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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Trump's 100% China Tariff Shock: Trade War Escalation, Economic Risks & Global Impact 2025

बढ़ते व्यापारिक तनाव: राष्ट्रपति ट्रम्प के चीनी आयात पर 100% कर की घोषणा का विश्लेषण

सार

8 अक्टूबर 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को झकझोर देने वाला निर्णय लेते हुए सभी चीनी आयातों पर 100% अतिरिक्त कर लगाने की घोषणा की। यह कदम 1 नवंबर से लागू होना प्रस्तावित है। ट्रम्प प्रशासन ने इसे अमेरिकी उद्योगों की सुरक्षा और चीन की "अनुचित व्यापारिक नीतियों" के प्रतिकार के रूप में प्रस्तुत किया है। किंतु आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार यह निर्णय वैश्विक मंदी की आशंकाओं, बाजार अस्थिरता और मुद्रास्फीति के दबाव को और गहरा कर सकता है।
यह लेख ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, नीति-तर्क, आर्थिक सिद्धांतों और प्रारंभिक बाजार प्रतिक्रियाओं के आधार पर इस घोषणा के व्यापक प्रभावों का मूल्यांकन करता है। विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि अल्पकालिक राजनीतिक लाभों के बावजूद यह कदम दीर्घकाल में अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रणाली की स्थिरता, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।


परिचय

अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक संबंध दशकों से प्रतिस्पर्धा और निर्भरता के जटिल समीकरण पर आधारित रहे हैं। व्यापार घाटा और तकनीकी असमानता लंबे समय से अमेरिकी नीति निर्माताओं के लिए चिंता का विषय रही है। 2018 में ट्रम्प प्रशासन द्वारा शुरू किया गया शुल्क युद्ध (Trade War) पहले चरण में इस्पात, एल्यूमिनियम और तकनीकी उत्पादों पर केंद्रित था, जो आगे चलकर सैकड़ों अरब डॉलर के आयातों तक फैल गया।

8 अक्टूबर 2025 की घोषणा इस सिलसिले का सबसे कठोर कदम मानी जा रही है। अब सभी चीनी वस्तुओं पर 100% कर लगाया जाएगा, जो पहले से लागू औसत 19% कर के अतिरिक्त है। इसका अर्थ है कि कुछ श्रेणियों में कुल शुल्क दर 100% से भी अधिक हो जाएगी। इससे पहले अप्रैल 2025 में जब इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं पर 60% कर लगाया गया था, तो अमेरिकी शेयर बाजारों में भारी गिरावट दर्ज की गई थी और फेडरल रिजर्व ने मंदी की 45% संभावना जताई थी।

इस संदर्भ में यह लेख यह विश्लेषण करता है कि क्या यह कदम अमेरिकी हितों को वास्तव में सुरक्षित करेगा या फिर यह वैश्विक आर्थिक अस्थिरता को और बढ़ा देगा।


ऐतिहासिक संदर्भ

अमेरिका की चीन-नीति लंबे समय से संरक्षणवाद और रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता के दो ध्रुवों के बीच झूलती रही है।
2018 में 1974 के Trade Act की धारा 301 के तहत ट्रम्प प्रशासन ने पहली बार चीनी उत्पादों पर शुल्क लगाए। ये शुल्क धीरे-धीरे $360 बिलियन के व्यापार तक पहुँच गए।
2021–2025 के दौरान बाइडेन प्रशासन ने इन शुल्कों को हटाने के बजाय बनाए रखा, जिससे व्यापारिक तनाव स्थायी रूप से संस्थागत रूप ले चुका था।

अप्रैल 2025 में, जब ट्रम्प ने सेमीकंडक्टर और तकनीकी उत्पादों पर 60% कर लगाया, तो अमेरिकी विनिर्माण उत्पादन में 3.2% की गिरावट, और डॉलर के मुकाबले युआन का तेज अवमूल्यन देखने को मिला। परिणामस्वरूप, वैश्विक बाजार से $4 ट्रिलियन मूल्य की पूँजी उड़ गई। इन घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया कि वैश्विक अर्थव्यवस्था एकीकृत आपूर्ति श्रृंखलाओं पर इतनी निर्भर हो चुकी है कि किसी एक देश की नीति पूरी प्रणाली को झकझोर सकती है।

इस पृष्ठभूमि में, अक्टूबर 2025 का निर्णय नई नीति नहीं, बल्कि उसी रणनीति का कठोर पुनरावर्तन है—अंतर केवल इसके पैमाने और तीव्रता का है।


नीति विवरण और तर्क

घोषणा के अनुसार, चीन से आयातित सभी उत्पादों पर 100% तक कर लगाया जाएगा—जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स, परिधान, मशीनरी, और दुर्लभ पृथ्वी खनिज शामिल हैं। इन श्रेणियों का हिस्सा 2024 में अमेरिका के कुल चीनी आयात का लगभग 85% था।

राष्ट्रपति ट्रम्प ने इसे “अमेरिकी नौकरियों की रक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में निर्णायक कदम” बताया। उन्होंने चीन के $350 बिलियन के व्यापार अधिशेष को “आर्थिक शोषण” का प्रतीक कहा।
समर्थक इसे infant industry argument से जोड़ते हैं—अर्थात घरेलू उद्योगों को विकसित होने तक अस्थायी सुरक्षा देना। अनुमान लगाया गया है कि इससे $100 बिलियन वार्षिक राजस्व उत्पन्न हो सकता है।

