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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Global Multidimensional Poverty Index 2025: India’s Remarkable Progress Amid Climate Challenges | UNDP-OPHI Report Analysis

🌍 वैश्विक गरीबी रिपोर्ट और भारत का प्रदर्शन: एक विश्लेषणात्मक अवलोकन

परिचय

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव (OPHI) द्वारा जारी वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index – MPI) 2025 ने विश्व में गरीबी की जटिलता और उसके बदलते स्वरूप पर एक गहन दृष्टि प्रस्तुत की है। वॉशिंगटन पोस्ट (21 अक्टूबर 2025) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने बहुआयामी गरीबी में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की है — जो 2015-16 में 14.96% थी, वह 2024-25 में घटकर 8.5% रह गई।

यह उपलब्धि भारत के समावेशी विकास मॉडल, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों और नीतिगत निरंतरता का परिणाम है। किंतु, रिपोर्ट यह भी चेतावनी देती है कि जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएँ और पर्यावरणीय असमानताएँ इस प्रगति को उलट सकती हैं।


MPI 2025 के प्रमुख निष्कर्ष

MPI केवल आय पर आधारित गरीबी को नहीं मापता, बल्कि यह शिक्षा, स्वास्थ्य, और जीवन स्तर जैसे तीन आयामों में विभाजित 10 संकेतकों के माध्यम से गरीबी के वास्तविक स्वरूप को दर्शाता है।

🟤 वैश्विक परिदृश्य

  • विश्व की लगभग 18.3% आबादी (लगभग 1.1 अरब लोग) आज भी बहुआयामी गरीबी में जीवन बिता रही है।
  • उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र हैं।
  • रिपोर्ट का शीर्षक — “Overlapping Hardships: Poverty and Climate Hazards” — यह रेखांकित करता है कि गरीबी अब केवल आय का प्रश्न नहीं, बल्कि जलवायु जोखिमों से जुड़ी एक सामाजिक चुनौती बन चुकी है।

🟢 भारत की स्थिति

  • भारत में गरीबी दर 8.5% तक घट चुकी है, जो बीते दशक की एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
  • ग्रामीण भारत में गरीबी शहरी भारत की तुलना में अब भी दो गुना अधिक है।
  • अनुसूचित जनजातियाँ (ST) और अनुसूचित जातियाँ (SC) सबसे अधिक प्रभावित समूह हैं, जहाँ शिक्षा, पोषण, और आवास जैसी मूलभूत सुविधाओं में कमी अब भी बनी हुई है।

भारत की प्रगति के प्रमुख कारण

भारत ने पिछले दशक में गरीबी कम करने के लिए संरचनात्मक सुधारों, नवोन्मेषी योजनाओं और सामाजिक निवेश के माध्यम से एक सुदृढ़ आधार तैयार किया है।

1. नीतिगत पहल और सरकारी योजनाएँ

  • प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) ने करोड़ों परिवारों को पक्के घर और सुरक्षित जीवन दिया।
  • स्वच्छ भारत मिशन (SBM) ने खुले में शौच की समस्या घटाकर स्वास्थ्य और गरिमा दोनों को सशक्त किया।
  • आयुष्मान भारत योजना ने स्वास्थ्य सुरक्षा को सामाजिक समानता का आधार बनाया।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) ने शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार लाया।

2. आर्थिक और वित्तीय समावेशन

  • जन धन योजना, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT), और डिजिटल भुगतान ने गरीबों को औपचारिक अर्थव्यवस्था से जोड़ा।
  • ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) ने आर्थिक सुरक्षा का एक न्यूनतम ढाँचा प्रदान किया।

3. सामाजिक बुनियादी ढाँचे का विस्तार

  • बिजली, पेयजल, स्वच्छ ईंधन, और सड़कों जैसी बुनियादी सेवाओं की सार्वभौमिक पहुंच ने जीवन स्तर में ठोस सुधार किया है।

