बच्चों की मौत और संदिग्ध कफ सिरप मामला: दवा सुरक्षा पर उठते सवाल
परिचय
हाल ही में मध्य प्रदेश और राजस्थान में हुई 11 बच्चों की दुखद मौतों ने भारत में दवा सुरक्षा (Drug Safety) और स्वास्थ्य तंत्र की कमियों को फिर से उजागर किया है। मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में 9 और राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में 2 बच्चों की मौत संदिग्ध कफ सिरप के सेवन से जुड़ी बताई जा रही है। इन घटनाओं ने न केवल दवा निर्माण और वितरण की गुणवत्ता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं, नियामक ढांचे, और जन-जागरूकता की कमी जैसे व्यापक मुद्दों को भी सामने लाया है। यह लेख इन घटनाओं के कारणों, प्रभावों, और सुधारात्मक उपायों का विश्लेषण करता है, साथ ही भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए नीतिगत सुझाव प्रस्तुत करता है।
घटना का विवरण
-
मध्य प्रदेश: शहडोल जिले में 9 बच्चों की मौत Coldrif नामक कफ सिरप के सेवन से जुड़ी पाई गई। प्रारंभिक जांच में स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों ने सिरप में संभावित विषाक्त पदार्थों की मौजूदगी पर संदेह जताया, विशेष रूप से ethylene glycol या diethylene glycol जैसे रसायनों की, जो किडनी को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं।
-
राजस्थान: बांसवाड़ा जिले में 2 बच्चों की तबीयत dextromethorphan-आधारित कफ सिरप के सेवन के बाद बिगड़ी, जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना ने स्थानीय स्तर पर दवाओं की आपूर्ति श्रृंखला और उनके अनियंत्रित उपयोग पर सवाल खड़े किए।
केंद्र सरकार की जांच में केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला (Central Drugs Laboratory, CDL) ने इन सिरप्स के सैंपल्स की जांच की और पाया कि उनमें कोई विषाक्त या किडनी-हानिकारक पदार्थ मौजूद नहीं थे। हालांकि, यह निष्कर्ष सवाल उठाता है कि यदि दवाएं सुरक्षित थीं, तो इन मौतों का कारण क्या था? क्या यह चिकित्सकीय लापरवाही, गलत खुराक, या अन्य पर्यावरणीय/प्रशासनिक कारकों का परिणाम था?
पिछले मामले और वैश्विक संदर्भ
यह कोई पहला मामला नहीं है जब भारत निर्मित कफ सिरप विवादों में रहा है। पिछले कुछ वर्षों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसी घटनाएं सामने आई हैं:
-
गाम्बिया (2022): Maiden Pharmaceuticals के कफ सिरप से 66 बच्चों की मौत हुई, जिसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत निर्मित दवाओं की गुणवत्ता पर चेतावनी जारी की थी।
-
उज़्बेकिस्तान (2022): Marion Biotech की दवाओं से 18 बच्चों की मौत का मामला सामने आया, जिसमें diethylene glycol की मौजूदगी पाई गई थी।
-
नाइजीरिया (2008-09): 84 बच्चों की मौत के लिए My Pikin नामक दवा में diethylene glycol की मौजूदगी जिम्मेदार थी।
इन घटनाओं ने भारत के फार्मास्यूटिकल उद्योग की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए और दवा निर्यात के लिए सख्त गुणवत्ता नियंत्रण की आवश्यकता को रेखांकित किया। भारत, जो वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, को अपनी साख बनाए रखने के लिए दवा नियमन में सुधार करना होगा।
मुद्दे का व्यापक विश्लेषण
-
दवा निगरानी व्यवस्था (Pharmacovigilance):
