मिशन सुदर्शन चक्र: सीमा सुरक्षा में नई कवच रेखा या सामरिक संकेत?
भारत-पाक सीमा पर सुरक्षा की परतें और सघन होती जा रही हैं। भारतीय सेना ने हाल ही में ‘मिशन सुदर्शन चक्र’ के तहत छह AK-630 एयर डिफेंस गन सिस्टम्स की खरीद के लिए आरएफपी (Request for Proposal) जारी की है। यह निर्णय केवल एक तकनीकी खरीद नहीं, बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों में बदलती सुरक्षा चुनौतियों के प्रति एक सामरिक प्रतिक्रिया भी है — विशेष रूप से तब, जब ड्रोन, रॉकेट, आर्टिलरी और मोर्टार (URAM) जैसे खतरों की प्रकृति तेज़ी से विकसित हो रही है।
🔹 AK-630: हवा में मौत की गति
AK-630 मूलतः सोवियत रूस में विकसित 30 मिमी, छह-नली (six-barrel) रोटरी कैनन प्रणाली है — जिसे Close-In Weapon System (CIWS) कहा जाता है। यह जहाजों पर आखिरी रक्षा पंक्ति के रूप में प्रयोग की जाती रही है, ताकि कम ऊँचाई पर उड़ते मिसाइल, हेलीकॉप्टर या ड्रोन को तत्काल नष्ट किया जा सके।
अब इसी सिद्धांत को स्थलीय (land-based) रूप में भारतीय सेना सीमांत इलाकों में उतारने जा रही है। इस प्रणाली का ट्रेलर-माउंटेड संस्करण 4 किमी तक की दूरी पर कम ऊँचाई वाले हवाई लक्ष्यों को भेदने में सक्षम माना जा रहा है। इसकी फायर रेट — यानी प्रति मिनट गोलियों की बौछार — लगभग 3,000 से 5,000 राउंड तक हो सकती है।
इसकी विशेषता यह है कि यह लक्ष्य पहचानने और भेदने में अत्यंत तीव्र है। जैसे ही कोई ड्रोन या लो-फ्लाइंग ऑब्जेक्ट राडार और इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल प्रणाली की पकड़ में आता है, AK-630 कुछ ही सेकंड में उसे निशाना बना सकती है।
🔹 सीमा पर तैनाती: रणनीति और संकेत
रिपोर्ट्स के अनुसार, ये प्रणालियाँ संवेदनशील सीमावर्ती इलाकों, धार्मिक स्थलों और घनी आबादी वाले क्षेत्रों के पास तैनात की जाएंगी। उद्देश्य स्पष्ट है —
- ड्रोन और मोर्टार हमलों से नागरिक-संरक्षण,
- सीमावर्ती इन्फ्रास्ट्रक्चर की रक्षा,
- और पाकिस्तान-आधारित तत्वों के प्रति निवारक संदेश (deterrent signal) देना।
हाल के वर्षों में पाकिस्तान की ओर से छोटे ड्रोन के ज़रिए हथियार, नशा और निगरानी उपकरणों की घुसपैठ बढ़ी है। इन ‘लो-कॉस्ट’ खतरों से निपटने के लिए ‘लो-रेडंडेंसी’ परंतु तेज़-प्रतिक्रिया वाले सिस्टमों की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। AK-630 इस शून्य को भर सकता है।
🔹 बहु-स्तरीय हवाई रक्षा की दिशा में कदम
भारत 2035 तक एक ‘मल्टी-लेयर इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस नेटवर्क’ विकसित करने के लक्ष्य पर कार्य कर रहा है — जिसमें लंबी दूरी के S-400, मध्यम रेंज के QRSAM और छोटे रेंज के L-70, ZU-23-2 जैसे सिस्टम सम्मिलित हैं।
AK-630 इस श्रृंखला में “लास्ट लाइन ऑफ़ डिफेंस” के रूप में कार्य करेगा — यानी जब अन्य प्रणालियाँ लक्ष्य को भेदने में असफल हों, तब यह प्रणाली अंतिम बिंदु पर उसे नष्ट करेगी। इस तरह यह कम-ऊँचाई खतरों के लिए त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करेगी।
