टोमाहॉक मिसाइल: वैश्विक शक्ति का प्रतीक, यूक्रेन संकट में भूमिका और भारत की निर्भय मिसाइल से तुलना
परिचय: एक मिसाइल की कहानी जो दुनिया बदल सकती है
कल्पना कीजिए एक ऐसा हथियार जो महासागरों से निकलकर हजारों किलोमीटर दूर किसी लक्ष्य को चुपके से नष्ट कर दे, बिना किसी पायलट के जोखिम के। यह कोई विज्ञान कथा नहीं, बल्कि अमेरिकी टोमाहॉक क्रूज मिसाइल की वास्तविकता है। 1970 के दशक में जन्मी यह मिसाइल आज वैश्विक सैन्य रणनीतियों का केंद्रबिंदु बनी हुई है, विशेष रूप से 2025 के यूक्रेन-रूस युद्ध में। अक्टूबर 2025 में, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन को इन मिसाइलों की आपूर्ति की संभावना जताई, तो पूरी दुनिया की निगाहें इस पर टिक गईं। यह न केवल सैन्य तकनीक की जीत है, बल्कि कूटनीति का एक शतरंजी दांव भी।
इस लेख में हम टोमाहॉक की तकनीकी जड़ों से लेकर उसके ऐतिहासिक उपयोग, वर्तमान विवादों तक की यात्रा करेंगे। साथ ही, भारत की स्वदेशी निर्भय मिसाइल से इसकी तुलना करेंगे, जो 'आत्मनिर्भर भारत' की मिसाल है। यह विश्लेषण न केवल तकनीकी तुलना पर आधारित है, बल्कि भू-राजनीतिक प्रभावों को भी छूता है, जिससे पाठक को एक समग्र दृष्टिकोण मिले। क्या एक मिसाइल युद्ध को समाप्त कर सकती है या इसे और भड़का सकती है? आइए, इस रोचक सफर पर चलें।
टोमाहॉक का जन्म और तकनीकी चमत्कार
टोमाहॉक, जिसका नाम अमेरिकी मूलनिवासियों के युद्ध कुल्हाड़ी से प्रेरित है, 1972 में अमेरिकी नौसेना के लिए विकसित की गई। यह एक सबसोनिक क्रूज मिसाइल है, मतलब ध्वनि की गति से धीमी, लेकिन इतनी चालाक कि दुश्मन रडार इसे पकड़ ही न पाएं। ब्लॉक IV संस्करण, जो सबसे उन्नत है, की रेंज 2,500 किलोमीटर तक है—यह दिल्ली से बीजिंग तक पहुंच सकती है, बिना रुके।
इसकी गति लगभग 880 किलोमीटर प्रति घंटा है, और यह जमीन से सिर्फ 30 मीटर ऊपर उड़ती है, पहाड़ों और घाटियों को चकमा देकर। निर्देशन प्रणाली में GPS, TERCOM (जो इलाके की आकृति से मैच करती है) और DSMAC (जो तस्वीरों से लक्ष्य पहचानती है) शामिल हैं, जिससे यह 10 मीटर के दायरे में हमला करती है। वजन 1,510 किलोग्राम, लंबाई 6.1 मीटर, और लागत प्रति मिसाइल 1.3 मिलियन डॉलर। यह जहाजों, पनडुब्बियों या भूमि से लॉन्च हो सकती है, और 450 किलोग्राम का वारहेड ले जाती है—पारंपरिक या पहले परमाणु (अब सेवामुक्त)।
रोचक तथ्य: टोमाहॉक ने 1991 के गल्फ युद्ध में पहली बार दुनिया को चौंकाया, जब यह इराकी ठिकानों पर 'सर्जिकल स्ट्राइक' की तरह काम की। यह मिसाइल न केवल हथियार है, बल्कि तकनीकी क्रांति का प्रतीक, जो ड्रोन युग की नींव रखती है।
ऐतिहासिक युद्धों में टोमाहॉक की भूमिका: विजय की कुंजी
टोमाहॉक की कहानी युद्ध के मैदानों से जुड़ी है। अमेरिका ने अब तक 2,300 से अधिक मिसाइलें तैनात की हैं। 1991 में गल्फ युद्ध के दौरान, यह सद्दाम हुसैन के कमांड सेंटर्स को ध्वस्त करने में काम आई। 2003 के इराक युद्ध में USS सैन जैसिंतो से लॉन्च होकर इसने बैगदाद को निशाना बनाया। 2017-2018 में सीरिया के रासायनिक हमलों के जवाब में, ट्रंप प्रशासन ने इनका उपयोग किया, जो असद शासन को चेतावनी थी।
हाल ही में, 2024-2025 के हूती विद्रोहियों पर हमलों में लाल सागर से 135 से अधिक टोमाहॉक दागी गईं। यह मिसाइल कम लागत वाली है—पायलट वाले विमानों से सस्ती और सुरक्षित। नए टाइफॉन लॉन्चर से यह कंटेनर में छिपकर भूमि से भी हमला कर सकती है, जो इसे और घातक बनाता है। इन उपयोगों से साफ है कि टोमाहॉक अमेरिकी 'शक्ति प्रक्षेपण' की रीढ़ है, जो दूर से युद्ध लड़ने की क्षमता देती है।
यूक्रेन युद्ध में टोमाहॉक: शांति का हथियार या एस्केलेशन का खतरा?
