सागरीय संप्रभुता और क्षेत्रीय सुरक्षा: दिसंबर 2025 में भारतीय तटरक्षक द्वारा पाकिस्तानी मछली पकड़ने वाले पोत की गिरफ्तारी का विश्लेषण
सारांश (Abstract)
हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) तेजी से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य और विषम सुरक्षा चुनौतियों का केंद्र बन रहा है। 11 दिसंबर 2025 को भारतीय तटरक्षक बल (ICG) ने भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में अवैध रूप से सक्रिय एक पाकिस्तानी मछली पकड़ने वाले पोत को पकड़कर उसके 11 सदस्यीय चालक दल को हिरासत में लिया। यह घटना भले ही एक नियमित समुद्री कार्रवाई प्रतीत होती है, परंतु यह समुद्री सीमा उल्लंघन, अवैध मछली पकड़ने, घटते समुद्री संसाधनों और भारत-पाकिस्तान समुद्री संबंधों में संरचनात्मक तनाव को उजागर करती है। यह लेख समुद्री कानून, पर्यावरणीय सुरक्षा, भू-राजनीति और समुद्री शासन के बहुआयामी दृष्टिकोण से इस घटना का विश्लेषण करते हुए यह तर्क देता है कि स्थायी समाधान कठोर निगरानी के साथ-साथ क्षेत्रीय सहयोग, तकनीकी नवाचार और पर्यावरण-आधारित प्रबंधन से ही संभव है।
परिचय
अरब सागर भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए न केवल आर्थिक संसाधनों का केंद्र है, बल्कि संप्रभुता, सुरक्षा और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का संवेदनशील क्षेत्र भी है। संयुक्त राष्ट्र समुद्री क़ानून (UNCLOS) के अनुसार भारत को अपनी 200 समुद्री मील की EEZ सीमा में संसाधनों और सुरक्षा पर विशेष अधिकार प्राप्त हैं।
इसी संदर्भ में दिसंबर 2025 में भारतीय तटरक्षक द्वारा एक पाकिस्तानी पोत की गिरफ्तारी केवल एक सीमा उल्लंघन नहीं बल्कि व्यापक समुद्री चुनौतियों का संकेत भी है। गुजरात तट से लगभग 50 समुद्री मील दूर, ICG की निगरानी प्रणाली ने एक संदिग्ध पोत की गतिविधि दर्ज की। बोर्डिंग के बाद पता चला कि पोत पाकिस्तानी था और चालक दल के सदस्य भारतीय EEZ में अवैध मछली पकड़ने में लगे हुए थे।
बार-बार होने वाली ऐसी घटनाएँ समुद्री सुरक्षा, मत्स्य संसाधन प्रबंधन और द्विपक्षीय विश्वास के बीच जटिल संबंधों को उजागर करती हैं।
समुद्री सीमा उल्लंघनों का संरचनात्मक परिप्रेक्ष्य
1. समुद्री संसाधनों की कमी और पारिस्थितिक दबाव
पाकिस्तान के तटीय जल में:
- अत्यधिक दोहन,
- अवैध जाल तकनीकों,
- औद्योगिक प्रदूषण,
- और तापमान वृद्धि
की वजह से मछली भंडार तेजी से घटे हैं। परिणामस्वरूप, कई पाकिस्तानी मछुआरे बेहतर पकड़ के लिए भारतीय जलक्षेत्र की ओर बढ़ते हैं। यह प्रवृत्ति पर्यावरणीय संकट और आजीविका संकट दोनों से प्रेरित है।
2. तटीय समुदायों की सामाजिक-आर्थिक विवशता
सिंध और बलूचिस्तान के अधिकांश मछुआरे अत्यधिक गरीबी, ईंधन महंगाई और जर्जर नौका प्रौद्योगिकी जैसी समस्याओं से जूझते हैं। नेविगेशन सिस्टम के अभाव के कारण वे अनजाने में या जानबूझकर समुद्री सीमा पार कर जाते हैं।
3. भारत की सुरक्षा चिंताएँ
भारत की दृष्टि में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले पोत केवल आर्थिक गतिविधि से जुड़े नहीं होते, बल्कि:
- जासूसी,
- तस्करी,
- और संभावित आतंकवादी नेटवर्क
के लिए भी प्रयोग किए जा सकते हैं। इसलिए ICG हर घटना को अत्यधिक सतर्कता के साथ संभालता है।
कानूनी विश्लेषण
UNCLOS के अनुच्छेद 73 के अनुसार तटीय राष्ट्र को अधिकार है कि वह:
- विदेशी पोतों की तलाशी ले,
- उन्हें हिरासत में ले,
- और आर्थिक दंड लगाए।
भारत यह प्रक्रिया Maritime Zones of India Act, 1976 के अंतर्गत संचालित करता है। दोष सिद्ध होने पर:
- भारी जुर्माना,
- पकड़े गए पोत की जब्ती
संभव है।
मानवीय स्तर पर यह स्थिति संवेदनशील होती है क्योंकि कई मछुआरे निर्दोष होते हैं, परंतु कानूनी व राजनयिक प्रक्रियाओं की वजह से महीनों तक हिरासत में रहते हैं।
दिसंबर 2025 की घटना क्यों महत्वपूर्ण है?