हालांकि आलोचकों का तर्क है कि यह निर्णय WTO के Most Favoured Nation सिद्धांतों का उल्लंघन करता है और यह वैश्विक व्यापार प्रणाली में विश्वसनीयता संकट पैदा करेगा। चीन पहले ही संकेत दे चुका है कि वह अमेरिकी कृषि उत्पादों और विमानों पर जवाबी कर लगा सकता है।


आर्थिक प्रभाव और बाजार प्रतिक्रियाएँ

घोषणा के तुरंत बाद अमेरिकी और एशियाई बाजारों में तेज गिरावट देखी गई।

  • नैस्डैक इंडेक्स में 4.1% की गिरावट
  • शंघाई कम्पोजिट में 3.8% की गिरावट
  • यूरोप के STOXX 600 में 1.2% की गिरावट

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि वैश्विक निवेशकों को यह नीति मंदी की संभावना के रूप में दिखाई दी।

आर्थिक दृष्टि से, यह निर्णय तथाकथित “इष्टतम शुल्क सिद्धांत” पर आधारित है—जहाँ बड़ा आयातक देश अपने शुल्क बढ़ाकर व्यापार की शर्तें सुधारने की कोशिश करता है। किंतु व्यवहारिक रूप से, पूर्व अनुभव बताते हैं कि ऐसे करों का भार अंततः उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है।
2018–2019 के दौरान लगाए गए करों की 93% लागत अमेरिकी उपभोक्ताओं ने वहन की थी।

नई नीति से मुद्रास्फीति में 2–3% की बढ़ोतरी की संभावना है, जिससे फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति और अधिक कठिन हो जाएगी।
साथ ही, आपूर्ति श्रृंखला के पुनर्गठन (जैसे वियतनाम, भारत, इंडोनेशिया की ओर उत्पादन का स्थानांतरण) की प्रक्रिया तेज होगी, पर इसकी वैश्विक लागत $1 ट्रिलियन से अधिक आँकी जा रही है।

राजनीतिक प्रतिक्रिया भी विभाजित है—जहाँ US Chamber of Commerce ने इसे “लापरवाह निर्णय” बताया, वहीं United Steelworkers Union ने इसे “देरी से मिली न्यायिक प्रतिकारी कार्रवाई” कहा।
बीजिंग ने इसे “आर्थिक धमकी” बताया और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का संकेत दिया—जो अमेरिका की रक्षा और नवीकरणीय ऊर्जा उद्योगों के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।


निष्कर्ष

राष्ट्रपति ट्रम्प का यह निर्णय अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध को नई ऊँचाई पर पहुँचा देता है। यह कदम “अमेरिका फर्स्ट” नीति की चरम अभिव्यक्ति है—जहाँ घरेलू सुदृढ़ीकरण को वैश्विक स्थिरता पर प्राथमिकता दी गई है।

हालाँकि सैद्धांतिक रूप से यह नीति अमेरिका के हितों की रक्षा का दावा करती है, किंतु व्यवहार में यह उपभोक्ता महँगाई, निवेश अस्थिरता, और अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वंद्विता को और बढ़ाएगी। अप्रैल 2025 की घटनाएँ पहले ही दिखा चुकी हैं कि इस प्रकार के शुल्क विनाशकारी आर्थिक श्रृंखला-प्रतिक्रिया को जन्म देते हैं।

भविष्य की दिशा स्पष्ट है—एकतरफा निर्णयों के बजाय संवाद और सहयोग की ओर लौटना आवश्यक है।
WTO के मंच पर या द्विपक्षीय वार्ताओं के माध्यम से ऐसी नीतियों की पुनर्समीक्षा ही वैश्विक व्यापार व्यवस्था को स्थिरता प्रदान कर सकती है।
आवश्यक है कि अमेरिका आर्थिक राष्ट्रवाद के साथ-साथ संरचनात्मक सुधारों और तकनीकी निवेश पर ध्यान केंद्रित करे, ताकि प्रतिस्पर्धा स्थायी और सहयोगी दोनों रूपों में आगे बढ़े।


प्रमुख निष्कर्ष (सारांश रूप में)

  • ट्रम्प प्रशासन का 100% कर निर्णय संरक्षणवाद की चरम अभिव्यक्ति है।
  • अल्पकाल में यह घरेलू राजस्व और राजनीतिक समर्थन बढ़ा सकता है।
  • किंतु दीर्घकाल में यह वैश्विक मंदी, मुद्रास्फीति और आपूर्ति अव्यवस्था को जन्म देगा।
  • WTO सिद्धांतों का उल्लंघन और संभावित जवाबी कार्रवाइयाँ विश्व व्यापार प्रणाली की विश्वसनीयता को प्रभावित करेंगी।
  • समाधान कूटनीतिक वार्ता, बहुपक्षीय सुधार, और तकनीकी प्रतिस्पर्धा में निहित है—न कि व्यापारिक अवरोधों में।


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