जलवायु परिवर्तन: गरीबी उन्मूलन की नई चुनौती

MPI 2025 यह स्पष्ट करती है कि भारत की गरीबी घटाने की उपलब्धि जलवायु संकटों से गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है।

  • बाढ़ और चक्रवात: बिहार, असम और ओडिशा जैसे राज्य बार-बार प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होते हैं, जिससे गरीब समुदायों की संपत्ति और आजीविका पर स्थायी असर पड़ता है।
  • कृषि जोखिम: सूखा और अनियमित मानसून छोटे किसानों की आय को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे “poverty reversal” का खतरा बढ़ गया है।
  • शहरी संवेदनशीलता: हीटवेव्स और असुरक्षित शहरी बस्तियाँ शहरी गरीबों के स्वास्थ्य और श्रम उत्पादकता दोनों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं।

इस प्रकार, गरीबी और जलवायु संकट अब आपस में जुड़ी दोहरी चुनौतियाँ हैं — एक सामाजिक, दूसरी पारिस्थितिक।


UPSC दृष्टिकोण से महत्व

(1) प्रीलिम्स के लिए तथ्य

  • MPI के 10 संकेतक: पोषण, शिक्षा, स्वच्छता, आवास, बिजली, स्वास्थ्य आदि।
  • भारत का MPI: 8.5%
  • रिपोर्ट जारी करने वाले संगठन: UNDP और OPHI
  • संबंधित वैश्विक लक्ष्य: SDG-1 (गरीबी समाप्त करना)

(2) मेन्स के लिए विश्लेषण

  • GS Paper 1 – सामाजिक असमानता, क्षेत्रीय विषमता, और गरीबी के बहुआयामी आयाम।
  • GS Paper 2 – शासन, नीति-निर्माण और कल्याणकारी योजनाओं का प्रभाव।
  • GS Paper 3 – पर्यावरण और अर्थव्यवस्था का अंतर्संबंध, ग्रीन फाइनेंस, जलवायु जोखिम।
  • निबंध लेखन – संभावित विषय:
    • “जलवायु परिवर्तन और गरीबी: भारत की दोहरी चुनौती”
    • “समावेशी विकास: भारत की सबसे बड़ी सामाजिक पूँजी”

(3) इंटरव्यू की तैयारी

उम्मीदवारों से यह प्रश्न पूछा जा सकता है —

“भारत गरीबी उन्मूलन की अपनी उपलब्धियों को जलवायु जोखिमों से कैसे सुरक्षित रख सकता है?”


भारत के लिए नीतिगत सुझाव

  1. जलवायु-लचीला विकास मॉडल – कृषि में जलवायु-स्मार्ट तकनीकों, माइक्रो-इरिगेशन और आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना।
  2. शिक्षा और कौशल में निवेश – ग्रामीण युवाओं और आदिवासी समुदायों में उत्पादक क्षमता का विस्तार।
  3. जलवायु बीमा और माइक्रोफाइनेंस – गरीब परिवारों को आर्थिक झटकों से बचाने के लिए सामाजिक सुरक्षा कवच का विस्तार।
  4. अंतरराष्ट्रीय सहयोग – COP30 जैसे मंचों पर ग्रीन फाइनेंस और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की मांग को भारत के विकास एजेंडा से जोड़ना।

निष्कर्ष

भारत का बहुआयामी गरीबी सूचकांक में 8.5% तक पहुँचना केवल सांख्यिकीय उपलब्धि नहीं, बल्कि नीतिगत निरंतरता, सामाजिक सहभागिता और प्रशासनिक नवाचार की मिसाल है। हालांकि, यह यात्रा अधूरी है। जलवायु परिवर्तन, क्षेत्रीय असमानता और सामाजिक विषमता जैसे कारक भविष्य की चुनौती बने रहेंगे।

भारत के लिए अगला चरण यह सुनिश्चित करना है कि गरीबी उन्मूलन केवल संख्याओं तक सीमित न रहे, बल्कि यह एक सतत और जलवायु-लचीला सामाजिक परिवर्तन बने।





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