दैनिक समसामयिकी लेख संकलन व विश्लेषण: 28 अप्रैल 2025
1-जल की राजनीति: उरी से झेलम तक बढ़ती रणनीतिकता
प्रारंभिक टिप्पणी
घटना का संदर्भ और संभावित व्याख्याएँ
जल को रणनीतिक साधन के रूप में देखना
यदि यह मान लिया जाए कि यह निर्णय जानबूझकर और रणनीतिक उद्देश्य से लिया गया था, तो यह पाकिस्तान को यह स्मरण कराता है कि भले ही पश्चिमी नदियों पर उसकी प्राथमिकता हो, किंतु जल के स्रोत और प्रवाह का मूल नियंत्रण भारत के पास है।
कूटनीतिक एवं मानवीय पक्ष
भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी जल रणनीति "जिम्मेदार शक्ति" के रूप में उसकी पहचान को बनाए रखे। कूटनीतिक क्षेत्र में यह आवश्यक है कि जल नीति में कठोरता और मानवीय दृष्टिकोण के बीच संतुलन स्थापित हो।
भविष्य की दिशा
निष्कर्षतः, उरी से झेलम तक फैली यह लहरें केवल जल के बहाव की नहीं, बल्कि एक बदलती रणनीतिक चेतना की भी प्रतीक हैं। भारत के लिए चुनौती यह है कि वह जल-शक्ति का प्रयोग करते हुए भी स्वयं को एक उत्तरदायी, शांतिप्रिय और सशक्त राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करे — एक ऐसा राष्ट्र जो अपने अधिकारों का संरक्षण करता है, किंतु मानवीय मूल्यों का उल्लंघन नहीं करता।
2-पहलगाम आतंकी हमले के बाद चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया: दक्षिण एशिया में जटिलताएँ बढ़ीं
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाए जाने के संकेतों के बीच चीन ने पाकिस्तान को खुला समर्थन प्रदान किया है। बीजिंग ने स्पष्ट किया कि वह पाकिस्तान की "संप्रभुता और सुरक्षा हितों" की रक्षा के प्रयासों का समर्थन करेगा।
चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा, "एक पक्का दोस्त और हर परिस्थिति में रणनीतिक साझेदार के रूप में, हम पाकिस्तान की वाजिब सुरक्षा चिंताओं को समझते हैं और उनका समर्थन करते हैं।" उनका यह बयान उस समय आया है जब भारत, पहलगाम हमले में पाकिस्तान आधारित आतंकी समूहों की भूमिका के मद्देनजर निर्णायक कार्रवाई की तैयारी कर रहा है।
क्षेत्रीय संतुलन में नया आयाम
दक्षिण एशिया पहले से ही तनाव और अस्थिरता का केंद्र बना हुआ है। ऐसे में चीन द्वारा पाकिस्तान के पक्ष में दिया गया यह वक्तव्य न केवल भारत के लिए रणनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण है, बल्कि क्षेत्रीय संतुलन को भी प्रभावित कर सकता है।
विश्लेषकों का मानना है कि चीन और पाकिस्तान के बीच बढ़ती निकटता — विशेषकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) परियोजना के चलते — अब कूटनीतिक समर्थन से कहीं आगे बढ़ चुकी है और इसका सीधा असर भारत की सुरक्षा नीतियों पर पड़ेगा।
भारत सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "हम हर स्थिति के लिए तैयार हैं और भारत की क्षेत्रीय अखंडता व संप्रभुता की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।"
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
भारत ने वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन दिए जाने के मुद्दे को बार-बार उठाया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आतंकवादी संगठनों के खिलाफ प्रस्तावों पर चीन के वीटो के उदाहरण पहले भी सामने आ चुके हैं। अब, पहलगाम हमले के संदर्भ में पाकिस्तान का समर्थन कर चीन ने एक बार फिर अपनी पारंपरिक नीति को दोहराया है।
सामरिक मामलों के विशेषज्ञों के अनुसार, भारत को अब अपनी कूटनीतिक सक्रियता और सुरक्षा उपायों को और अधिक व्यापक बनाना होगा ताकि पाकिस्तान और चीन के संयुक्त प्रभाव को संतुलित किया जा सके।
विशेष टिप्पणी:
चीन का समर्थन क्यों?
