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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Trump’s Gaza Ceasefire Declaration: A New Chapter in Middle East Peace and Power Diplomacy

ट्रम्प की ऐतिहासिक गाजा युद्ध समाप्त की घोषणा: मध्य पूर्व में एक नए युग की शुरुआत व नेतन्याहू के लिए क्षमादान की अपील

परिचय

मध्य पूर्व, जो दशकों से संघर्ष, अस्थिरता और धार्मिक ध्रुवीकरण का केंद्र रहा है, 13 अक्टूबर 2025 को एक नए अध्याय की ओर बढ़ता दिखाई दिया जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इजरायल की संसद (नेसेट) में गाजा युद्धविराम समझौते की घोषणा की।
यह घोषणा न केवल इजरायल और हमास के बीच दो वर्ष तक चले भीषण संघर्ष का अंत करती है, बल्कि अमेरिकी कूटनीति की एक नई दिशा भी निर्धारित करती है — जहाँ "शक्ति के माध्यम से शांति" (Peace Through Strength) को पुनः परिभाषित किया गया है।

ट्रम्प के इस कदम ने वैश्विक समुदाय को यह सोचने पर विवश किया कि क्या यह वाकई मध्य पूर्व में स्थायी शांति की शुरुआत है या केवल सामरिक और चुनावी लाभ का परिणाम। यह लेख उसी घोषणा के भू-राजनीतिक, कूटनीतिक और नैतिक आयामों का विश्लेषण करता है।


संघर्ष का पृष्ठभूमि

7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इजरायल पर किए गए हमले ने आधुनिक मध्य पूर्व के इतिहास को झकझोर दिया था।
लगभग 1,200 नागरिकों की हत्या और सैकड़ों को बंधक बनाएं जाने की घटना ने इजरायल को “पूर्ण युद्ध” की स्थिति में पहुँचा दिया। दो वर्षों तक चले इस संघर्ष ने गाजा को खंडहर बना दिया—

  • लगभग 65,000 फिलिस्तीनी मारे गए,
  • लाखों विस्थापित हुए,
  • और इजरायल के भीतर भी 2,000 से अधिक सैनिकों की जान गई।

मानवीय दृष्टि से यह युद्ध न केवल “सुरक्षा बनाम अस्तित्व” का प्रश्न बना, बल्कि वैश्विक स्तर पर अमेरिका, ईरान, तुर्की और खाड़ी देशों की नीतियों का परीक्षण भी।


ट्रम्प की घोषणा: एक नया मोड़

नेसेट में दिया गया ट्रम्प का भाषण प्रतीकात्मक रूप से “मध्य पूर्व के नए प्रभात” की घोषणा था। उन्होंने कहा —

“लंबा और दर्दनाक दुःस्वप्न अंततः समाप्त हुआ — न केवल इजरायल के लिए, बल्कि फिलिस्तीन के लिए भी।”

यह बयान केवल भावनात्मक अपील नहीं था, बल्कि एक रणनीतिक संदेश था —
कि अमेरिका की ताकत और मध्यस्थता अब भी निर्णायक है।

मुख्य प्रावधान

  1. हमास का पूर्ण निरस्त्रीकरण और गाजा का “डिमिलिटरीज़्ड ज़ोन” के रूप में पुनर्गठन।
  2. इजरायल द्वारा लगभग 2,000 फिलिस्तीनी बंदियों की रिहाई।
  3. बंधकों की वापसी: 20 जीवित बंधकों और 28 शवों की प्रतीकात्मक वापसी।
  4. अरब देशों की भागीदारी: मिस्र, सऊदी अरब, कतर और यूएई द्वारा समझौते का समर्थन।
  5. अमेरिकी भूमिका: ईरान के परमाणु ठिकानों पर सीमित हमलों को “शांति के उत्प्रेरक” के रूप में प्रस्तुत किया गया।

ट्रम्प ने इसे अपनी “अब्राहम समझौतों” की नीति का विस्तार बताया— जहाँ आर्थिक प्रलोभन और सैन्य शक्ति को जोड़कर संघर्ष-समाधान की दिशा में अग्रसर हुआ जा सके।


राजनीतिक प्रतीकवाद और नेतन्याहू क्षमादान विवाद

भाषण का सबसे विवादास्पद हिस्सा था— प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए क्षमादान की ट्रम्प द्वारा सार्वजनिक मांग।
ट्रम्प ने उन्हें “देशभक्ति और साहस का प्रतीक” बताया, जबकि इजरायल में नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं।

