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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Delhi’s Cloud Seeding Experiment 2025: Can Artificial Rain Clean the Capital’s Toxic Air?

दिल्ली में क्लाउड सीडिंग प्रयोग: कृत्रिम बारिश से प्रदूषण नियंत्रण का नया प्रयास या अल्पकालिक समाधान?

प्रस्तावना

दिल्ली की वायु गुणवत्ता अब एक मौसमी संकट नहीं, बल्कि लगभग स्थायी आपदा बन चुकी है। हर वर्ष अक्टूबर-नवंबर के दौरान जब पराली जलाने, ठंडी हवाओं और स्थिर वायुमंडलीय परिस्थितियों का मेल होता है, तो प्रदूषण का स्तर "गंभीर" या "आपातकालीन" श्रेणी में पहुँच जाता है। राजधानी की हवा में घुला यह ज़हर स्वास्थ्य, पर्यावरण और प्रशासन — सभी के लिए चुनौती बन चुका है।
ऐसे में इस वर्ष भाजपा नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार ने एक अभिनव प्रयोग शुरू किया — क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding)। विचार सरल है: यदि प्रकृति बारिश नहीं बरसा रही, तो इंसान विज्ञान के सहारे उसे बरसाने की कोशिश करे — ताकि बारिश हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों को धोकर वायु को साफ कर सके।


क्लाउड सीडिंग क्या है?

सामान्यतः, बादल तब बनते हैं जब हवा में मौजूद जलवाष्प धूल या परागकण जैसे सूक्ष्म कणों पर संघनित होकर जल की बूंदें बनाती हैं। ये बूंदें आपस में टकराकर बड़ी होती जाती हैं और जब उनका भार बढ़ जाता है, तो वे पृथ्वी पर वर्षा के रूप में गिरती हैं।
क्लाउड सीडिंग इसी प्राकृतिक प्रक्रिया में कृत्रिम हस्तक्षेप है — वैज्ञानिक इसमें कुछ विशिष्ट रासायनिक यौगिक (जैसे सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या पोटेशियम आयोडाइड) बादलों में प्रविष्ट करते हैं ताकि जलवाष्प के संघनन की प्रक्रिया को तेज किया जा सके।

दिल्ली में हुए हालिया प्रयोग में IIT कानपुर के सहयोग से एक सेसना 206H विमान का उपयोग किया गया, जिसमें बादलों पर फ्लेयर गन के माध्यम से सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड छोड़े गए। उद्देश्य यह था कि इससे बादलों में संघनन बढ़े और कृत्रिम रूप से वर्षा उत्पन्न हो सके, जो वायु में तैरते प्रदूषक कणों को नीचे गिरा दे।


वैश्विक अनुभव और ऐतिहासिक संदर्भ

क्लाउड सीडिंग कोई नया विचार नहीं है।

  • संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, थाईलैंड और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों ने दशकों से इस तकनीक का उपयोग सूखे से निपटने, जल संरक्षण और वायु प्रदूषण कम करने के लिए किया है।
  • भारत में आखिरी बार लगभग 50 वर्ष पहले इस तरह का प्रयास किया गया था, मुख्यतः कृषि क्षेत्र में वर्षा बढ़ाने के उद्देश्य से।
  • चीन ने बीजिंग ओलंपिक 2008 से पहले कृत्रिम बारिश कराकर धूल और स्मॉग को कम किया था — यह इस तकनीक की सबसे चर्चित सफलता मानी जाती है।

हालाँकि, हर प्रयोग समान रूप से सफल नहीं रहा। इसकी सफलता मौसम की स्थितियों, बादलों की नमी, हवा की दिशा और तापमान पर निर्भर करती है।


दिल्ली प्रयोग की वैज्ञानिक चुनौतियाँ

क्लाउड सीडिंग विशेषज्ञ थारा प्रभाकरन के अनुसार, “सभी बादल सीड करने योग्य नहीं होते। हर स्थिति काम नहीं करेगी।”
मुख्य चुनौतियाँ इस प्रकार हैं:

  1. सही प्रकार के बादलों की आवश्यकता: केवल वे बादल जिनमें पर्याप्त नमी और स्थायित्व होता है, वे ही सीडिंग के लिए उपयुक्त होते हैं।
  2. सटीक समय: यदि बादलों में नमी की मात्रा अधिक या कम हुई, तो सीडिंग बेअसर हो जाती है।
  3. सीडिंग सामग्री की मात्रा और स्थान: बहुत अधिक सिल्वर आयोडाइड से पर्यावरणीय खतरे बढ़ सकते हैं, जबकि कम मात्रा में असर नगण्य रहता है।
    दिल्ली में इस प्रक्रिया के बाद अब तक केवल नोएडा और ग्रेटर नोएडा में हल्की बारिश दर्ज की गई, जिससे इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठे हैं।

पर्यावरणीय और नैतिक बहस

क्लाउड सीडिंग को लेकर पर्यावरणविदों ने कई चिंताएँ उठाई हैं:

  • अल्पकालिक प्रभाव: कृत्रिम बारिश से वायु प्रदूषण अस्थायी रूप से घट सकता है, परंतु प्रदूषण के मूल स्रोत — जैसे वाहन उत्सर्जन, उद्योग, निर्माण धूल और पराली जलाना — यथावत रहते हैं।
  • सिल्वर आयोडाइड का प्रभाव: यह रसायन समुद्री जीवों के लिए विषाक्त पाया गया है। भूमि पर इसके जमाव से मिट्टी और जल स्रोतों की गुणवत्ता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।
  • वर्षा वितरण में असमानता: एक क्षेत्र में कृत्रिम वर्षा कराने से आस-पास के क्षेत्रों में प्राकृतिक वर्षा चक्र बाधित हो सकता है।
  • नैतिक प्रश्न: क्या मानव को प्राकृतिक चक्रों में इस तरह का हस्तक्षेप करने का अधिकार है, जबकि इसके दुष्परिणाम अभी पूरी तरह समझे नहीं गए हैं?

विशेषज्ञ दृष्टिकोण

वैज्ञानिक समुदाय में मतभेद हैं।

  • एक वर्ग इसे “संकट के समय वैकल्पिक उपाय” के रूप में देखता है, जो कुछ दिनों के लिए राहत दे सकता है।
  • दूसरा वर्ग इसे “प्रदूषण नियंत्रण की गलत दिशा में उठाया गया कदम” मानता है, क्योंकि यह प्रदूषण के स्रोतों को नहीं बल्कि उसके परिणामों को लक्ष्य बनाता है।

आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर मनीष शर्मा के अनुसार, “क्लाउड सीडिंग एक तकनीकी प्रयोग है, समाधान नहीं। इसे दीर्घकालिक नीति विकल्प के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।”


दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता

दिल्ली की वायु समस्या का समाधान वर्षा या रसायन से नहीं, बल्कि नीतिगत सुधारों से संभव है।

  • पराली जलाने पर क्षेत्रीय समन्वय: पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के साथ संयुक्त नीति की आवश्यकता है।
  • वाहन उत्सर्जन पर नियंत्रण: सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहन और इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रसार।
  • निर्माण धूल प्रबंधन: निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण तकनीकों का सख्ती से पालन।
  • हरित पट्टियाँ: वायु शोधन के लिए वृक्षारोपण और जैव विविधता का विस्तार।

निष्कर्ष

दिल्ली की क्लाउड सीडिंग पहल एक साहसी वैज्ञानिक प्रयोग है — लेकिन इसे समाधान नहीं, “संकेत” के रूप में देखा जाना चाहिए कि अब सरकारें पारंपरिक उपायों से आगे सोचने लगी हैं।
हालाँकि, जब तक प्रदूषण के मूल स्रोतों पर सख्त कार्यवाही नहीं की जाती, तब तक कृत्रिम बारिश केवल कुछ घंटों की राहत बनकर रह जाएगी।

क्लाउड सीडिंग विज्ञान का प्रयोग है, किंतु स्वच्छ हवा के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, दीर्घकालिक योजना और नागरिक भागीदारी — यही वास्तविक वर्षा है, जिसकी दिल्ली को सबसे अधिक आवश्यकता है।


लेखक टिप्पणी:

क्लाउड सीडिंग जैसे प्रयोग हमें यह सोचने पर विवश करते हैं कि मानव की तकनीकी क्षमता कितनी विकसित हो गई है, परंतु साथ ही यह भी स्मरण कराते हैं कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाए बिना कोई भी विज्ञान स्थायी समाधान नहीं दे सकता।


🧭 Primary Official & Institutional Sources

  1. IIT Kanpur – Department of Civil Engineering

    • Project on Artificial Rain and Cloud Seeding in Delhi NCR (2025)
  2. Ministry of Environment, Forest and Climate Change (MoEFCC), Government of India

    • Reports on Air Pollution Control Measures and AQI Monitoring in Delhi NCR
  3. Delhi Pollution Control Committee (DPCC)

    • Real-time air quality data and special measures on cloud seeding 2025
  4. Central Pollution Control Board (CPCB)

    • National Air Quality Index and Policy Reports (2024–2025)

🌦️ Scientific & Research Sources

  1. Indian Institute of Tropical Meteorology (IITM), Pune

    • Studies on Artificial Rain, Aerosols, and Cloud Microphysics
  2. World Meteorological Organization (WMO)

    • Guidelines for Cloud Seeding and Weather Modification Practices (2023)
  3. NASA Earth Observatory & NOAA Climate Data Center

    • Satellite imagery on pollution dispersion and precipitation chemistry

📰 News & Analytical Sources

  1. The Indian Express – Environment Desk

    • “Delhi conducts first-ever cloud seeding experiment with IIT Kanpur” (October 2025)
  2. The Hindu – Science & Technology Section

    • “Can Cloud Seeding Help Delhi Fight Pollution?” (October 2025)
  3. Down To Earth Magazine (CSE India)

    • Analytical coverage on artificial rain, air quality, and environmental toxicity

⚖️ Policy & Ethical Perspective

  1. United Nations Environment Programme (UNEP)

    • Environmental impact of weather modification techniques
  2. NITI Aayog Reports on Air Pollution & Climate Adaptation (2024–25)

    • Policy recommendations for sustainable urban air management




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