US $11 Billion Arms Sale to Taiwan: Rising Tensions in the Taiwan Strait and US-China Strategic Rivalry
अमेरिका द्वारा ताइवान को 11 अरब डॉलर की हथियार बिक्री: ताइवान स्ट्रेट में उभरता रणनीतिक संकट
भूमिका
18 दिसंबर 2025 को अमेरिका द्वारा ताइवान को लगभग 11.1 अरब डॉलर मूल्य के हथियारों की संभावित बिक्री की घोषणा केवल एक रक्षा सौदा नहीं है, बल्कि यह इंडो–पैसिफिक क्षेत्र में शक्ति-संतुलन, अमेरिका–चीन प्रतिद्वंद्विता और ताइवान प्रश्न की संवेदनशीलता को एक बार फिर केंद्र में ले आई है। यह अब तक का सबसे बड़ा अमेरिकी हथियार पैकेज है, जिसने ताइवान स्ट्रेट में पहले से मौजूद तनाव को और तीखा बना दिया है।
यह घटना उस भू-राजनीतिक वास्तविकता को उजागर करती है जिसमें ताइवान केवल एक द्वीप नहीं, बल्कि वैश्विक रणनीति, तकनीकी आपूर्ति शृंखलाओं और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के भविष्य का प्रतीक बन चुका है।
हथियार सौदे का सामरिक महत्व
इस प्रस्तावित पैकेज में शामिल हथियार केवल पारंपरिक सैन्य शक्ति का विस्तार नहीं करते, बल्कि ताइवान की असममित युद्ध (Asymmetric Warfare) रणनीति को मजबूती प्रदान करते हैं।
- HIMARS और ATACMS मिसाइलें ताइवान को लंबी दूरी से सटीक प्रहार की क्षमता देती हैं, जिससे चीनी लैंडिंग या सैन्य जमावड़े को पहले ही चरण में बाधित किया जा सकता है।
- M109A7 सेल्फ-प्रोपेल्ड हॉविट्जर आधुनिक युद्धक्षेत्र में गतिशीलता और निरंतर फायर सपोर्ट सुनिश्चित करते हैं।
- जेवलिन और TOW एंटी-टैंक मिसाइलें संभावित उभयचर (amphibious) हमले की स्थिति में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।
- लोइटरिंग म्यूनिशन ड्रोन आधुनिक युद्ध के उस स्वरूप को दर्शाते हैं, जिसमें तकनीक और नेटवर्क-केंद्रित युद्ध निर्णायक हो चुके हैं।
यूक्रेन युद्ध में HIMARS की प्रभावशीलता ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सीमित संसाधनों वाला देश भी सही तकनीक के माध्यम से एक बड़े सैन्य बल को रोक सकता है—और यही मॉडल ताइवान के लिए अपनाया जा रहा है।
ताइवान की प्रतिक्रिया: सुरक्षा और आत्मविश्वास
ताइवान के नेतृत्व ने इस सौदे को निरोधक क्षमता (Deterrence) के सुदृढ़ीकरण के रूप में देखा है। राष्ट्रपति लाई चिंग-ते के प्रशासन के लिए यह सौदा न केवल सैन्य सुरक्षा, बल्कि राजनीतिक संकेत भी है कि अमेरिका ताइवान की रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से पीछे नहीं हट रहा।
हाल ही में प्रस्तावित 40 अरब डॉलर के विशेष रक्षा बजट के साथ यह स्पष्ट है कि ताइवान अब केवल कूटनीतिक समर्थन पर निर्भर नहीं रहना चाहता, बल्कि स्वयं को एक सक्षम और आत्मनिर्भर रक्षा इकाई के रूप में स्थापित करना चाहता है।
चीन की तीखी प्रतिक्रिया: संप्रभुता बनाम शक्ति राजनीति
चीन ने इस हथियार बिक्री को अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर सीधा हमला बताया है। बीजिंग के लिए ताइवान मुद्दा केवल विदेश नीति का विषय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता, कम्युनिस्ट पार्टी की वैधता और ऐतिहासिक पुनर्मिलन से जुड़ा प्रश्न है।
चीन का तर्क है कि अमेरिका की यह कार्रवाई:
- “एक चीन सिद्धांत” का उल्लंघन है,
- ताइवान में अलगाववादी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित करती है,
- और ताइवान स्ट्रेट में सैन्य टकराव की आशंका को बढ़ाती है।
इस पृष्ठभूमि में चीन द्वारा सैन्य अभ्यास, कूटनीतिक दबाव और आर्थिक साधनों के उपयोग की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
अमेरिका की रणनीति: संतुलन या उकसावा?
अमेरिका आधिकारिक रूप से “एक चीन नीति” का समर्थन करता है, लेकिन ताइवान रिलेशंस एक्ट (1979) के तहत वह ताइवान को आत्मरक्षा के साधन उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। यही द्वंद्व अमेरिकी नीति का मूल है—न तो ताइवान की स्वतंत्रता की खुली घोषणा, न ही उसे असुरक्षित छोड़ना।
ट्रंप प्रशासन के दूसरे कार्यकाल में यह दूसरा बड़ा हथियार सौदा संकेत देता है कि अमेरिका:
- चीन के सैन्य विस्तार को चुनौती देना चाहता है,
- इंडो–पैसिफिक में अपने सहयोगियों को आश्वस्त करना चाहता है,
- और ताइवान को “रणनीतिक संपत्ति” के रूप में देखता है।
कांग्रेस में इस सौदे को द्विदलीय समर्थन मिलने की संभावना इसे लगभग तयशुदा बनाती है।
क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव
यह हथियार बिक्री केवल अमेरिका–चीन–ताइवान तक सीमित नहीं है। इसका प्रभाव:
- जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे क्षेत्रीय खिलाड़ियों की सुरक्षा गणनाओं पर पड़ेगा,
- वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं, विशेषकर सेमीकंडक्टर उद्योग, की स्थिरता से जुड़ा है,
- और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में शक्ति संतुलन के प्रश्न को और जटिल बनाता है।
यदि कूटनीतिक संवाद कमजोर पड़ता है, तो ताइवान स्ट्रेट भविष्य में किसी बड़े संघर्ष का केंद्र बन सकता है।
निष्कर्ष
अमेरिका द्वारा ताइवान को 11 अरब डॉलर की हथियार बिक्री एक ओर जहां निरोधक क्षमता और सुरक्षा आश्वासन का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर यह क्षेत्रीय अस्थिरता और रणनीतिक टकराव की आशंका को भी बढ़ाती है।
दीर्घकालिक शांति केवल सैन्य संतुलन से नहीं, बल्कि संवाद, विश्वास-निर्माण और बहुपक्षीय कूटनीति से ही संभव है। अन्यथा, ताइवान स्ट्रेट 21वीं सदी की सबसे खतरनाक भू-राजनीतिक दरार बन सकता है—जिसका प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ेगा।
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