- भारत में Central Drugs Standard Control Organization (CDSCO) दवा नियमन की शीर्ष संस्था है, लेकिन जिला और राज्य स्तर पर निगरानी तंत्र कमजोर है।
- दवाओं की सैंपलिंग और परीक्षण की प्रक्रिया धीमी और सीमित है। उदाहरण के लिए, देश में केवल कुछ ही प्रयोगशालाएं Good Manufacturing Practices (GMP) के मानकों के अनुरूप हैं।
- Pharmacovigilance Programme of India (PvPI) के तहत दवाओं के दुष्प्रभावों की निगरानी होती है, लेकिन इसका दायरा मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों तक सीमित है।
-
ग्रामीण स्वास्थ्य तंत्र की चुनौतियाँ:
- ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकीय परामर्श के बिना Over-the-Counter (OTC) दवाओं का उपयोग आम है। कई बार माता-पिता या स्थानीय दवा विक्रेता बिना उचित जानकारी के बच्चों को दवाएं दे देते हैं।
- ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में प्रशिक्षित फार्मासिस्टों और डॉक्टरों की कमी, गलत खुराक या अनुचित दवा के उपयोग को बढ़ावा देती है।
- साक्षरता और जागरूकता की कमी के कारण लोग दवाओं के लेबल, खुराक, या साइड इफेक्ट्स को समझने में असमर्थ होते हैं।
-
निर्माताओं की जवाबदेही:
- छोटे और मध्यम स्तर के फार्मास्यूटिकल निर्माता अक्सर गुणवत्ता नियंत्रण (Quality Control, QC) और गुणवत्ता आश्वासन (Quality Assurance, QA) में लापरवाही बरतते हैं।
- लागत कम करने के लिए सस्ते और संभावित हानिकारक रसायनों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि diethylene glycol को सॉल्वेंट के रूप में।
- आपूर्ति श्रृंखला में पारदर्शिता की कमी के कारण नकली या घटिया दवाओं का बाजार में प्रवेश आसान हो जाता है।
-
वैश्विक दबाव और निर्यात की चुनौतियाँ:
- भारत को "विश्व की फार्मेसी" के रूप में जाना जाता है, लेकिन बार-बार होने वाले विवाद इस छवि को धूमिल करते हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अन्य अंतरराष्ट्रीय नियामक संस्थाएं भारत से निर्यात होने वाली दवाओं पर कड़ी नजर रख रही हैं, जिससे निर्यातकों पर Good Manufacturing Practices (GMP) का पालन करने का दबाव बढ़ रहा है।
नीतिगत और सुधारात्मक पहलें
-
मजबूत नियामक ढांचा:
- CDSCO को और अधिक शक्तियां दी जानी चाहिए ताकि वह छोटे स्तर के निर्माताओं पर भी सख्ती से निगरानी कर सके।
- Track and Trace प्रणाली को सभी दवाओं पर अनिवार्य करना चाहिए ताकि उनकी आपूर्ति श्रृंखला को ट्रैक किया जा सके।
- दवा परीक्षण प्रयोगशालाओं की संख्या और क्षमता बढ़ानी होगी, विशेष रूप से ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में।
-
बच्चों के लिए विशेष दवा नीति:
- बच्चों के लिए दवाओं पर विशेष रेटिंग सिस्टम लागू करना चाहिए, जिसमें स्पष्ट रूप से उनकी सुरक्षा और खुराक की जानकारी दी जाए।
- Pediatric Pharmacovigilance को मजबूत करने के लिए विशेष दिशानिर्देश जारी किए जाएं।
- बच्चों के लिए दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल को अनिवार्य करना चाहिए ताकि उनकी प्रभावशीलता और सुरक्षा सुनिश्चित हो।
-
ग्रामीण स्वास्थ्य तंत्र में सुधार:
- ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में प्रशिक्षित फार्मासिस्टों की नियुक्ति अनिवार्य होनी चाहिए।
