Deepavali Joins UNESCO Intangible Heritage List: Global Recognition of India’s Festival of Lights and Its Cultural, Spiritual, and Social Significance
The Inscription of Deepavali on UNESCO’s Representative List of the Intangible Cultural Heritage of Humanity: A Milestone for Global Cultural Recognition
Introduction
तेज़ी से वैश्वीकृत होती दुनिया में परंपरागत सांस्कृतिक पहचानों का क्षरण एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। ऐसे समय में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible Cultural Heritage—ICH) को संरक्षित करने का प्रयास न केवल समुदायों की सांस्कृतिक स्मृतियों को सुरक्षित रखता है, बल्कि मानवता की साझा विरासत को भी मजबूती प्रदान करता है। 2003 के “अमूर्त सांस्कृतिक विरासत संरक्षण” संबंधी कन्वेंशन के तहत बनाई गई Representative List इसी उद्देश्य की पूर्ति करती है।
10 दिसंबर 2025 को नई दिल्ली स्थित लाल किले में आयोजित 20वीं अन्तर-सरकारी समिति की बैठक के दौरान दीपावली—विश्वभर में ‘Festival of Lights’ के रूप में विख्यात—को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की इस प्रतिष्ठित सूची में शामिल किया गया। UNESCO के आधिकारिक X (पूर्व Twitter) हैंडल पर “New inscription on the #IntangibleHeritage List: Deepavali, #India. Congratulations!” संदेश के साथ इस निर्णय की घोषणा की गई। यह उपलब्धि केवल भारत के लिए गौरव का विषय नहीं है, बल्कि यह उस सांस्कृतिक भावना—प्रकाश, आशा और सद्भाव—का वैश्विक सम्मान है जो दीपावली को सार्वभौमिक बनाती है। इसी बैठक में घाना का अडोवा नृत्य, जॉर्जिया का बहुस्वर गायन, कांगो के लुबा कुल्वे अनुष्ठान, इथियोपिया का तिमकात पर्व और मिस्र की पारंपरिक ‘तहतीब’ कला भी सूचीबद्ध की गईं, जो विश्व सांस्कृतिक विविधता की समृद्ध बुनावट को दर्शाती हैं।
यह लेख दीपावली के सांस्कृतिक सार, इसके UNESCO में शामिल होने की प्रक्रिया तथा इस निर्णय के वैश्विक सांस्कृतिक संरक्षण पर व्यापक प्रभावों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
The Cultural and Historical Essence of Deepavali
संस्कृत के दीप (दीया) और आवलि (श्रृंखला) शब्दों से निर्मित दीपावली का शाब्दिक अर्थ है—दीयों की पंक्ति। लेकिन इसके सांस्कृतिक अर्थ इससे कहीं गहरे हैं। यह अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव है। यह न केवल हिंदुओं द्वारा बल्कि जैन, सिख और बौद्ध समुदायों द्वारा भी अपने-अपने अर्थों में मनाया जाने वाला बहु-आयामी सांस्कृतिक पर्व है।
परंपरागत रूप से पाँच दिनों तक चलने वाला यह त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को केंद्र में रखकर मनाया जाता है। रामायण के अनुसार भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या वापसी का उत्सव दीपावली के रूप में मनाया गया। महाभारत परंपरा इसे पांडवों की वापसी से जोड़ती है। जैन मत में यह भगवान महावीर के निर्वाण का दिवस है, जबकि सिख परंपरा में इसे बंदी छोड़ दिवस के रूप में स्मरण किया जाता है, जब गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर किले से रिहा किया गया।
दीपावली केवल धार्मिक उत्सव नहीं; यह सामाजिक एकता का वह क्षण है जिसमें आडंबर, विभाजन और सामाजिक श्रेणियाँ धुंधली पड़ जाती हैं। घरोँ की सफ़ाई, मिट्टी के दीयों का प्रकाश, रंगोली, मिठाइयाँ, उपहार-वितरण, लक्ष्मी-पूजन और सामूहिक आतिशबाज़ी—ये सभी क्रियाएँ पर्व को सामूहिक आनंद और आध्यात्मिक प्रतीकवाद से जोड़ती हैं। आधुनिक मानवशास्त्र (Anthropology) की दृष्टि से यह परंपरा ‘communitas’ का वह क्षण रचती है जब समाज का प्रत्येक सदस्य स्वयं को एक बड़ी सांस्कृतिक इकाई का हिस्सा महसूस करता है।
विश्वभर की प्रवासी भारतीय बस्तियों में दीपावली का अनुकूलन इसकी जीवंतता को और प्रमाणित करता है—लंदन के ट्राफलगर स्क्वायर की जगमगाहट, न्यूयॉर्क की रंग-बिरंगी परेड, सिंगापुर की ‘लिटिल इंडिया’ की सजावट—ये दर्शाते हैं कि दीपावली बदलती परिस्थितियों में भी अपनी आत्मा को अक्षुण्ण रखती है।
UNESCO Inscription: Process and Significance
