Pakistan’s Investment Exodus: How Economic Instability and Resource Politics Are Eroding Its Sovereignty
पाकिस्तान: निवेश का पलायन, संसाधनों की राजनीति और संप्रभुता का संकट
(संपादकीय विश्लेषण – अक्टूबर 2025)
दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक परिदृश्य में पाकिस्तान एक बार फिर चर्चा में है—लेकिन इस बार कारण आतंकवाद नहीं, बल्कि आर्थिक पलायन और संसाधनों की राजनीति है। कभी दक्षिण एशिया का उभरता औद्योगिक केंद्र कहे जाने वाले पाकिस्तान से अब बहुराष्ट्रीय कंपनियां तेजी से अपना कारोबार समेट रही हैं। प्रॉक्टर एंड गैंबल, माइक्रोसॉफ्ट, शेल और उबर जैसी दिग्गज कंपनियों का बाहर निकलना यह संकेत देता है कि देश अब “नो इनवेस्टमेंट जोन” में तब्दील हो चुका है।
1. निवेश पलायन की जड़ें: अस्थिरता और नीति का अभाव
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है। विदेशी मुद्रा भंडार गिर चुके हैं, रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर है, और IMF की शर्तों ने आम जनता पर करों का बोझ बढ़ा दिया है। नियामकीय बाधाएं, लाभ प्रत्यावर्तन पर प्रतिबंध, और ऊर्जा लागत में बेतहाशा वृद्धि ने निवेशकों का विश्वास तोड़ दिया है।
अक्टूबर 2025 में P&G ने अपने उत्पादन वाणिज्यिक कार्य बंद करने की घोषणा की, जबकि माइक्रोसॉफ्ट ने 25 वर्षों बाद पाकिस्तान से विदाई ले ली। शेल पहले ही 2023 में निकल चुका था, और उबर व कैरीम जैसी सेवाओं ने उपभोक्ता मांग और निवेशक अनिश्चितता के चलते कारोबार बंद कर दिया।
2. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भारी गिरावट
फरवरी 2025 में पाकिस्तान का FDI 45% तक गिर गया — जो निवेशकों के विश्वास संकट का स्पष्ट संकेत है। फार्मा कंपनियों के लिए मूल्य नियंत्रण, बौद्धिक संपदा की सुरक्षा की कमी और उच्च करों ने विदेशी पूंजी को और हतोत्साहित किया है।
इस पलायन का सबसे बड़ा प्रभाव रोज़गार पर पड़ा है — हजारों विनिर्माण नौकरियां खत्म हुईं, और शहरी मध्यम वर्ग की क्रयशक्ति घटती गई।
3. ट्रम्प-डील और संसाधनों का नया खेल
इसी बीच, सितंबर 2025 में पाकिस्तान ने अमेरिकी निजी फर्म US Strategic Metals के साथ 500 मिलियन डॉलर का समझौता ज्ञापन (MoU) किया। इसे ट्रम्प द्वारा व्यक्तिगत रूप से हस्ताक्षरित "रेयर अर्थ डील" बताना अतिशयोक्ति साबित हुआ है। यह एक निजी क्षेत्र की साझेदारी है, जिसमें पाकिस्तान की सेना से जुड़ी फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन (FWO) ने साझेदारी की है।
डील का उद्देश्य बालोचिस्तान में एंटीमनी, तांबा, सोना, टंगस्टन और रेयर अर्थ तत्वों की खोज करना है — यानी वही क्षेत्र जो दशकों से विद्रोह और स्थानीय असंतोष का केंद्र रहा है।
4. चीन बनाम अमेरिका: संसाधनों की होड़
जहां चीन पहले से CPEC के माध्यम से ग्वादर बंदरगाह और खनिज संसाधनों पर अपना प्रभाव रखता आया है, वहीं यह अमेरिकी निवेश उस प्रभाव को चुनौती देने की कोशिश है। अमेरिका अब चीन के मुकाबले “सप्लाई चेन डाइवर्सिफिकेशन” के तहत रेयर अर्थ खनिजों की वैकल्पिक आपूर्ति खोज रहा है।
पर सवाल यह है — इस संसाधन राजनीति में पाकिस्तान को क्या मिल रहा है? स्थानीय स्तर पर न तो रोज़गार बढ़ रहे हैं, न ही बुनियादी ढांचा सुधर रहा है। बल्कि, बालोचिस्तान के लोग अपनी भूमि पर बाहरी नियंत्रण और खनन से पर्यावरणीय क्षति झेल रहे हैं।
5. पाकिस्तान की दोहरी हानि: पूंजी और संप्रभुता दोनों पर संकट
विदेशी कंपनियों के पलायन से पाकिस्तान की उत्पादन क्षमता घट रही है, जबकि जो विदेशी कंपनियां बची हैं, वे देश के प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण बढ़ा रही हैं।
इसका अर्थशास्त्रीय निष्कर्ष यह है कि — पाकिस्तान अब “प्रोडक्शन हब” से “रिसोर्स एक्सप्लॉइटेशन जोन” में बदल रहा है। IMF की शर्तों और कर सुधारों ने जहां आम नागरिक की क्रयशक्ति को सीमित कर दिया, वहीं विदेशी MoU ने संप्रभुता के बचे-खुचे दायरे को भी संकुचित कर दिया है।
6. निष्कर्ष: अवसरों से अधिक हानि का दौर
पाकिस्तान आज एक ऐसे मोड़ पर है, जहां नीतिगत स्थिरता, पारदर्शिता और सुशासन की अनुपस्थिति ने आर्थिक ढांचे को खोखला कर दिया है। विदेशी निवेशक बाहर जा रहे हैं, जबकि विदेशी शक्तियां उसके संसाधनों पर दावा ठोक रही हैं।
यह परिदृश्य केवल आर्थिक संकट नहीं, बल्कि संप्रभुता के क्षरण का प्रतीक भी है। अगर पाकिस्तान अपनी नीतिगत असंगति, संस्थागत भ्रष्टाचार और सैन्य-आर्थिक गठजोड़ पर नियंत्रण नहीं करता, तो वह “कर्ज और संसाधन-निर्भर राष्ट्र” बनने की दिशा में आगे बढ़ेगा — जहां जनता के पास केवल महंगाई और मोहभंग का बोझ रह जाएगा।
— संपादकीय टीम, Gynamic GK
(UPSC दृष्टिकोण से: यह केस स्टडी अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक अर्थशास्त्र, संसाधन भू-राजनीति, और संप्रभुता पर आधारित शासन संबंधी प्रश्नों के विश्लेषण के लिए उपयोगी है।)
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