प्रस्तावित पुतिन–ट्रम्प बेरिंग जलडमरूमध्य रेल सुरंग: एक भू-राजनीतिक और आर्थिक विश्लेषण
सारांश
रूस के RDIF संप्रभु धन कोष के प्रमुख एवं राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के निवेश दूत किरिल दिमित्रिएव द्वारा प्रस्तावित बेरिंग जलडमरूमध्य रेल और मालवाहक सुरंग ने वैश्विक भू-राजनीतिक चर्चाओं को नया आयाम दिया है।
लगभग 70 मील लंबी और 8 बिलियन डॉलर की अनुमानित लागत वाली यह परियोजना रूस के चुकोत्का क्षेत्र को अमेरिका के अलास्का राज्य से जोड़ेगी। इसे प्रतीकात्मक रूप से “पुतिन–ट्रम्प सुरंग” कहा गया है, जो रूस–अमेरिका संबंधों में संभावित सहयोग और सामरिक मेलजोल का प्रतीक मानी जा रही है।
यह लेख इस परियोजना की तकनीकी संभाव्यता, आर्थिक तर्क, और भू-राजनीतिक निहितार्थों का विश्लेषण करता है, इसे 19वीं सदी से अब तक चले आ रहे यूरेशिया–अमेरिका कनेक्टिविटी के ऐतिहासिक विचारों की निरंतरता के रूप में देखता है।
1. परिचय
बेरिंग जलडमरूमध्य पृथ्वी के उन दुर्लभ भौगोलिक बिंदुओं में से है जो दो महाद्वीपों—यूरेशिया और उत्तर अमेरिका—को जोड़ते हुए, मात्र 82 किमी (51 मील) चौड़ी समुद्री सीमा से अलग करते हैं।
इतिहास में कई बार इसे आर्थिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक संपर्क सेतु के रूप में जोड़ने की योजनाएँ बनीं, परंतु कभी मूर्त रूप नहीं ले सकीं।
2025 में दिमित्रिएव द्वारा प्रस्तुत नया प्रस्ताव, इस विचार को पुनर्जीवित करता है। इसमें रेल और मालवाहक परिवहन सुरंग का निर्माण प्रस्तावित है, जो रूस–अमेरिका सहयोग के नए युग का प्रतीक बताया जा रहा है।
इसका उद्देश्य केवल भौगोलिक जुड़ाव नहीं, बल्कि ऊर्जा, व्यापार, और आर्कटिक क्षेत्र के संसाधनों के साझा उपयोग के लिए आधार तैयार करना भी है।
2. ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
बेरिंग जलडमरूमध्य को जोड़ने का विचार 19वीं सदी से ही इंजीनियरों और अर्थशास्त्रियों को आकर्षित करता रहा है।
1860 के दशक में अमेरिकी उद्यमियों ने ट्रांस-साइबेरियन रेलवे के विस्तार के रूप में इस सुरंग का विचार रखा था।
शीत युद्ध के दौरान, सोवियत योजनाकारों ने इसे पुनर्जीवित किया, किंतु अमेरिका–सोवियत अविश्वास ने इसे निष्प्रभावी बना दिया।
2007 और 2011 में रूस ने पुनः ऐसी योजनाएँ प्रस्तुत कीं, परंतु आर्थिक प्रतिबंधों और राजनीतिक अनिश्चितताओं के कारण वे ठंडे बस्ते में चली गईं (स्मिथ, 2012)।
2025 का प्रस्ताव एक बार फिर रूस–अमेरिका संबंधों की नई “व्यक्तिगत कूटनीति” की झलक देता है, जहाँ “पुतिन–ट्रम्प सुरंग” नाम प्रतीकात्मक रूप से दो भिन्न राजनीतिक व्यक्तित्वों के बीच भू-राजनीतिक सौहार्द की कल्पना प्रस्तुत करता है।
3. तकनीकी संभाव्यता
यदि यह परियोजना साकार होती है, तो यह दुनिया की सबसे लंबी समुद्री सुरंग बन जाएगी—जापान की सेइकन सुरंग (33.5 मील) और यूके–फ्रांस चैनल सुरंग (31 मील) से कहीं अधिक।
परंतु, यह कार्य सरल नहीं है।
बेरिंग जलडमरूमध्य की भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियाँ अत्यंत कठोर हैं—भूकंपीय सक्रियता, परमाफ्रॉस्ट, तेज धाराएँ, और -20°C तक के तापमान जैसी चुनौतियाँ इस परियोजना को जटिल बनाती हैं।
इंजीनियरिंग दृष्टि से, यह सुरंग अत्याधुनिक टनल बोरिंग मशीनों, अत्यधिक दबाव झेलने वाले मटेरियल और स्थायी ऊर्जा अवसंरचना पर निर्भर होगी।
आठ वर्षों में इसके पूर्ण होने का अनुमान अवास्तविक रूप से आशावादी लगता है—क्योंकि चैनल सुरंग जैसी परियोजनाएँ 15 वर्षों तक चलीं (जोन्स और कार्टर, 2018)।
साथ ही, चुकोत्का और अलास्का जैसे दूरस्थ क्षेत्रों में अतिरिक्त सड़क, बिजली और बंदरगाह नेटवर्क विकसित करना होगा, जिससे वास्तविक लागत अनुमान से कई गुना बढ़ सकती है।
4. आर्थिक व्यवहार्यता
इस परियोजना का मुख्य आर्थिक औचित्य आर्कटिक संसाधनों के दोहन से जुड़ा है।
यूएस जियोलॉजिकल सर्वे (2008) के अनुसार, आर्कटिक में विश्व के 13% अनदेखे तेल भंडार और 30% प्राकृतिक गैस भंडार मौजूद हैं।
एक रेल मार्ग इन संसाधनों को वैश्विक बाजार तक पहुँचाने में सहायक हो सकता है।