- चीन के पाकिस्तान के साथ संबंध ऐतिहासिक हैं, जिन्हें अक्सर "ऑल वेदर फ्रेंडशिप" (हर मौसम की मित्रता) कहा जाता है।
- रणनीतिक दृष्टिकोण से पाकिस्तान, चीन के 'वन बेल्ट वन रोड' (OBOR) परियोजना का महत्वपूर्ण अंग है।
- भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव, विशेषकर अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ संबंधों की प्रगति, चीन के लिए चिंता का विषय रही है।
भविष्य की दिशा:
- भारत को वैश्विक मंचों पर चीन-पाकिस्तान गठजोड़ के विरुद्ध सशक्त और तार्किक दृष्टिकोण अपनाना होगा।
- क्षेत्रीय सहयोग जैसे क्वाड (QUAD) जैसे समूहों में भारत की सक्रिय भूमिका और मजबूत होनी चाहिए।
- घरेलू स्तर पर आतंकवाद के विरुद्ध सख्त कदम उठाने के साथ-साथ भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खतरे के प्रति जागरूक करना होगा।
- चीन के बढ़ते हस्तक्षेप को संतुलित करने के लिए भारत को दक्षिण एशियाई देशों के साथ गहरे संबंध स्थापित करने पर बल देना होगा।
3-नदियों का पुनर्जीवन: एक साझा उत्तरदायित्व
28 अप्रैल को TOI River Dialogues में उत्तर प्रदेश के जल शक्ति मंत्री श्री स्वतंत्र देव सिंह एक महत्वपूर्ण संवाद का हिस्सा बनेंगे। यह सहभागिता यह संकेत देती है कि राज्य स्तर पर भी अब नदियों के संरक्षण और पुनर्जीवन की आवश्यकता को प्राथमिकता दी जा रही है। यह अवसर महज उपलब्धियों का उल्लेख करने का नहीं, बल्कि नीतिगत चुनौतियों पर गंभीर विमर्श का है।
उत्तर प्रदेश, जो गंगा, यमुना, गोमती जैसी ऐतिहासिक नदियों से समृद्ध है, आज जलवायु परिवर्तन, औद्योगिक प्रदूषण और अनियंत्रित शहरीकरण के कारण जल संकट की ओर बढ़ रहा है। "नमामि गंगे" जैसी पहलों ने अवश्य कुछ सकारात्मक परिवर्तन किए हैं, परंतु स्थायी और समग्र सुधार के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
संवाद के दौरान यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि मंत्री केवल सरकारी योजनाओं की उपलब्धियों का बखान न करें, बल्कि यह भी स्पष्ट करें कि अब तक के प्रयासों में किन क्षेत्रों में कमी रही है। छोटे और मध्यम आकार के शहरों से निकलने वाला अपशिष्ट प्रबंधन आज भी एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। विकेन्द्रित अपशिष्ट शोधन प्रणालियाँ अभी भी पर्याप्त प्रभावी नहीं बन पाई हैं, और स्थानीय समुदायों की वास्तविक भागीदारी अक्सर औपचारिकताओं तक ही सीमित रह जाती है।
इसके अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन के चलते वर्षा चक्रों की अनियमितता और नदियों के प्रवाह में आई असंतुलन की चुनौती को भी पुनर्जीवन कार्यक्रमों में समुचित रूप से जोड़ा जाना आवश्यक है। यह कार्य केवल तकनीकी समाधानों से नहीं, बल्कि अंतर-विभागीय समन्वय, वैज्ञानिक अनुसंधान और दीर्घकालिक राजनीतिक प्रतिबद्धता से ही संभव है।
श्री स्वतंत्र देव सिंह के संवाद से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे इस विमर्श को व्यापक बनाएंगे — केवल नदी सफाई अभियानों तक सीमित नहीं, बल्कि स्थानीय विकास योजनाओं, कृषि प्रथाओं और औद्योगिक नीतियों में भी जल संरक्षण को केंद्रीय स्थान देने की आवश्यकता पर बल देंगे। जब तक नदियों के स्वास्थ्य को सामाजिक विकास की मुख्यधारा में स्थान नहीं दिया जाएगा, तब तक कोई भी पहल सतही ही सिद्ध होगी।