यह क्षमादान आग्रह अमेरिकी हस्तक्षेपवाद की परंपरा को फिर से जीवित करता है— जहाँ नैतिकता और कूटनीति के बीच रेखा धुंधली हो जाती है।
इजरायल के विपक्षी दलों और नागरिक समाज ने इसे “न्यायपालिका पर राजनीतिक दबाव” करार दिया।

इस घटना ने यह संकेत भी दिया कि शांति प्रक्रिया को घरेलू राजनीति से अलग रखना कितना कठिन है, विशेषकर जब सत्ता और वैधता के प्रश्न एक-दूसरे में उलझे हों।


भू-राजनीतिक विश्लेषण

(क) यथार्थवादी दृष्टिकोण (Realist Perspective)

यथार्थवादी सिद्धांत के अनुसार, शक्ति-संतुलन ही शांति का आधार है।
ट्रम्प का यह समझौता इसी विचार पर आधारित है —
अमेरिका ने सैन्य दबाव (ईरान पर हमले) और आर्थिक प्रोत्साहन (गाजा पुनर्निर्माण फंड) दोनों का संयोजन करके पक्षों को वार्ता की मेज पर लाया।

“Peace comes not by words, but by power,”
यह ट्रम्प के सिद्धांत का सार है।

इससे यह संदेश गया कि अमेरिकी नेतृत्व अब भी निर्णायक है, भले ही चीन और रूस क्षेत्रीय मामलों में अधिक सक्रिय क्यों न हों।

(ख) रचनावादी दृष्टिकोण (Constructivist Approach)

रचनावादी विश्लेषण इस घटना को "नई पहचान निर्माण" के रूप में देखता है —
जहाँ इजरायल और अरब देशों के बीच साझा हित (आर्थिक स्थिरता, आतंकवाद-विरोध, तकनीकी साझेदारी) ने शांति की नई परिभाषा गढ़ी।

गाजा का “नया प्रशासनिक मॉडल”, जिसमें अरब निरीक्षक और अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियाँ मिलकर शासन देखेंगी, इस बात का संकेत है कि शांति केवल समझौतों से नहीं, बल्कि साझा पहचान से टिकाऊ बन सकती है।


क्षेत्रीय प्रतिक्रियाएँ और वैश्विक प्रतिध्वनि

इजरायल में ट्रम्प का स्वागत “शांतिदूत” के रूप में हुआ, लेकिन फिलिस्तीनी समाज में इसे “असममित समझौता” कहा गया।
अरब लीग देशों ने इसे “वास्तविकता को स्वीकार करने वाला कदम” बताया, जबकि ईरान और लेबनान के हिज़बुल्लाह ने इसे “अमेरिकी थोप” करार दिया।

यूरोपीय संघ ने मानवीय सहायता के विस्तार पर बल दिया, वहीं चीन और रूस ने अमेरिका की “एकतरफा कूटनीति” की आलोचना की।

इस प्रकार, यह समझौता शांति के साथ-साथ महाशक्ति प्रतिस्पर्धा का नया मंच भी बन गया।


मानवीय और विकासात्मक दृष्टिकोण

गाजा की स्थिति युद्धविराम के बाद भी भयावह है—
ढांचा नष्ट, जल-विद्युत संकट, शिक्षा और स्वास्थ्य तंत्र चरमरा चुका है।
मिस्र और संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से “गाजा रिकंस्ट्रक्शन इनिशिएटिव” की घोषणा हुई है, जिसमें

  • अरब फंडिंग,
  • अमेरिकी तकनीकी सहायता,
  • और इजरायली सुरक्षा नियंत्रण शामिल हैं।

हालांकि, फिलिस्तीनी आत्म-शासन की अस्पष्टता इस पहल की सबसे बड़ी कमजोरी बनी हुई है।
यदि “राजनीतिक प्रतिनिधित्व” और “स्थानीय शासन” स्पष्ट नहीं हुआ, तो यह युद्धविराम अल्पकालिक साबित हो सकता है।


🧭 UPSC दृष्टिकोण से प्रमुख आयाम


1. GS Paper 2 – अंतरराष्ट्रीय संबंध (International Relations)

मुख्य बिंदु:

  • अमेरिका की एकतरफा कूटनीति (Unilateral Diplomacy) की पुनरावृत्ति।
  • “शक्ति संतुलन” (Balance of Power) सिद्धांत का व्यावहारिक उपयोग।
  • अब्राहम समझौते (Abraham Accords) मॉडल का विस्तार — आर्थिक प्रोत्साहन के माध्यम से सामरिक शांति।
  • ट्रम्प सिद्धांत: “Peace through Strength” की वापसी।
  • क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन में ईरान का हाशियाकरण और अरब-इजरायल गठजोड़ की मजबूती।

2. GS Paper 2 – शासन और वैश्विक संस्थाएँ (Governance & Global Institutions)

मुख्य बिंदु:

  • संयुक्त राष्ट्र (UN) की सीमित भूमिका और प्रभावशीलता पर प्रश्नचिह्न।
  • अरब लीग और मिस्र जैसे क्षेत्रीय संगठनों की बढ़ती भूमिका।
  • अमेरिका द्वारा बहुपक्षीयता की बजाय एकतरफा पहल को प्राथमिकता।
  • मानवाधिकार और मानवीय सहायता के प्रश्नों पर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की निष्क्रियता
  • शांति प्रक्रियाओं में निजी सलाहकारों और कॉर्पोरेट मध्यस्थों की उभरती भूमिका।

3. GS Paper 3 – आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद (Security & Terrorism)

मुख्य बिंदु:

  • हमास, हिज़्बुल्लाह और हौथियों जैसे गैर-राज्य अभिनेताओं (Non-State Actors) की रणनीतिक भूमिका।
  • सैन्य निवारण (Deterrence) और कूटनीतिक समझौते का संयोजन।
  • ईरान पर अमेरिकी हमले को क्षेत्रीय निवारण नीति के रूप में प्रस्तुत करना।
  • आतंकवाद-विरोधी अभियानों में प्रॉक्सी युद्ध (Proxy Warfare) का महत्व।
  • गाजा के “डिमिलिटरीज़्ड ज़ोन” मॉडल को भविष्य के संघर्ष-समाधान के लिए उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है।

4. निबंध / अंतरराष्ट्रीय संबंध विषय (Essay / IR)

संभावित विश्लेषणात्मक प्रश्न:

  • “Peace through Strength” — क्या स्थायी शांति की यह अवधारणा नैतिक है?
  • क्या शक्ति आधारित कूटनीति मानवाधिकारों और न्याय की अवधारणा को कमजोर करती है?
  • क्या अमेरिकी नेतृत्व का पुनरुत्थान वैश्विक बहुध्रुवीयता को चुनौती देगा?

मुख्य विचार:

  • यथार्थवाद (Realism) बनाम मानवतावाद (Humanism) का टकराव।
  • शांति का तात्कालिक स्वरूप बनाम दीर्घकालिक स्थिरता।
  • मध्य पूर्व में “न्याय आधारित शांति” की आवश्यकता।


निष्कर्ष

ट्रम्प की गाजा युद्धविराम घोषणा मध्य पूर्व की राजनीति में "नई यथार्थवादी शांति" की ओर संकेत करती है—
जहाँ सैन्य शक्ति और राजनीतिक सौदेबाज़ी, नैतिक आदर्शों पर भारी पड़ती दिखती है।

यह सच है कि बंधक रिहाई और निरस्त्रीकरण से तत्काल राहत मिली है,
परन्तु फिलिस्तीनी राष्ट्र-निर्माण, मानवाधिकार पुनर्स्थापन और राजनीतिक वैधता जैसे प्रश्न अब भी अनसुलझे हैं।

स्थायी शांति तभी संभव होगी जब “शक्ति” के साथ “न्याय” और “साझेदारी” का संतुलन स्थापित किया जाए।
अन्यथा, यह समझौता भी मध्य पूर्व के इतिहास में केवल एक और अस्थायी युद्धविराम के रूप में दर्ज होगा।


लेखक टिप्पणी

यह विश्लेषण समकालीन स्रोतों और भू-राजनीतिक संदर्भों पर आधारित है। भविष्य की परिस्थितियाँ और फिलिस्तीनी आंतरिक राजनीति इस समझौते के वास्तविक परिणामों को पुनर्परिभाषित कर सकती हैं।


With Times of India Inputs 

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