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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

दावोस बैठक 2025: वैश्विक चुनौतियों का समाधान या एक और प्रतीकात्मक मंच?

स्विट्जरलैंड के दावोस में आयोजित विश्व आर्थिक मंच (WEF) की वार्षिक बैठक 2025 आज से शुरू हो रही है। दुनिया भर के नेता, उद्योगपति, वैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता वैश्विक समस्याओं के समाधान पर चर्चा के लिए इस मंच पर एकत्र हुए हैं। हर साल यह बैठक आर्थिक और सामाजिक बदलावों के वादे के साथ आरंभ होती है, लेकिन सवाल यह है कि क्या दावोस बैठक वास्तव में अपनी क्षमता को पूरा कर पाती है, या यह सिर्फ एक प्रतीकात्मक आयोजन बनकर रह जाती है?

दावोस: समस्याओं और उम्मीदों का संगम

दुनिया इस समय कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है। जलवायु परिवर्तन, आर्थिक असमानता, तकनीकी उन्नति से जुड़े नैतिक प्रश्न, और भू-राजनीतिक तनाव इन चुनौतियों में प्रमुख हैं। इस वर्ष की बैठक का विषय "नवाचार के माध्यम से सतत विकास" है, जो इन चुनौतियों को हल करने के लिए तकनीकी और नवाचार के उपयोग पर केंद्रित है।

बैठक में यह उम्मीद की जा रही है कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए $100 बिलियन का वैश्विक फंड स्थापित किया जाएगा। यह कदम सराहनीय है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इस फंड का उपयोग प्रभावी ढंग से किया जाएगा, और क्या यह विकासशील देशों की वास्तविक जरूरतों को पूरा कर पाएगा?

भारत की भूमिका: उभरता हुआ नेतृत्व

दावोस मंच पर भारत की भूमिका पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है। भारतीय प्रधानमंत्री डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, और हरित ऊर्जा जैसे अभियानों को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करेंगे। भारत ने दुनिया को यह दिखाया है कि कैसे नवाचार और सस्ते समाधानों के माध्यम से जटिल समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।

हालांकि, यह भी सच है कि भारत को अभी भी आंतरिक असमानता, पर्यावरणीय संकट और सामाजिक चुनौतियों से निपटना है। क्या दावोस भारत को वैश्विक स्तर पर एक सशक्त नेता के रूप में उभरने का मौका देगा, या यह केवल औपचारिकताओं तक सीमित रहेगा?

आलोचना: केवल अमीरों का मंच?

दावोस बैठक अक्सर इस आलोचना का शिकार होती है कि यह केवल अमीर देशों और बड़ी कंपनियों के हितों की रक्षा करती है। विकासशील देशों और हाशिए पर खड़े समुदायों के मुद्दे यहां अक्सर उपेक्षित रह जाते हैं। आर्थिक असमानता पर चर्चा तो होती है, लेकिन ठोस कदम उठाने में विफलता दिखाई देती है।

क्या दावोस में लिया गया कोई भी निर्णय वास्तव में गरीबों और पिछड़े देशों के जीवन को बेहतर बनाएगा? यह सवाल हर साल बैठक के बाद उठता है।

आगे का रास्ता: प्रतीकवाद से वास्तविकता की ओर

दावोस बैठक की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि इसमें लिए गए निर्णयों को कितनी गंभीरता से लागू किया जाता है। इस मंच को केवल बातचीत का मंच बनने के बजाय, ठोस कदम उठाने का माध्यम बनना होगा।

समाधान के लिए सुझाव:

1. विकासशील देशों की समस्याओं को प्राथमिकता दी जाए।

2. हरित ऊर्जा और नवाचार में समान सहयोग सुनिश्चित किया जाए।

3. तकनीकी प्रगति से जुड़े नैतिक और सामाजिक प्रश्नों पर ठोस नीतियां बनाई जाएं।

निष्कर्ष

दावोस बैठक 2025 वैश्विक समस्याओं पर चर्चा के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है, लेकिन यह तभी सफल होगी जब यह शब्दों से परे जाकर ठोस परिणाम दे सके। वैश्विक नेताओं को यह समझना होगा कि दुनिया की समस्याओं का समाधान केवल बड़े वादों से नहीं होगा, बल्कि छोटे, व्यावहारिक और समावेशी कदमों से होगा। दावोस को प्रतीकात्मक मंच से वास्तविक परिवर्तन का माध्यम बनना होगा।


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✍️ARVIND SINGH PK REWA

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