20 जनवरी, 2025 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम सवाल उठाया, जो भारत के शहरी जीवन से जुड़े गंभीर मुद्दे पर प्रकाश डालता है। अदालत ने केंद्र सरकार और स्थानीय प्रशासन से पूछा कि क्या किसी व्यक्ति द्वारा एक ही शहर में पंजीकृत वाहनों की संख्या पर कोई कानूनी प्रतिबंध है,क्या किसी व्यक्ति द्वारा पंजीकृत वाहनों की संख्या पर कोई सीमा होनी चाहिए, और क्या वाणिज्यिक एवं आवासीय परिसरों में पर्याप्त पार्किंग सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाए गए हैं। यह सवाल न केवल कानूनी, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं पर विचार करने के लिए मजबूर करता है।
शहरी भारत: वाहनों का बढ़ता बोझ
भारत में निजी वाहन स्वामित्व तेजी से बढ़ा है। यह आर्थिक समृद्धि और मध्यम वर्ग की बढ़ती आकांक्षाओं का प्रतीक हो सकता है, लेकिन इसके साथ कई चुनौतियां भी आई हैं। 2023 तक, भारत में 34 करोड़ से अधिक वाहन पंजीकृत थे, जिनमें से अधिकांश मेट्रो शहरों में केंद्रित हैं। ये वाहन शहरों में ट्रैफिक जाम, प्रदूषण, और पार्किंग संकट का प्रमुख कारण बनते जा रहे हैं।
वर्तमान में, किसी भी व्यक्ति के पास पंजीकृत वाहनों की संख्या पर कोई कानूनी सीमा नहीं है। यह स्थिति उन शहरों में और अधिक गंभीर हो जाती है, जहां बुनियादी ढांचे की क्षमता पहले से ही सीमित है। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे शहरों में ट्रैफिक की समस्या और पार्किंग की कमी नागरिकों के लिए बड़ी परेशानी बन गई है।
पार्किंग का अभाव: एक बड़ी समस्या
भारतीय शहरों में पार्किंग स्थलों की अनुपलब्धता समस्या को और गंभीर बनाती है। वाणिज्यिक और आवासीय परिसरों में अक्सर पर्याप्त पार्किंग स्थान नहीं होता। इसके परिणामस्वरूप वाहन सार्वजनिक सड़कों पर खड़े किए जाते हैं, जिससे ट्रैफिक बाधित होता है और सड़क दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ता है।
हालांकि कुछ शहरों में मास्टर प्लान के तहत पार्किंग मानदंड बनाए गए हैं, लेकिन इनका कार्यान्वयन अत्यंत कमजोर है। नए भवन निर्माण के दौरान पार्किंग स्थलों की योजना अक्सर अनदेखी की जाती है, और कई बार नियमों का उल्लंघन भी होता है।
सुप्रीम कोर्ट की पहल: एक नई दिशा
सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए सवाल इस दिशा में नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। यह समय है कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर शहरी वाहनों की संख्या और पार्किंग स्थान से जुड़े कानूनों को कड़ा करें।
1. वाहनों की संख्या पर सीमा:
विकसित देशों में ऐसे उदाहरण मौजूद हैं, जहां वाहन पंजीकरण के लिए सख्त नियम लागू किए गए हैं। भारत में भी एक व्यक्ति द्वारा पंजीकृत वाहनों की संख्या पर सीमा लगाने पर विचार किया जा सकता है।
2. पार्किंग प्रमाणपत्र अनिवार्य करना:
वाहन पंजीकरण से पहले पार्किंग स्थल का प्रमाण प्रस्तुत करना अनिवार्य किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करेगा कि वाहन स्वामित्व का दबाव सार्वजनिक स्थानों पर न पड़े।
3. सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहन:
निजी वाहनों पर निर्भरता कम करने के लिए सार्वजनिक परिवहन को बेहतर और सुलभ बनाना होगा। मेट्रो, बस और इलेक्ट्रिक वाहन सेवाओं का विस्तार इस दिशा में सहायक हो सकता है।
4. पार्किंग शुल्क और कराधान:
अत्यधिक वाहनों को हतोत्साहित करने के लिए पार्किंग शुल्क और वाहन पंजीकरण पर उच्च कर लगाए जा सकते हैं।
समाधान की ओर कदम
यह स्पष्ट है कि समस्या केवल वाहनों की संख्या या पार्किंग स्थलों की कमी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शहरी नियोजन और नीतियों के अभाव का भी परिणाम है। सरकार को सभी हितधारकों के साथ मिलकर एक व्यापक नीति तैयार करनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की पहल न केवल न्यायपालिका की संवेदनशीलता को दर्शाती है, बल्कि यह सरकार और समाज के लिए एक अवसर भी है कि वे इस समस्या का स्थायी समाधान खोजें। शहरी जीवन की गुणवत्ता बनाए रखने और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक टिकाऊ परिवेश सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है कि आज ठोस कदम उठाए जाएं।
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