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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Tensions in Iran-US Relations and the 1979 Islamic Revolution

 ईरान-अमेरिका संबंधों में तनाव और 1979 की इस्लामिक क्रांति



1979 में ईरान में हुई इस्लामिक क्रांति ने न केवल ईरान के राजनीतिक ढांचे को बदल दिया, बल्कि यह वैश्विक राजनीति पर भी गहरा असर डालने वाली घटना साबित हुई। इस क्रांति ने शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी के शासन को समाप्त कर दिया, जो अमेरिका का करीबी सहयोगी था, और ईरान में एक इस्लामिक गणराज्य की स्थापना की। इस क्रांति के बाद, ईरान और अमेरिका के संबंध लगातार तनावपूर्ण रहे, और यह तनाव आज भी जारी है, जैसा कि हाल ही में ईरान के राष्ट्रपति द्वारा डोनाल्ड ट्रंप पर आरोप लगाए गए थे कि वे ईरान को "घुटनों पर लाने" की कोशिश कर रहे हैं।

ईरान-अमेरिका संबंधों का ऐतिहासिक संदर्भ

ईरान और अमेरिका के रिश्तों का इतिहास बहुत जटिल और उलझा हुआ है। 1950 के दशक में, अमेरिका ने ईरान में एक अहम भूमिका निभाई थी, खासकर शाह के शासन को मजबूत करने में। 1953 में, CIA ने एक ऑपरेशन के तहत ईरान के प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्दिक को अपदस्थ कर दिया था, क्योंकि वे पश्चिमी तेल कंपनियों के हितों के खिलाफ जा रहे थे। इसके बाद शाह का शासन और मजबूत हुआ और उन्होंने पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ किया। लेकिन यह अमेरिका के प्रति ईरानी जनता की नाराजगी को बढ़ावा देने वाला था, क्योंकि उन्हें लगता था कि शाह अपने देश की स्वतंत्रता और संस्कृति को त्याग कर विदेशी शक्तियों के अधीन हो गए हैं।

1979 में ईरान में एक ऐतिहासिक मोड़ आया जब इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में जनता ने शाह के खिलाफ विद्रोह किया और एक इस्लामिक क्रांति का सूत्रपात हुआ। शाह को देश छोड़कर भागना पड़ा और ईरान में इस्लामिक गणराज्य की स्थापना हुई। ख़ुमैनी ने सत्ता संभाली और ईरान को एक इस्लामिक सिद्धांत पर आधारित राज्य में बदल दिया। इस परिवर्तन के बाद, अमेरिका और ईरान के रिश्ते पूरी तरह से टूट गए। ईरान के नए नेतृत्व ने अमेरिकी दूतावास पर कब्जा कर लिया और 52 अमेरिकी नागरिकों को बंधक बना लिया, जोकि एक बड़ा कूटनीतिक संकट था। इस घटना ने दोनों देशों के बीच दशकों तक संघर्ष को जन्म दिया।

न्यूक्लियर डील और ट्रंप का कार्यकाल

2000 के दशक में, अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश के शासन के दौरान, ईरान को 'आतंकी समर्थक राज्य' के रूप में देखा जाने लगा। ईरान का परमाणु कार्यक्रम भी अंतरराष्ट्रीय विवाद का कारण बना। इस संकट का समाधान तलाशने के लिए, 2015 में ईरान और छः प्रमुख देशों (यू.एस., यू.के., फ्रांस, रूस, चीन और जर्मनी) के बीच ऐतिहासिक परमाणु समझौता हुआ, जिसे 'जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन' (JCPOA) कहा जाता है। इस समझौते के तहत, ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने और अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों को अपनी सुविधाओं तक पहुंच देने का वादा किया था, जबकि बदले में ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को धीरे-धीरे हटाया गया।

लेकिन 2018 में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद, उन्होंने इस समझौते से अमेरिका को बाहर कर लिया और ईरान पर नए आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। ट्रंप प्रशासन का यह कदम ईरान के लिए एक बड़ा झटका था। ट्रंप ने यह आरोप लगाया कि ईरान ने परमाणु समझौते का उल्लंघन किया है और यह समझौता ईरान की परमाणु क्षमताओं को पूरी तरह से रोकने में असफल रहा। इसके अलावा, ट्रंप ने ईरान को आतंकवाद के लिए जिम्मेदार ठहराया और उसे वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा बताया।

ईरान ने ट्रंप की नीतियों का विरोध किया और कहा कि अमेरिका का यह कदम न केवल ईरान की आर्थिक स्थिति को कमजोर करेगा, बल्कि यह पूरे मध्य पूर्व में अस्थिरता का कारण बनेगा। ईरान के राष्ट्रपति ने ट्रंप पर यह आरोप लगाया कि वे ईरान को "घुटनों पर लाने" की कोशिश कर रहे हैं, ताकि ईरान अपनी विदेश नीति और आंतरिक मामलों में बदलाव करे।

आज की स्थिति और वैश्विक प्रभाव

आज, ईरान और अमेरिका के बीच तनाव उच्चतम स्तर पर है। दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध लगभग समाप्त हो चुके हैं और दोनों एक-दूसरे के खिलाफ विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आरोप-प्रत्यारोप करते रहते हैं। ईरान, जो अब भी परमाणु कार्यक्रम पर जोर दे रहा है, ने इस मुद्दे को अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता और सुरक्षा से जोड़कर देखा है। ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, जबकि पश्चिमी देश और विशेष रूप से अमेरिका इसे सुरक्षा के लिए खतरा मानते हैं।

इसके अलावा, ईरान के क्षेत्रीय प्रभाव, विशेषकर सीरिया, यमन और इराक में, भी अमेरिका के लिए चिंता का विषय है। ईरान का मानना है कि उसका क्षेत्रीय प्रभाव उस क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता के लिए जरूरी है, जबकि अमेरिका इसे अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है। इन मुद्दों पर दोनों देशों के बीच लगातार टकराव होता रहता है।

निष्कर्ष

ईरान और अमेरिका के संबंधों का इतिहास संघर्षों, आरोपों और विश्वास की कमी से भरा हुआ है। 1979 की इस्लामिक क्रांति ने दोनों देशों के रिश्तों में एक स्थायी खाई बना दी, जिसे समय और घटनाएँ और गहरा करती रही हैं। 2015 का परमाणु समझौता एक सकारात्मक प्रयास था, लेकिन ट्रंप प्रशासन ने इसे नकारते हुए ईरान पर नए प्रतिबंध लगा दिए, जिससे तनाव और बढ़ा। आज, दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संघर्ष जारी है, और यह वैश्विक सुरक्षा, मध्य पूर्व की राजनीति और ईरान की आंतरिक स्थिति पर प्रभाव डालता है।

ईरान के राष्ट्रपति का यह कहना कि अमेरिका ईरान को "घुटनों पर लाने" की कोशिश कर रहा है, यह बताता है कि वर्तमान में दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी और कूटनीतिक गतिरोध की स्थिति बनी हुई है। भविष्य में, यह देखना होगा कि क्या कोई नई कूटनीतिक पहल दोनों देशों के रिश्तों में सुधार ला सकती है, या फिर यह संघर्ष और बढ़ेगा।


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✍️ARVIND SINGH PK REWA

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