🔹 नागरिक और कानूनी आयाम
ऐसे हथियारों की तैनाती के साथ नागरिक सुरक्षा और Rules of Engagement (ROE) का पालन बेहद आवश्यक है।
- उच्च फायर रेट वाले हथियारों से श्रेपनल (छर्रे) फैलने की आशंका रहती है।
- धार्मिक स्थलों या घनी आबादी के पास तैनाती में हर फायरिंग निर्णय संवेदनशील होगा।
- इसलिए मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) में पारदर्शिता और प्रशिक्षण दोनों अहम होंगे।
इस संदर्भ में सेना का दृष्टिकोण यह रहा है कि “रक्षा के अधिकार” और “न्यूनतम दुष्प्रभाव” — दोनों का संतुलन रखा जाए।
🔹 चुनौतियाँ और सीमाएँ
- यांत्रिक जटिलता – ट्रेलर-माउंटेड सिस्टम की गतिशीलता बनाए रखने के लिए हाई-मोबिलिटी वाहनों और रखरखाव-श्रृंखला की आवश्यकता होगी।
- लॉजिस्टिक और प्रशिक्षण – सीमा क्षेत्रों में तैनात जवानों को उच्च-प्रेसिजन ऑपरेशन और उपकरण रखरखाव की विशेष ट्रेनिंग देनी होगी।
- कूटनीतिक संदेश – सीमावर्ती इलाकों में ऐसी उन्नत प्रणाली की तैनाती को पाकिस्तान आक्रामक संकेत के रूप में भी प्रस्तुत कर सकता है। इसलिए नीति निर्माताओं को रणनीतिक संतुलन बनाना होगा।
🔹 रणनीतिक अर्थ: तकनीक से मनोबल तक
‘मिशन सुदर्शन चक्र’ केवल एक हथियार खरीद नहीं, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक कवच भी है।
- यह संदेश देता है कि भारत अब ड्रोन युद्ध और लो-हाइट स्ट्राइक के नए युग के लिए तैयार है।
- यह दिखाता है कि देश की रक्षा-नीति अब प्रतिक्रिया नहीं, पूर्व-सुरक्षा (preemptive security) की दिशा में बढ़ रही है।
- साथ ही, यह स्वदेशी रक्षा कंपनियों जैसे AWEIL को रणनीतिक उत्पादन के क्षेत्र में नई ऊर्जा देता है — जो आत्मनिर्भर भारत की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
🔹 निष्कर्ष: ‘सुदर्शन चक्र’ की प्रतीकात्मकता
महाभारत में श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र ‘धर्म और रक्षा’ का प्रतीक था — त्वरित न्याय का शस्त्र। आधुनिक भारत में ‘मिशन सुदर्शन चक्र’ उसी प्रतीक का सैन्य रूपांतरण है — जहाँ सुरक्षा और संयम, दोनों का संतुलन साधना आवश्यक है।
AK-630 की तैनाती से भारतीय सेना को तत्कालिक रक्षा बल मिलेगा, नागरिक क्षेत्रों की सुरक्षा बढ़ेगी, और पाकिस्तान को स्पष्ट निवारक संदेश भी जाएगा। किंतु यह भी उतना ही जरूरी है कि इस प्रक्रिया में तकनीकी क्षमता के साथ मानवीय संवेदनशीलता और वैधानिक जिम्मेदारी बनी रहे।
भारत की सीमाएँ अब केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि तकनीकी और मनोवैज्ञानिक सीमाएँ भी हैं — और ‘मिशन सुदर्शन चक्र’ इन्हें सुरक्षित रखने की दिशा में एक निर्णायक कदम है।
UPSC GS Paper-3 (रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा) के अनुरूप।
स्रोत: Times of India, रक्षा मंत्रालय दस्तावेज़ और ओपन-सोर्स सैन्य रिपोर्ट्स।
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