अंततः, नदियों की स्थिति, शासन व्यवस्था की गुणवत्ता का प्रतिबिंब है। एक स्वस्थ नदी तंत्र केवल पर्यावरणीय आवश्यकता नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक दायित्व भी है। 28 अप्रैल का संवाद इस दिशा में एक ईमानदार और ठोस पहल बन सके, यही अपेक्षा की जानी चाहिए।
4-अफगानिस्तान में भारत की रणनीतिक सतर्कता
भारत के अफगानिस्तान मामलों के विशेष प्रतिनिधि आनंद प्रकाश द्वारा तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से हालिया मुलाकात, दक्षिण एशिया में बदलते राजनीतिक परिदृश्य के बीच एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। यह कदम भारत की व्यावहारिक कूटनीति का प्रमाण है, जो न तो त्वरित स्वीकृति की ओर बढ़ रही है और न ही पूर्ण बहिष्कार की ओर। इसके बजाय, यह एक ऐसे मध्य मार्ग को तलाशने का प्रयास है जो भारत के दीर्घकालिक रणनीतिक हितों को सुरक्षित रख सके।
पिछले दो दशकों में भारत ने अफगानिस्तान के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है — सड़कें, बांध, स्कूल और अस्पताल बनवाए, छात्रवृत्तियाँ प्रदान कीं और अफगान समाज के पुनर्निर्माण में सहभागी बना। लेकिन अगस्त 2021 में जब तालिबान ने सत्ता संभाली, तो यह समस्त निवेश एक कठिन चुनौती के समक्ष आ खड़ा हुआ। अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा तालिबान शासन को मान्यता न देने की व्यापक प्रवृत्ति के बीच भारत ने संयम का परिचय दिया और मानवीय सहायता के माध्यम से अपनी उपस्थिति बनाए रखी।
आनंद प्रकाश की तालिबान के वरिष्ठ नेता से बातचीत दर्शाती है कि भारत अब अपनी भूमिका को 'मानवीय दाता' से 'रणनीतिक वार्ताकार' तक विस्तारित करने की तैयारी कर रहा है। राजनीतिक समावेशन, मानवाधिकारों के संरक्षण और आतंकवाद-विरोधी प्रतिबद्धता जैसे मुद्दों पर भारत का रुख स्पष्ट और अपरिवर्तित रहा है। फिर भी, जमीनी सच्चाई यह है कि अफगानिस्तान में तालिबान शासन अब एक स्थायी कारक बन चुका है, और किसी भी प्रकार का संवाद भारत के हितों की रक्षा के लिए अपरिहार्य है।
व्यापार और संपर्क की संभावनाओं पर चर्चा इस बात का संकेत है कि भारत केवल प्रतीक्षा की मुद्रा में नहीं है, बल्कि सक्रिय रूप से विकल्प तलाश रहा है। चाबहार बंदरगाह के माध्यम से क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने की पहल हो या अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण परियोजनाओं में संभावित सहभागिता, भारत इस क्षेत्र में अपने पारंपरिक प्रभाव को बनाए रखने की रणनीति पर काम कर रहा है।
फिर भी, जोखिम कम नहीं हैं। अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकी समूहों से सुरक्षा संबंधी खतरे बने हुए हैं, और तालिबान की आतंरिक गुटबाजी भी अनिश्चितता को बढ़ाती है। अफगान महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर वैश्विक चिंताएँ भी समाप्त नहीं हुई हैं। इन सभी मुद्दों के बीच भारत को सावधानीपूर्वक कदम बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि संवाद का द्वार खुला रहे, परंतु मूल्यों और सिद्धांतों से समझौता न हो।
इस संदर्भ में भारत का दृष्टिकोण एक आदर्श संतुलन का उदाहरण बन सकता है — जहाँ वास्तविकता को स्वीकार करते हुए नैतिकताओं के साथ संवाद किया जाए। आने वाले समय में यह नीति न केवल अफगानिस्तान के प्रति भारत के दृष्टिकोण को परिभाषित करेगी, बल्कि दक्षिण एशिया में भारत की व्यापक रणनीतिक स्थिति को भी प्रभावित करेगी।
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