अक्टूबर 2025 में टोमाहॉक फिर सुर्खियों में हैं, जब ट्रंप ने यूक्रेन को इनकी आपूर्ति की बात कही। यूक्रेन-रूस युद्ध, जो 2022 से चल रहा है, में यूक्रेन लंबी रेंज वाली मिसाइलों की मांग कर रहा है ताकि रूसी शहरों जैसे मॉस्को या सेंट पीटर्सबर्ग पर हमला कर सके। ट्रंप ने 15 अक्टूबर को कहा, "हमारे पास बहुत सारे टोमाहॉक हैं," और यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की से 17 अक्टूबर की बैठक में इसकी चर्चा की।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसे "युद्ध के स्तर में गंभीर वृद्धि" बताया, जो अमेरिका-रूस संबंधों को तोड़ सकता है। 16 अक्टूबर की दो घंटे की फोन कॉल में ट्रंप ने पुतिन से बातचीत की, जिससे बुडापेस्ट में शिखर सम्मेलन की योजना बनी। ज़ेलेंस्की ने कहा कि ये मिसाइलें रूस को वार्ता की मेज पर लाएंगी, लेकिन ट्रंप ने बाद में असहमति दिखाई, कहते हुए कि अमेरिकी स्टॉक बचाना जरूरी है और बिना इसके प्रयोग के शांति स्थापित हो जाएगी।
एक रोचक मोड़: अमेरिकी कंपनी ओशकोश डिफेंस ने 13 अक्टूबर को X-MAV मोबाइल लॉन्चर पेश किया, जो यूक्रेन के लिए आदर्श हो सकता है। यदि आपूर्ति हुई, तो यूक्रेन रूसी लॉजिस्टिक्स और अड्डों को निशाना बना सकता है, लेकिन यह परमाणु जोखिम बढ़ाएगा। ट्रंप की रणनीति 'शांति के लिए ताकत' है—हथियारों की धमकी से रूस को पीछे हटाना। यूरोपीय संघ और नाटो चिंतित हैं, लेकिन समर्थन में। यह स्थिति दिखाती है कि कैसे एक मिसाइल वैश्विक संतुलन बदल सकती है।
भारत की निर्भय मिसाइल: टोमाहॉक का स्वदेशी समकक्ष
अब बात भारत की, जहां रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने निर्भय मिसाइल विकसित की है, जो टोमाहॉक से प्रेरित लगती है। निर्भय, अर्थात 'निर्भीक', एक सबसोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसकी रेंज 1,000-1,500 किलोमीटर है—टोमाहॉक से कम, लेकिन भारत की क्षेत्रीय जरूरतों के लिए पर्याप्त। इसकी गति भी मैक 0.74 है, और यह कम ऊंचाई पर उड़कर रडार से बचती है।
निर्देशन में INS, GPS और TERCOM शामिल हैं, साथ ही भारतीय RF सीकर। ITCM (Indigenous Technology Cruise Missile) संस्करण पूरी तरह स्वदेशी है, माणिक इंजन के साथ। लॉन्च मुख्यतः भूमि से, लेकिन जहाज और हवाई संस्करण पर काम चल रहा है। वारहेड क्षमता 450 किलोग्राम, और लागत टोमाहॉक से कम। विकास 2000 के दशक से शुरू हुआ, कुछ असफल परीक्षणों के बाद अब परिपक्व हो चुकी है।
भारत की एक और क्रूज मिसाइल है ब्रह्मोस, लेकिन यह निर्भय की तुलना में, सुपरसोनिक है (मैक 3), जो तेज लेकिन कम रेंज वाली है। निर्भय टोमाहॉक की तरह लंबी दूरी के सटीक हमलों के लिए है, जो पाकिस्तान या चीन के गहन लक्ष्यों के लिए उपयोगी। यह 'मेक इन इंडिया' का उदाहरण है, जो विदेशी निर्भरता कम करती है।
भू-राजनीतिक प्रभाव: एक वैश्विक जाल
टोमाहॉक की यूक्रेन आपूर्ति से युद्ध लंबा खिंच सकता है या शांति आ सकती है, लेकिन एस्केलेशन का खतरा बड़ा है। रूस इसे अमेरिकी हस्तक्षेप मानेगा, जो परमाणु धमकी को जन्म दे सकता है। ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति में हथियार बिक्री पर जोर है, न कि दान।
भारत के लिए, निर्भय क्षेत्रीय संतुलन बनाती है, विशेष रूप से LAC पर चीन के साथ। भारत-अमेरिका सहयोग से टोमाहॉक जैसी तकनीक साझा हो सकती है, लेकिन स्वदेशी विकास प्राथमिकता है। वैश्विक रूप से, ये मिसाइलें दिखाती हैं कि तकनीक कैसे युद्ध को डिजिटल और दूरस्थ बनाती है, लेकिन मानवीय लागत बढ़ाती है।
निष्कर्ष: भविष्य की दिशा और सबक
टोमाहॉक और निर्भय जैसी मिसाइलें सैन्य नवाचार की मिसाल हैं, जो शक्ति और शांति के बीच की महीन रेखा पर चलती हैं। यूक्रेन संकट में टोमाहॉक कूटनीति का हथियार बन सकती है, जबकि निर्भय भारत की उभरती ताकत दर्शाती है। बुडापेस्ट सम्मेलन और निर्भय के उन्नयन से भविष्य तय होगा। अंत में, ये हथियार याद दिलाते हैं कि तकनीक युद्ध जीत सकती है, लेकिन शांति इंसानी इच्छाशक्ति से आती है। क्या हम इनका उपयोग निर्माण के लिए करेंगे या विनाश के लिए? यह सवाल हमें सोचने पर मजबूर करता है।
संदर्भ
- न्यूयॉर्क टाइम्स, 17 अक्टूबर 2025
- मिलिट्री.कॉम, 16 अक्टूबर 2025
- वाशिंगटन पोस्ट, 17 अक्टूबर 2025
- द गार्जियन, 17 अक्टूबर 2025
- DRDO रिपोर्ट्स और भारतीय रक्षा मंत्रालय के स्रोत।
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