिक्षाप्रद मिसाल है। यह प्रकरण दर्शाता है कि संप्रभुता पर आघात हमेशा बमों और मिसाइलों से नहीं होता; कई बार एक साधारण गुब्बारा भी राष्ट्र की सुरक्षा संरचना को चुनौती दे सकता है।
1. हाइब्रिड वारफेयर: सिद्धांत और व्यवहार का संगम
हाइब्रिड युद्ध की अवधारणा अमेरिकी विश्लेषक फ्रैंक हॉफमैन द्वारा दी गई थी, जिसके अनुसार आधुनिक संघर्ष में—
“सैन्य, असैन्य, साइबर, सूचना, आपराधिक और राजनीतिक उपकरणों का सम्मिलित प्रयोग किया जाता है।”
इस ढाँचे में राज्य सीधे संघर्ष से बचते हुए अपने प्रतिद्वंद्वी को उस सीमा तक परेशान करते हैं जहाँ प्रतिक्रिया देना कठिन हो जाए, परंतु परिणाम उनकी रणनीतिक ऊर्जा को क्षीण कर दें।
बेलारूस द्वारा तस्करी गुब्बारों का इस्तेमाल इसी सिद्धांत पर आधारित है—
- कम लागत
- कम जोखिम
- अधिकतम डिसरप्शन
- राजनयिक अस्पष्टता
- जवाबी कार्रवाई की दुविधा
अर्थात्, रणनीतिक लाभ, मगर पारंपरिक युद्ध की कीमत के बिना।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: बाल्टिक क्षेत्र में तनाव की जड़ें
लिथुआनिया, लातविया और एस्टोनिया जैसे बाल्टिक देश रूस और बेलारूस की निकटता के कारण लगातार हाइब्रिड दबाव में रहे हैं।
(क) 2021 का प्रवासन संकट
यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के बाद बेलारूस ने हजारों प्रवासियों को लिथुआनिया की ओर धकेला—एक स्पष्ट दवाब की रणनीति।
इससे
- संसाधनों पर बोझ बढ़ा
- घरेलू राजनीतिक विवाद उत्पन्न हुए
- सीमा सुरक्षा ढाँचा चरमरा गया
(ख) रूस–यूक्रेन युद्ध (2022) और बाल्टिक असुरक्षा
लिथुआनिया ने रूस पर कठोर रुख अपनाया तथा यूक्रेन को सैन्य सहयोग दिया, जिससे बेलारूस–रूस गठबंधन की ओर से उकसावे बढ़े।
(ग) 2025: गुब्बारा उल्लंघन और आपातकाल
2025 में हजारों गुब्बारे सुबह की हवा के साथ बेलारूस से लिथुआनिया में प्रवेश करने लगे।
इनमें प्रायः अवैध सिगरेट, छोटे गैजेट, व कभी-कभी संदिग्ध पेलोड होने की आशंका थी।
इसके परिणामस्वरूप—
- विलनियुस अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट कई बार बंद करना पड़ा
- वायु यातायात बाधित हुआ
- सुरक्षा एजेंसियों की संसाधन-क्षमता पर भारी दबाव पड़ा
लिथुआनिया ने इसे मात्र तस्करी नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर हमला करार दिया।
3. यह केवल तस्करी क्यों नहीं—बल्कि संप्रभुता पर हमला है?
(1) वायु-क्षेत्र उल्लंघन
किसी भी देश का वायु-क्षेत्र उसकी संप्रभुता का अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है।
यदि गुब्बारे आसानी से प्रवेश कर सकते हैं, तो
- ड्रोन
- निगरानी उपकरण
- खतरनाक पेलोड
भी भेजे जा सकते हैं।
यह जोखिम इसलिए बड़ा है क्योंकि गुब्बारे रडार सिस्टम पर कम दृश्यता रखते हैं।
(2) नागरिक उड्डयन की सुरक्षा
हवाई अड्डे का बंद होना न केवल आर्थिक बल्कि सामरिक नुकसान है।
कई हादसे ऐसे “अज्ञात वस्तुओं” के कारण संभावित रूप से हो सकते हैं।
(3) तस्करी व राजनैतिक संकेत
बेलारूस में अवैध सिगरेट उद्योग राजनीतिक संरक्षण में पनपा है।
राज्य की मौन सहमति इसे हाइब्रिड प्रायोजित अपराध का रूप देती है।
(4) NATO की प्रतिक्रिया-क्षमता की परीक्षा
बिना गोली चलाए, बेलारूस ने NATO सदस्य देश को कमजोर दिखाने का प्रयास किया।
यह “costless coercion” की रणनीति है।
4. लिथुआनिया की प्रतिक्रिया: आपातकाल और सैन्य-सहयोग का निर्णय
(क) आपातकाल की घोषणा
सरकार ने आपातकाल घोषित करते हुए कहा कि यह कदम
- वायु सुरक्षा
- नागरिक सुरक्षा
- राज्य संस्थाओं की विश्वसनीयता
को बचाने के लिए आवश्यक है।