फिर भी, आर्थिक यथार्थ जटिल है।
चुकोत्का की आबादी लगभग 50,000 और अलास्का की 7 लाख है—जो व्यापारिक मांग के दृष्टिकोण से सीमित है।
साथ ही, आर्कटिक में संसाधन दोहन की लागत अत्यधिक है, जिससे निवेशकों के लिए आकर्षण घटता है (पीटरसन, 2020)।
दूसरी ओर, नवीकरणीय ऊर्जा की ओर वैश्विक संक्रमण दीर्घकालिक रूप से तेल–गैस मांग को घटा सकता है, जिससे सुरंग की आर्थिक स्थिरता संदिग्ध हो जाती है।
वित्तपोषण मॉडल भी अस्पष्ट है।
दिमित्रिएव ने “अंतरराष्ट्रीय भागीदारी” की बात कही है, पर यह स्पष्ट नहीं कि कौन देश निवेश करेगा।
चीन, जो आर्कटिक बुनियादी ढांचे में पहले से सक्रिय है (वांग, 2021), संभावित भागीदार हो सकता है, किंतु उसकी भागीदारी रूस–अमेरिका परियोजना की रणनीतिक प्रकृति को जटिल बना सकती है।
5. भू-राजनीतिक प्रभाव
यह परियोजना वैश्विक शक्ति संतुलन के संदर्भ में अत्यधिक संवेदनशील है।
रूस इसे अपनी आर्कटिक नीति का हिस्सा मानता है—जहाँ वह सैन्य, व्यापारिक और बुनियादी ढांचे के ज़रिए क्षेत्रीय प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है (लारुएल, 2020)।
अमेरिका के लिए यह सुरंग रणनीतिक अवसर और सुरक्षा जोखिम दोनों है।
एक ओर यह अलास्का के महत्व को बढ़ा सकती है, दूसरी ओर रूस की उत्तरी उपस्थिति को वैध ठहरा सकती है।
यह परियोजना चीन के लिए भी चिंताजनक हो सकती है, जिसने “पोलर सिल्क रोड” पहल के तहत आर्कटिक मार्गों में निवेश किया है।
यदि यह सुरंग सक्रिय होती है, तो यह चीन के लिए प्रतिस्पर्धी मार्ग बन सकती है।
इसके अतिरिक्त, चुकोत्का और अलास्का के स्वदेशी समुदायों के पर्यावरणीय व सांस्कृतिक अधिकारों पर भी प्रश्न उठेंगे (होवेल्सरुड एट अल., 2015)।
6. चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
राजनीतिक चुनौतियाँ:
रूस–अमेरिका संबंध वर्तमान में यूक्रेन संघर्ष, साइबर हमले, और आर्कटिक शासन जैसे मुद्दों से तनावपूर्ण हैं। ऐसे में इस स्तर की परियोजना के लिए द्विपक्षीय भरोसा बनाना कठिन है।
पर्यावरणीय खतरे:
आर्कटिक क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र है।
सुरंग निर्माण से समुद्री जीवों—विशेषकर व्हेल और वालरस—के प्रवासी मार्ग प्रभावित हो सकते हैं (मूर एट अल., 2019)।
साथ ही, बर्फीली परतों के पिघलने से कार्बन रिलीज़ बढ़ सकती है, जिससे जलवायु पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेंगे।
सामाजिक दृष्टि:
स्थानीय समुदायों की भागीदारी के बिना कोई भी परियोजना “उपनिवेशवादी विकास” के समान मानी जा सकती है।
इसलिए, सामाजिक परामर्श और स्थानीय सहभागिता को नीति का अभिन्न अंग बनाना आवश्यक होगा।
7. निष्कर्ष
“पुतिन–ट्रम्प बेरिंग जलडमरूमध्य रेल सुरंग” एक ऐसी अवधारणा है जो भौगोलिक, आर्थिक और राजनीतिक सीमाओं को एक साथ चुनौती देती है।
यह विचार मानव सभ्यता की उस आकांक्षा को दर्शाता है, जो दो महाद्वीपों को जोड़कर सहयोग और संपर्क का नया अध्याय लिखना चाहती है।
फिर भी, यह परियोजना वर्तमान परिदृश्य में तकनीकी जटिलता, वित्तीय अनिश्चितता और भू-राजनीतिक अविश्वास से घिरी हुई है।
इतिहास में ऐसे कई प्रयास हुए हैं जो “शांति के पुल” कहे गए, किंतु राजनीतिक यथार्थ ने उन्हें कभी साकार नहीं होने दिया।
इस सुरंग को वास्तविकता में बदलने के लिए आवश्यक होगा कि—
- रूस और अमेरिका स्थायी सहयोग तंत्र विकसित करें,
- पर्यावरणीय आकलन पारदर्शी हों,
- और स्वदेशी अधिकारों को सम्मानपूर्वक शामिल किया जाए।
जब तक ये शर्तें पूरी नहीं होतीं, “पुतिन–ट्रम्प सुरंग” केवल एक भविष्यवादी प्रतीकात्मक विचार बनी रहेगी—मानव कल्पना और वैश्विक राजनीति की सीमाओं का एक रोचक उदाहरण।
संदर्भ सूची
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- Laruelle, M. (2020). Russia’s Arctic Strategies and the Future of the Far North. Routledge.
- Moore, S. E. et al. (2019). Environmental Impacts of Arctic Infrastructure. Marine Policy, 104, 45–56.
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