- ASHA कार्यकर्ताओं और Anganwadi कर्मियों को दवाओं के सुरक्षित उपयोग के बारे में प्रशिक्षण देना चाहिए।
- जन-जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को OTC दवाओं के जोखिमों के बारे में शिक्षित करना होगा।
-
तकनीकी नवाचार:
- Blockchain Technology का उपयोग करके दवाओं की आपूर्ति श्रृंखला को पारदर्शी बनाया जा सकता है।
- AI-based Pharmacovigilance Tools का उपयोग दवाओं के दुष्प्रभावों की निगरानी के लिए किया जा सकता है।
- Mobile Apps के माध्यम से उपभोक्ताओं को दवाओं की प्रामाणिकता जांचने की सुविधा दी जा सकती है।
-
अंतरराष्ट्रीय सहयोग:
- भारत को WHO और अन्य वैश्विक नियामक संस्थाओं के साथ मिलकर दवा गुणवत्ता मानकों को लागू करना चाहिए।
- Mutual Recognition Agreements (MRAs) के तहत भारत को अपनी दवा परीक्षण प्रक्रियाओं को वैश्विक मानकों के अनुरूप लाना होगा।
निष्कर्ष
मध्य प्रदेश और राजस्थान में हुई बच्चों की मौतें, भले ही प्रारंभिक जांच में कफ सिरप की विषाक्तता से सीधे न जुड़ी हों, भारत में दवा सुरक्षा और स्वास्थ्य तंत्र की कमियों को उजागर करती हैं। यह घटना एक चेतावनी है कि “सुरक्षित दवा का अधिकार” केवल एक नीतिगत वादा नहीं, बल्कि हर नागरिक का मूलभूत अधिकार है। भारत को अपनी फार्मास्यूटिकल साख को बचाने और घरेलू स्तर पर ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने होंगे:
- नियामक ढांचे को मजबूत करना।
- ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार।
- जन-जागरूकता और तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देना।
- छोटे निर्माताओं पर सख्त निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित करना।
इन सुधारों के बिना, न केवल भारत की वैश्विक छवि को नुकसान पहुंचेगा, बल्कि लाखों नागरिकों का स्वास्थ्य भी खतरे में रहेगा। यह समय है कि भारत अपने फार्मास्यूटिकल उद्योग को न केवल “विश्व की फार्मेसी” बनाए रखे, बल्कि “सुरक्षित फार्मेसी” के रूप में भी स्थापित करे।
🩺 UPSC दृष्टिकोण से प्रमुख बिंदु
-
GS Paper 2 (स्वास्थ्य नीति और प्रशासन):
- स्वास्थ्य सेवाओं में केंद्र-राज्य समन्वय की आवश्यकता।
- Right to Health और उपभोक्ता अधिकारों का संरक्षण।
- CDSCO और PvPI जैसे संस्थानों की भूमिका और उनकी सीमाएं।
-
GS Paper 3 (विज्ञान और प्रौद्योगिकी, उद्योग):
- फार्मास्यूटिकल उद्योग में गुणवत्ता नियंत्रण और निर्यात नीतियां।
- Track and Trace और Blockchain जैसे तकनीकी नवाचार।
- दवा सुरक्षा के लिए वैज्ञानिक नियमन और अनुसंधान।
-
GS Paper 4 (नैतिकता):
- फार्मास्यूटिकल कंपनियों की नैतिक जिम्मेदारी।
- जनहित में नियामक संस्थानों की जवाबदेही।
- उपभोक्ता सुरक्षा और कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR)।
अतिरिक्त सुझाव (UPSC के लिए)
- निबंध लेखन: इस विषय को “भारत में दवा सुरक्षा: चुनौतियाँ और समाधान” या “स्वास्थ्य सेवाओं में तकनीकी नवाचार” जैसे निबंधों के लिए उपयोग करें।
- मुख्य परीक्षा के लिए: इस मुद्दे को Ayushman Bharat, National Health Policy 2017, और Make in India जैसे व्यापक संदर्भों से जोड़ा जा सकता है।
- साक्षात्कार: दवा सुरक्षा, ग्रामीण स्वास्थ्य, और वैश्विक व्यापार में भारत की स्थिति जैसे सवालों के लिए इस मामले का उपयोग करें।
Comments
Post a Comment