(ख) सैन्य को विशेष शक्तियाँ
संसद से मांगे गए अधिकारों में शामिल हैं—
- प्रतिबंधित क्षेत्रों में नागरिक गतिशीलता सीमित करना
- तलाशी व रोक-टोक
- संदिग्धों को रोकना
- आवश्यक बल का नियंत्रित उपयोग
इन अधिकारों की अवधि सीमित है तथा उन पर संसदीय निगरानी भी होगी, जिससे लोकतांत्रिक संतुलन बना रहता है।
(ग) अंतरराष्ट्रीय समर्थन
EU ने इसे “हाइब्रिड अटैक” कहा, जिससे यह मामला यूरोपीय सामूहिक सुरक्षा के दायरे में आ गया।
इससे
- आर्थिक सहायता
- निगरानी तकनीक
- सुरक्षा सहयोग
की संभावना बढ़ जाती है।
5. वैश्विक एवं क्षेत्रीय निहितार्थ
1. हाइब्रिड युद्ध का नया मोड: ‘Low-Cost, High-Impact’
गुब्बारे जैसे सस्ते प्लेटफॉर्म से भी
- राज्य-व्यवस्था बाधित की जा सकती है
- अंतरराष्ट्रीय उड़ानें प्रभावित हो सकती हैं
- राजनीतिक विवाद गहराया जा सकता है
यह भविष्य के युद्धों की दिशा को पुनर्परिभाषित करता है।
2. यूरोपीय सुरक्षा ढांचे की कमजोरी उजागर
यह प्रकरण बताता है कि
- सीमा सुरक्षा
- वायु रक्षा
- हाइब्रिड प्रतिक्रिया प्रणाली
अभी भी पूर्णतः तैयार नहीं हैं।
3. NATO को ‘Grey-Zone Strategy’ तैयार करनी होगी
सैन्य गठबंधन पारंपरिक युद्ध के लिए बना था।
अब उसे—
- साइबर रक्षा
- दुष्प्रचार-रोधी तंत्र
- आर्थिक प्रतिबंध-समन्वय
- गैर-परंपरागत खतरों पर जवाबी रणनीति
अपनानी होगी।
4. भारत के लिए भी सीख
भारत को भी पाकिस्तान व चीन के माध्यम से—
- ड्रोन ड्रॉप
- साइबर हमले
- प्रवासन दबाव
- सूचना युद्ध
जैसे अनेक हाइब्रिड खतरों का सामना करना पड़ता है।
लिथुआनिया का मॉडल,
“सिविल–मिलिट्री इंटीग्रेटेड हाइब्रिड रेस्पॉन्स”,
भारत के लिए उपयोगी संदर्भ बन सकता है।
6. आगे की राह: नीति- सुझाव
(1) तकनीकी आधुनिकीकरण
- AI आधारित रडार
- एंटी-बैलून लेज़र तकनीक
- सीमा पर हाइब्रिड निगरानी केंद्र
- ड्रोन–डोम जैसी संरचना
(2) क्षेत्रीय सहयोग
लातविया, पोलैंड व एस्टोनिया के साथ संयुक्त
“Baltic Hybrid Security Pact”
बनाया जा सकता है।
(3) हाइब्रिड खतरों की अंतरराष्ट्रीय परिभाषा
संयुक्त राष्ट्र स्तर पर ऐसे खतरों की श्रेणीकरण, दण्ड, और सामूहिक प्रतिक्रिया की रूपरेखा बनाई जानी चाहिए।
(4) पारदर्शिता और जनविश्वास
आपातकाल जैसे उपाय तभी सफल होते हैं जब नागरिकों का विश्वास कायम रहे।
नियमित
- ब्रीफिंग
- स्वतंत्र निगरानी
- मानवाधिकार संतुलन
आवश्यक है।
निष्कर्ष: 21वीं सदी का युद्ध—जहाँ एक गुब्बारा भी रणनीतिक हथियार बन सकता है
लिथुआनिया–बेलारूस गुब्बारा संकट हमें यह सिखाता है कि आधुनिक संप्रभुता की परीक्षा केवल युद्धक्षेत्रों में नहीं होती।
हाइब्रिड युद्ध की प्रकृति यह है कि वह समाज के सबसे कमजोर बिंदुओं—सीमा, सूचना, राजनीति, अर्थव्यवस्था—का संयोजित शोषण करता है।
लिथुआनिया ने जिस दृढ़ता और संवैधानिक प्रक्रिया के साथ प्रतिक्रिया दी, वह यह दर्शाता है कि लोकतांत्रिक राष्ट्र हाइब्रिड खतरों के सामने असहाय नहीं हैं। बल्कि वे अनुकूलनशील, संगठित और सामूहिक जिम्मेदारी के साथ अपने हितों की रक्षा कर सकते हैं।
यह घटना एक व्यापक संदेश देती है—
“भविष्य का संघर्ष उन साधनों से लड़ा जाएगा जिन्हें हम आज गैर-गंभीर या मामूली समझते हैं। संप्रभुता की रक्षा अब केवल सीमाओं पर नहीं बल्कि हर उस मोर्चे पर होगी जहाँ राज्य को कमजोर करने का अवसर उपलब्ध हो सकता है।”
आधुनिक भू-राजनीति का यही सत्य है, और इसी को समझकर 21वीं सदी की सुरक्षा रणनीतियाँ गढ़नी होंगी।
With Reuters Inputs
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