UNESCO की ICH सूची में किसी तत्व का शामिल होना एक कठोर और बहु-स्तरीय प्रक्रिया से होकर गुजरता है। भारत के संस्कृति मंत्रालय ने 2023 में दीपावली के नामांकन (Nomination Dossier) को प्रस्तुत किया था, जिसे विशेषज्ञ मूल्यांकन निकाय ने गहन समीक्षा के बाद समिति के समक्ष रखा। समिति ने पाया कि—
- दीपावली जीवित और विकसनशील सांस्कृतिक परंपरा है,
- पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होने वाले अनुष्ठानों (lamp lighting, rangoli, community feasts) के कारण इसकी सामाजिक उपयोगिता अत्यंत व्यापक है,
- यह विभिन्न धर्मों और समुदायों में समान रूप से व्याख्यायित होकर सामाजिक समावेशन (inclusiveness) को बढ़ावा देती है,
- और यह पर्यावरण-संचालित, सामुदायिक-केन्द्रित संरक्षण उपायों के लिए उपयुक्त है।
भारत, जो 2006 में 2003 कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता बना, ने अमूर्त सांस्कृतिक तत्वों के राष्ट्रीय इन्वेंट्रीकरण, दस्तावेज़ीकरण और सामुदायिक भागीदारी जैसे लक्ष्यों में उल्लेखनीय प्रगति दिखायी है। इसीलिए नई दिल्ली में समिति की बैठक आयोजित होना स्वयं भारत के सांस्कृतिक नेतृत्व का प्रतीक था।
Deepavali की सूचीबद्धता UNESCO की उस दृष्टि को पुष्ट करती है जिसमें सांस्कृतिक विविधता को मानव गरिमा, संवाद और शांति का आधार माना गया है।
Implications and Contemporary Challenges
UNESCO में दीपावली का प्रवेश कई स्तरों पर प्रभाव डालता है—कूटनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय।
1. सांस्कृतिक कूटनीति और भारत की सॉफ्ट पावर
योग (2016), कुंभ मेला (2017), नवरोज़ (2016) और दुर्गा पूजा (2021) की तरह दीपावली का अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करना भारत की सांस्कृतिक कूटनीति को नई ऊँचाइयों तक ले जाता है। यह भारतीय सभ्यता की समन्वयकारी, समावेशी और शांति-प्रधान भावना को वैश्विक दर्शकों तक पहुँचाता है।
2. आर्थिक और पर्यटन-संबंधी लाभ
दीपावली भारत में शिल्पकारों—कुम्हारों, रंगोली कलाकारों, कपड़ा उद्योग, मिठाई उद्योग—के लिए आय का प्रमुख स्रोत है। UNESCO मान्यता से वैश्विक सांस्कृतिक पर्यटन में इस पर्व की दृश्यता बढ़ेगी, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को नया प्रोत्साहन मिलेगा।
3. पर्यावरणीय सुधार और टिकाऊ सांस्कृतिक व्यवहार
बढ़ती प्रदूषण समस्या को देखते हुए दीपावली के रूपों में बदलाव आवश्यक हो गया है। UNESCO का दबाव देशों को पर्यावरण-संबंधी संवेदनशीलताओं को ध्यान में रखते हुए टिकाऊ-विकास आधारित उत्सव-प्रथाएँ अपनाने के लिए प्रेरित करता है—जैसे LED diyas, सामूहिक पटाखा-नियमन और हरित परंपराओं का पुनरुद्धार।
4. युवाओं में सांस्कृतिक जड़ें मजबूत करने की आवश्यकता
डिजिटल युग में उत्सवों की आंतरिक भावनात्मक अनुभूति ऑनलाइन माध्यमों में सीमित हो जाने का जोखिम उपस्थित है। युवा पीढ़ी में दीपावली के मूलार्थ—दान, आत्मावलोकन, कम्युनिटी बॉन्डिंग—को पुनर्स्थापित करने के लिए डिजिटल आर्काइव, वर्चुअल म्यूज़ियम, पाठ्यक्रम में स्थानीय संस्कृति और सामुदायिक कार्यशालाएँ उपयोगी हो सकती हैं।
Conclusion
दीपावली का UNESCO की Representative List में शामिल होना केवल सम्मान का विषय नहीं; यह एक गहरा सांस्कृतिक संदेश है—कि परंपराएँ केवल अतीत की स्मृतियाँ नहीं, बल्कि वर्तमान की जीवंत चेतनाएँ हैं जो समाज को अर्थ, ऊर्जा और एकता प्रदान करती हैं। यह मान्यता उस ऐतिहासिक और दार्शनिक विरासत को संरक्षित करने का अवसर है जिसने हजारों वर्षों से भारतीय समाज को प्रकाश की ओर मार्गदर्शित किया है।
जगमगाते दीयों की पंक्तियाँ आज वैश्विक मंच पर भी उसी संदेश को दोहराती हैं—जहाँ प्रकाश है, वहाँ जीवन है; जहाँ संस्कृति है, वहाँ मानवता है। भविष्य में तुलनात्मक अध्ययनों—जैसे हनुक्का या चीनी मिड-ऑटम फेस्टिवल—के माध्यम से नवीनीकरण, प्रकाश और उत्सव की वैश्विक अवधारणाओं की गहरी पड़ताल की जा सकती है, जो मानव सभ्यता को जोड़ने वाले महत्वपूर्ण सांस्कृतिक सूत्रों को उजागर करती है।
With the Hindustan Times Inputs
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