Sarah Mullally Appointment as Archbishop of Canterbury: Historical Significance & UPSC Analysis in Hindi
सारा मुलाली: एक ऐतिहासिक नियुक्ति — UPSC दृष्टिकोण से विश्लेषण
परिचय
3 अक्टूबर 2025 का दिन इतिहास में दर्ज हो गया। पहली बार 1,400 साल पुरानी एंग्लिकन परंपरा टूटी और डेम सारा मुलाली को कैंटरबरी का आर्चबिशप नामित किया गया। चर्च ऑफ इंग्लैंड, जिसे दुनिया भर के 85 मिलियन एंग्लिकन समुदायों का ‘मदर चर्च’ कहा जाता है, अब पहली बार महिला नेतृत्व में होगा। यह कदम न केवल लैंगिक समानता का प्रतीक है, बल्कि धार्मिक संस्थाओं में समावेशन और सुधार की दिशा में बड़ा संकेत भी। UPSC परीक्षार्थियों के लिए यह घटना धर्म-राज्य संबंध, संस्थागत सुधार, नैतिक नेतृत्व और धार्मिक कूटनीति पर केस स्टडी के रूप में बेहद उपयोगी है।
ऐतिहासिक महत्व और प्रतीकात्मकता
सातवीं शताब्दी से लेकर अब तक यह पद पूरी तरह पुरुषों के हाथों में रहा। मुलाली की नियुक्ति उस परंपरा को तोड़ती है और महिलाओं की भागीदारी को नया आयाम देती है। यह केवल व्यक्तिगत सफलता नहीं, बल्कि एक संदेश है कि धार्मिक संस्थाएं भी न्याय और प्रतिनिधित्व की ओर बढ़ सकती हैं।
फिर भी सवाल यह है—क्या केवल प्रतीकात्मक बदलाव काफी है? क्या यह कदम चर्च की गहरी चुनौतियों—पारंपरिक सोच, लैंगिक असमानता और जवाबदेही की कमी—को दूर कर पाएगा? यही बिंदु UPSC के GS-2 के लिए महत्वपूर्ण है, जहां प्रतीकात्मक कदम और वास्तविक सुधार का अंतर समझना जरूरी है।
नेतृत्व की पृष्ठभूमि और अनोखापन
सारा मुलाली का सफर अलग है। वह पहले इंग्लैंड की चीफ नर्स रही हैं और बाद में 2018 से लंदन की बिशप बनीं। उनका अनुभव बताता है कि करुणा, पारदर्शिता और पीड़ित-केंद्रित सोच के साथ भी नेतृत्व किया जा सकता है। यही “क्रॉस-डोमेन लीडरशिप” UPSC GS-4 (Ethics) में केस स्टडी बन सकती है।
चर्च और राज्य का संवैधानिक संबंध
ब्रिटेन में चर्च ऑफ इंग्लैंड और राज्य का रिश्ता गहरा है। आर्चबिशप का चयन क्राउन नॉमिनेशंस कमीशन की सिफारिश और राजा की मंजूरी से होता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि वहां धर्म और राज्य पूरी तरह अलग नहीं हैं।
भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश (अनुच्छेद 25–28) के संदर्भ में, यह तुलना UPSC उम्मीदवारों के लिए उपयोगी है।
वैश्विक असर और अंतर-आंग्लिकन तनाव
आंग्लिकन कम्युनियन (40 से अधिक प्रांतों का वैश्विक नेटवर्क) पहले से ही समलैंगिक विवाह और महिला पादरी जैसे मुद्दों पर बंटा हुआ है। अफ्रीका और ग्लोबल साउथ के कई रूढ़िवादी प्रांत मुलाली की नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं। इससे चर्च की एकता और भी चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
भारत जैसे बहुधार्मिक देश के लिए यह उदाहरण बताता है कि धार्मिक असहमति का असर सामाजिक सौहार्द और कूटनीति पर पड़ता है।
जवाबदेही और सेफगार्डिंग
हाल के वर्षों में चर्च कई यौन शोषण घोटालों और जवाबदेही की कमी से जूझा है। मुलाली का स्वास्थ्य क्षेत्र का अनुभव इस दिशा में मदद कर सकता है। उनकी प्राथमिकता होगी—पीड़ितों की सुरक्षा, पारदर्शिता और विश्वास की बहाली।
यह पहलू UPSC GS-4 में “इंस्टीट्यूशनल इथिक्स” का उदाहरण है।
आधुनिक चुनौतियां और नैतिक विमर्श
चर्च को अब LGBTQ+ अधिकार, सहायता प्राप्त मृत्यु और महिला पादरी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर फैसला लेना होगा। यहां मुलाली की करुणा और न्याय-आधारित सोच संतुलन बनाने में अहम होगी। UPSC GS-4 के लिए यह ‘Compassion vs Accountability’ का बढ़िया केस स्टडी है।
UPSC उम्मीदवारों के लिए संभावित प्रश्न
- GS-2/GS-4: “सारा मुलाली की नियुक्ति धार्मिक नेतृत्व में लैंगिक समावेशन का प्रतीक है—परंतु संस्थागत सुधार के लिए प्रतीकात्मकता पर्याप्त नहीं। टिप्पणी कीजिए।”
- Ethics (GS-4): “धार्मिक नेतृत्व में करुणा और जवाबदेही का संतुलन—सारा मुलाली के उदाहरण से स्पष्ट कीजिए।”
- GS-2/IR: “धार्मिक नेताओं की नियुक्ति का वैश्विक कूटनीति और सॉफ्ट पावर पर प्रभाव—चर्च ऑफ इंग्लैंड के नए आर्चबिशप के संदर्भ में विश्लेषण कीजिए।”
निष्कर्ष
सारा मुलाली की नियुक्ति ऐतिहासिक है, लेकिन इसकी असली सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या यह कदम चर्च की संरचनात्मक समस्याओं और नैतिक संकटों को हल कर पाता है।
यदि पारदर्शिता, पीड़ित सुरक्षा और वैश्विक संवाद जैसे क्षेत्रों में सुधार होता है, तो यह घटना धार्मिक संस्थाओं के लिए परिवर्तनकारी मॉडल बन सकती है। UPSC उम्मीदवारों को इसे धर्म-राज्य संबंध, नैतिक नेतृत्व और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव जैसे आयामों से जोड़कर पढ़ना चाहिए।
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