पाकिस्तान में सैन्य संरचना का पुनर्गठन: जनरल सैयद आसिम मुनीर और शक्ति के केंद्रीकरण की नई परिघटना
भूमिका: सुरक्षा सुधार या संवैधानिक सैन्यीकरण?
दिसंबर 2025 में पाकिस्तान ने अपनी सैन्य-संवैधानिक संरचना में ऐसा परिवर्तन किया है, जिसने देश के सिविल-मिलिट्री संतुलन पर नई बहस छेड़ दी है। सेना प्रमुख फील्ड मार्शल सैयद आसिम मुनीर को “चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेस (CDF)” के रूप में नियुक्त किया जाना केवल एक प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास में शक्ति के केंद्रीकरण की एक निर्णायक कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। 27वें संविधान संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 243 में किए गए बदलावों ने थलसेना, वायुसेना और नौसेना—तीनों को एक ही सैन्य नेतृत्व के अधीन ला दिया है।
जहाँ सरकार इसे आधुनिक युद्ध की आवश्यकताओं के अनुरूप इंटीग्रेटेड कमांड स्ट्रक्चर बताती है, वहीं आलोचक इसे लोकतांत्रिक संस्थाओं के क्षरण और सैन्य वर्चस्व के संवैधानिक स्थायीकरण के रूप में देख रहे हैं।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: सेना और सत्ता का सहजीवी संबंध
पाकिस्तान का इतिहास इस तथ्य का साक्षी रहा है कि वहाँ सेना केवल एक सुरक्षा संस्था नहीं, बल्कि सत्ता का केंद्रीय स्तंभ रही है। 1958 से लेकर 1999 तक प्रत्यक्ष सैन्य शासन और 2008 के बाद “नियंत्रित लोकतंत्र” ने सिविल-मिलिट्री संबंधों को संरचनात्मक रूप से असंतुलित बनाए रखा।
2008 में जनरल परवेज मुशर्रफ के पतन के बाद यह आशा जगी थी कि सेना औपचारिक रूप से बैरकों तक सीमित होगी, किंतु वास्तविकता में राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति और आंतरिक स्थिरता जैसे विषयों पर उसका प्रभाव बना रहा। मई 2025 के भारत-पाकिस्तान सैन्य टकराव के बाद सैयद आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल की उपाधि दिया जाना इसी ऐतिहासिक प्रवृत्ति का विस्तार प्रतीत होता है।
यह उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के इतिहास में इससे पूर्व केवल जनरल अयूब खान को ही यह रैंक प्राप्त हुई थी—जो स्वयं सैन्य तानाशाही का प्रतीक रहे। इस प्रकार, मुनीर का उदय केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि संस्थागत शक्ति-विस्तार का संकेत देता है।
27वां संविधान संशोधन: संरचना में बदलाव, सत्ता में एकीकरण
नवंबर 2025 में पारित 27वें संविधान संशोधन ने पाकिस्तान की रक्षा व्यवस्था को औपचारिक रूप से पुनर्गठित कर दिया। इस संशोधन के तीन प्रमुख आयाम हैं—
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CDF पद की स्थापना और CJCSC का अंत
अब तक जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी (CJCSC) एक समन्वयात्मक, लगभग प्रतीकात्मक पद था। संशोधन ने इसे समाप्त कर सेना प्रमुख को ही CDF बना दिया, जिससे तीनों सेनाओं पर प्रत्यक्ष संवैधानिक नियंत्रण एक व्यक्ति के हाथ में केंद्रित हो गया। -
कमान, प्रशासन और रणनीति का एकीकरण
CDF के रूप में मुनीर को संचालन, नियुक्ति, रणनीतिक योजना और रक्षा नीति में निर्णायक भूमिका प्राप्त हो गई है। यह वह अधिकार है जो पहले अनौपचारिक रूप से सेना प्रमुख के पास था, किंतु अब संवैधानिक संरक्षण के साथ संस्थागत रूप ले चुका है। -
