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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

बाल विवाह को वैधता: समाज के भविष्य के साथ खिलवाड़

 इराक की संसद में हाल ही में पारित एक कानून ने न केवल देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता का माहौल बना दिया है। इस कानून के तहत मौलवियों को इस्लामी कानून के आधार पर शादी की उम्र तय करने का अधिकार दिया गया है, जिससे 9 वर्ष की आयु में भी विवाह की अनुमति संभव हो सकती है। आलोचक इसे बाल विवाह को वैधता देने का सीधा रास्ता मानते हैं।

बाल विवाह: विकास में बाधा

बाल विवाह केवल एक सामाजिक बुराई नहीं, बल्कि बच्चों के अधिकारों और उनके भविष्य को नकारने का माध्यम है। यह बच्चों के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास को बाधित करता है। कम उम्र में विवाह का दुष्प्रभाव लड़कियों पर सबसे अधिक पड़ता है, क्योंकि इससे उनकी शिक्षा रुक जाती है, स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और वे हिंसा और शोषण का शिकार बनती हैं।

क्या है इस कानून के पीछे का तर्क?

इस कानून के समर्थकों का दावा है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता और समुदायों के अधिकारों का सम्मान करता है। उनका कहना है कि यह इस्लामी कानून के तहत पारंपरिक मूल्यों को बनाए रखने का एक प्रयास है। लेकिन सवाल यह उठता है कि धार्मिक मान्यताओं की आड़ में बच्चों के मौलिक अधिकारों का हनन कब तक उचित ठहराया जा सकता है?

समाज और सरकार की जिम्मेदारी

सरकारों की पहली जिम्मेदारी अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है। बच्चों के अधिकारों का संरक्षण हर देश की प्राथमिकता होनी चाहिए। इस तरह के कानून से न केवल बाल विवाह को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि यह लैंगिक असमानता और मानवाधिकार उल्लंघन को भी प्रोत्साहित करेगा।

वैश्विक प्रतिक्रिया और समाधान

इस कानून के खिलाफ उठ रही अंतरराष्ट्रीय आवाजें दर्शाती हैं कि दुनिया बाल अधिकारों को लेकर जागरूक है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवाधिकार संगठनों को इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाना चाहिए। बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं को खत्म करने के लिए शिक्षा, जागरूकता और कानूनी उपायों को मजबूत करना अनिवार्य है।

निष्कर्ष

इराक में पारित यह कानून एक चेतावनी है कि अगर समय रहते सामाजिक बुराइयों पर रोक नहीं लगाई गई, तो समाज के कमजोर वर्गों, विशेष रूप से बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो सकता है। यह केवल इराक की समस्या नहीं है, बल्कि उन सभी देशों के लिए एक सबक है, जहां आज भी बाल विवाह जैसी प्रथाएं मौजूद हैं। बच्चों का बचपन और उनका भविष्य सुरक्षित करना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।

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✍️ARVIND SINGH PK REWA

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