1. भारत की बढ़ती समुद्री निगरानी क्षमता
रडार चेन, सैटेलाइट मॉनिटरिंग और AIS प्रणालियों के कारण ICG की डोमेन अवेयरनेस पहले से कहीं अधिक मजबूत है।
2. 2025 में सीमा उल्लंघनों में उल्लेखनीय वृद्धि
इस वर्ष पाकिस्तानी नौकाओं द्वारा EEZ उल्लंघन में लगभग 15% वृद्धि देखी गई, जो संसाधन संकट और प्रशासनिक शिथिलता का संकेत है।
3. द्विपक्षीय तनाव का संदर्भ
भारत-पाकिस्तान संबंध कमजोर स्थिति में हैं, ऐसे में समुद्री घटनाएँ राजनीतिक रूप से संवेदनशील बन जाती हैं।
4. समुद्री पारिस्थितिकी का संकट
IUU (Illegal, Unreported and Unregulated) fishing दोनों देशों के समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और आजीविका पर गहरा असर डालती है।
भू-राजनीतिक और रणनीतिक निहितार्थ
1. भारत की समुद्री संप्रभुता की दृढ़ता
ICG की त्वरित कार्रवाई यह संदेश देती है कि भारत अपने EEZ में किसी भी प्रकार की अवैध गतिविधि को सहन नहीं करेगा।
2. पाकिस्तान के तटीय प्रबंधन की सीमाएँ
कमजोर नियमन, पुरानी मत्स्य तकनीक और निवेश की कमी के कारण पाकिस्तानी तटीय समुदाय लगातार असुरक्षित स्थिति में हैं।
3. मानवीय और राजनीतिक जटिलताएँ
हिरासत में लिए गए मछुआरे अक्सर राजनीतिक सौदों और राजनयिक प्रक्रियाओं के बीच फँस जाते हैं।
4. जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय सुरक्षा
जलवायु परिवर्तन से मछलियों के प्रवास पैटर्न बदल रहे हैं, जिससे सीमा विवाद भविष्य में और बढ़ सकते हैं।
नीतिगत सिफारिशें
1. भारत-पाकिस्तान समुद्री हॉटलाइन का पुनर्जीवन
रियल-टाइम संचार मछुआरों की तात्कालिक रिहाई और गलतफहमियों को कम कर सकता है।
2. तकनीकी समाधान
- जीपीएस अनिवार्यीकरण,
- सैटेलाइट ट्रैकिंग,
- AI आधारित समुद्री निगरानी
सीमा उल्लंघन काफी कम कर सकते हैं।
3. मानवीय मानक
- त्वरित कानूनी सुनवाई,
- नियमित कांसुलर पहुँच,
- पुनर्वास योजनाएँ
मछुआरों की पीड़ा घटाएँगी।
4. IORA आधारित सहयोग
हिंद महासागर रिम एसोसिएशन के तहत संयुक्त गश्त और डेटा साझा करना दोनों देशों के लिए लाभकारी होगा।
5. समुद्री संरक्षण आधारित समाधान
- समुद्री अभयारण्यों (MPAs) का विस्तार,
- सतत मछली पकड़ने की सीमा,
- तटीय पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन
जैसी नीतियाँ संसाधनों पर दबाव कम कर सकती हैं।
निष्कर्ष
दिसंबर 2025 की घटना भारत-पाकिस्तान समुद्री संबंधों में निहित कई जटिलताओं को उजागर करती है। यह केवल अवैध मछली पकड़ने का मामला नहीं बल्कि पर्यावरणीय संकट, आजीविका असुरक्षा, भूराजनीतिक अविश्वास और सुरक्षा चिंताओं का सम्मिलित परिणाम है। भारत की EEZ सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा आवश्यक है, परंतु दीर्घकालिक समाधान संवाद, सहयोग और सतत समुद्री प्रबंधन में निहित हैं।
हिंद महासागर को प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र नहीं बल्कि साझा सुरक्षा और संरक्षित संसाधनों का क्षेत्र बनाना अब समय की अनिवार्यता है।
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