भारतीय रुपया का अवमूल्यन: भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की अनुपस्थिति में अर्थव्यवस्था की नई परीक्षा
भूमिका: एक मुद्रा, अनेक संकेत
16 दिसंबर 2025 को भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 91 के स्तर को पार करते हुए अपने अब तक के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया। यह गिरावट केवल एक विनिमय दर की खबर नहीं है, बल्कि यह वैश्विक भू-आर्थिक तनाव, व्यापार कूटनीति की विफलता, पूंजी प्रवाह की अस्थिरता और उभरती अर्थव्यवस्थाओं की सीमाओं को उजागर करने वाला संकेतक है।
विशेष रूप से भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की अनुपस्थिति ने इस अवमूल्यन को एक नीतिगत प्रश्न में बदल दिया है—क्या भारत वैश्विक व्यापार व्यवस्था में रणनीतिक रूप से पिछड़ रहा है?
रुपये के अवमूल्यन का वैश्विक-घरेलू संदर्भ
रुपये की कमजोरी को केवल घरेलू आर्थिक कारकों से समझना अधूरा होगा। वर्ष 2025 वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए संरक्षणवाद की वापसी और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं का वर्ष रहा है।
- अमेरिका द्वारा गैर-FTA देशों पर उच्च टैरिफ
- वैश्विक पूंजी का सुरक्षित डॉलर परिसंपत्तियों की ओर पलायन
- फेडरल रिजर्व की सख्त मौद्रिक नीति
- एशियाई मुद्राओं पर समग्र दबाव
इन सभी के बीच भारत, जो अब भी अमेरिका के साथ किसी औपचारिक व्यापार समझौते से बाहर है, अपेक्षाकृत अधिक असुरक्षित दिखाई देता है।
अवमूल्यन के संरचनात्मक कारण
1. भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की अनुपस्थिति: रणनीतिक चूक?
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, फिर भी दोनों देशों के बीच कोई व्यापक द्विपक्षीय व्यापार समझौता नहीं है।
2025 में अमेरिकी प्रशासन द्वारा भारतीय उत्पादों पर 50% तक टैरिफ लगाने से:
- भारतीय निर्यात की लागत बढ़ी
- निर्यात-उन्मुख उद्योगों की प्रतिस्पर्धा घटी
- निवेशकों के लिए नीति-अनिश्चितता बढ़ी
यह स्थिति दर्शाती है कि रणनीतिक साझेदारी और व्यापार साझेदारी के बीच अंतर भारत के लिए महंगा पड़ रहा है।
2. विदेशी पूंजी का निरंतर बहिर्वाह: विश्वास का संकट
2025 में:
- FII द्वारा इक्विटी से लगभग 18 अरब डॉलर की निकासी
- बॉन्ड मार्केट से भी तेज बहिर्वाह
इसके कारण:
- डॉलर की मांग में वृद्धि
- रुपये पर निरंतर दबाव
- शेयर बाजार में अस्थिरता
यह प्रवृत्ति बताती है कि वैश्विक निवेशक भारत को अब भी उच्च जोखिम-उच्च रिटर्न बाजार के रूप में देख रहे हैं, न कि स्थिर सुरक्षित गंतव्य के रूप में।
3. व्यापार घाटा और आयात-निर्भर विकास मॉडल
हालांकि भारत का व्यापार घाटा नवंबर 2025 में कुछ कम हुआ, लेकिन:
- कच्चा तेल
- सोना
- रक्षा और उच्च-प्रौद्योगिकी आयात
पर निर्भरता बनी हुई है। कमजोर रुपया इन आयातों को और महंगा बनाता है, जिससे चालू खाता संतुलन पर दबाव पड़ता है।
4. RBI की “प्रबंधित सहनशीलता” नीति
भारतीय रिजर्व बैंक ने इस बार आक्रामक हस्तक्षेप से दूरी बनाए रखी है। लगभग 687 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार होने के बावजूद RBI ने संकेत दिया है कि:
- अत्यधिक हस्तक्षेप विकास को नुकसान पहुंचा सकता है
- बाजार को सीमित रूप से समायोजन की अनुमति देना बेहतर है
यह नीति रुपये को बचाने की बजाय अर्थव्यवस्था को संतुलित रखने पर केंद्रित है।
अवमूल्यन के बहुआयामी प्रभाव
सकारात्मक पहलू: निर्यात और प्रतिस्पर्धा
कमजोर रुपया:
- IT, फार्मा, रसायन, धातु जैसे क्षेत्रों को लाभ
- निर्यातकों की आय में वृद्धि
- रोजगार-उन्मुख क्षेत्रों को सहारा
यह अल्पकाल में व्यापार संतुलन सुधारने में सहायक हो सकता है।
नकारात्मक प्रभाव: महंगाई और वित्तीय दबाव
- आयातित मुद्रास्फीति का जोखिम
- ऊर्जा और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की लागत में वृद्धि
- बैंकिंग सेक्टर पर NPA का संभावित दबाव
हालांकि वर्तमान CPI मुद्रास्फीति कम है, लेकिन रुपये की निरंतर गिरावट भविष्य में जोखिम पैदा कर सकती है।
क्या यह आर्थिक कमजोरी का संकेत है?
महत्वपूर्ण यह है कि:
- GDP वृद्धि दर 8% से ऊपर
- मजबूत घरेलू मांग
- डिजिटल अर्थव्यवस्था और इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश में तेजी
इससे स्पष्ट है कि रुपये का अवमूल्यन आर्थिक संकट का नहीं, बल्कि वैश्विक पुनर्संतुलन का संकेत है।
आगे की राह: नीति-स्तर पर क्या आवश्यक?
- भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को प्राथमिकता
- निर्यात विविधीकरण और मूल्य-संवर्धन
- दीर्घकालिक FDI को आकर्षित करने हेतु स्थिर नीति
- ऊर्जा आयात निर्भरता कम करना
- रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण (INR trade settlement)
निष्कर्ष: संकट नहीं, चेतावनी
भारतीय रुपये का वर्तमान अवमूल्यन किसी आंतरिक आर्थिक विफलता का परिणाम नहीं, बल्कि यह एक नीतिगत चेतावनी है।
यदि भारत वैश्विक व्यापार व्यवस्था में अपनी भूमिका को केवल रणनीतिक साझेदारी तक सीमित रखेगा और व्यापार कूटनीति को प्राथमिकता नहीं देगा, तो ऐसी मुद्रा-अस्थिरता बार-बार सामने आएगी।
रुपया आज केवल कमजोर नहीं हुआ है—वह नीति-निर्णयकर्ताओं से तेज़, स्पष्ट और साहसिक आर्थिक कूटनीति की मांग कर रहा है।
संदर्भ: Reuters, Bloomberg, Hindustan Times, The Economic Times आदि से प्राप्त नवीनतम रिपोर्ट्स, दिसंबर 2025
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