कार्यकाल और प्रतिरक्षा
पाँच वर्ष का निश्चित कार्यकाल (संभावित रूप से 2030 तक) और फील्ड मार्शल रैंक को दी गई आजीवन आपराधिक प्रतिरक्षा—इन दोनों ने इस पद को लगभग “सुप्रा-कांस्टीट्यूशनल” बना दिया है।
इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय रणनीतिक कमान प्राधिकरण से जुड़े शीर्ष पदों पर भी सेना के प्रभुत्व को औपचारिक रूप से सुनिश्चित किया गया है।
तर्क और औचित्य: आधुनिक युद्ध का हवाला
सरकार और सैन्य नेतृत्व इस पुनर्गठन को 21वीं सदी के युद्ध-स्वरूप से जोड़कर प्रस्तुत कर रहे हैं। साइबर युद्ध, अंतरिक्ष सुरक्षा, ड्रोन-आधारित संघर्ष और त्वरित निर्णय-प्रणाली—इन सबके लिए एकीकृत कमान को आवश्यक बताया जा रहा है।
यह तर्क सैद्धांतिक रूप से आकर्षक अवश्य है, किंतु प्रश्न यह उठता है कि क्या तकनीकी आवश्यकताओं की आड़ में लोकतांत्रिक निगरानी को कमजोर किया जा सकता है? विशेष रूप से तब, जब पाकिस्तान में संसदीय रक्षा-निगरानी पहले से ही सीमित रही है।
आलोचना: लोकतंत्र बनाम सैन्य प्रधानता
विपक्षी दलों, विशेषकर पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI), ने इस संशोधन को “संवैधानिक तख्तापलट” की संज्ञा दी है। उनके अनुसार, यह परिवर्तन न केवल इमरान खान के राजनीतिक दमन की पृष्ठभूमि में आया है, बल्कि यह भविष्य की किसी भी निर्वाचित सरकार को सैन्य संरचना के सामने कमजोर बना देता है।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया और विश्लेषकों ने भी इसे मुशर्रफ युग के बाद सबसे बड़ा शक्ति-संग्रह बताया है। चिंता इस बात की है कि जब सेना को संवैधानिक रूप से सर्वोच्च सुरक्षा प्राधिकारी बना दिया जाता है, तो नागरिक नेतृत्व की भूमिका प्रतीकात्मक भर रह जाती है।
क्षेत्रीय और आंतरिक निहितार्थ
इस पुनर्गठन का प्रभाव केवल पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति तक सीमित नहीं रहेगा। भारत-पाकिस्तान संबंधों, अफगानिस्तान नीति और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) जैसी परियोजनाओं में सैन्य नेतृत्व की बढ़ी हुई भूमिका क्षेत्रीय स्थिरता को भी प्रभावित कर सकती है।
आंतरिक रूप से, यह व्यवस्था अल्पसंख्यकों, मीडिया स्वतंत्रता और न्यायपालिका की स्वायत्तता जैसे मुद्दों पर भी दबाव बढ़ा सकती है, क्योंकि शक्ति-संतुलन अब और अधिक एकांगी हो गया है।
निष्कर्ष: स्थिरता की कीमत पर केंद्रीकरण?
पाकिस्तान में CDF पद की स्थापना और सैयद आसिम मुनीर की नियुक्ति को केवल रक्षा सुधार के रूप में देखना अधूरा विश्लेषण होगा। यह परिवर्तन उस ऐतिहासिक प्रवृत्ति को संस्थागत रूप देता है, जिसमें सेना स्वयं को राज्य के अंतिम संरक्षक के रूप में देखती रही है।
संभव है कि अल्पकाल में यह व्यवस्था निर्णय-क्षमता और सैन्य समन्वय को मजबूत करे, किंतु दीर्घकाल में यह लोकतांत्रिक विकास, नागरिक सर्वोच्चता और राजनीतिक स्थिरता के लिए गंभीर प्रश्न खड़े करती है। पाकिस्तान के इतिहास में शक्ति का अत्यधिक केंद्रीकरण अक्सर संस्थागत टकराव और राजनीतिक संकट को जन्म देता रहा है—और यही इस नवीन सैन्य संरचना का सबसे बड़ा जोखिम है।
With Washington Post Inputs
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