भारत की रूस से तेल आयात बंद करने की प्रतिज्ञा: वैश्विक ऊर्जा राजनीति में नई धुरी का उदय
सारांश
16 अक्टूबर 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यह घोषणा की कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस से तेल आयात बंद करने का वादा किया है — यह कथन वैश्विक ऊर्जा व्यवस्था में एक संभावित भूचाल के समान है। यदि यह कदम वास्तविकता में परिवर्तित होता है, तो यह न केवल भारत की ऊर्जा और विदेश नीति में एक निर्णायक बदलाव होगा, बल्कि वैश्विक शक्ति-संतुलन, अमेरिका-भारत संबंधों और चीन की ऊर्जा रणनीति पर भी गहरा प्रभाव डालेगा। यह लेख इस कथित प्रतिज्ञा के संदर्भ, प्रभाव, चुनौतियों और रणनीतिक निहितार्थों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है, इसे अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा राजनीति, आर्थिक यथार्थवाद और वैश्विक भू-संतुलन की व्यापक रूपरेखा में रखकर।
परिचय
ऊर्जा राजनीति आधुनिक विश्व व्यवस्था की धुरी है। तेल और गैस केवल आर्थिक वस्तुएँ नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक हथियार हैं, जिनके माध्यम से राष्ट्र शक्ति, प्रभाव और सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से तेल व्यापार पर पश्चिमी प्रतिबंधों ने वैश्विक ऊर्जा तंत्र को पुनर्परिभाषित किया है।
इसी पृष्ठभूमि में ट्रम्प का यह दावा कि “भारत रूस से तेल नहीं खरीदेगा”, अमेरिका के नेतृत्व में रूस को आर्थिक रूप से कमजोर करने की व्यापक रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है।
भारत, जो अब तक अपने ऊर्जा हितों और रणनीतिक स्वायत्तता के बीच संतुलन साधता आया है, यदि इस दिशा में आगे बढ़ता है, तो यह उसकी “रणनीतिक स्वायत्तता” (Strategic Autonomy) की परिभाषा को पुनर्परिभाषित करेगा।
भारत की ऊर्जा निर्भरता और रूस के साथ ऐतिहासिक समीकरण
भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। उसकी कुल खपत का लगभग 85% हिस्सा आयात से पूरा होता है।
2022 के बाद जब यूरोप ने रूस पर प्रतिबंध लगाए, भारत ने व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए रियायती दरों पर रूसी तेल खरीदना शुरू किया। 2024 तक, भारत की कुल तेल आपूर्ति में रूस की हिस्सेदारी लगभग 38–40% तक पहुँच गई थी।
यह न केवल आर्थिक रूप से लाभप्रद था, बल्कि भारत और रूस के बीच लंबे समय से चले आ रहे रणनीतिक संबंधों — विशेषकर रक्षा, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष सहयोग — को और मजबूत करने वाला कारक भी था।
ऐसे में, रूस से तेल आयात बंद करने की किसी भी दिशा में बढ़ती प्रतिबद्धता भारत की ऊर्जा सुरक्षा संरचना में एक बड़े परिवर्तन का संकेत देती है।
अमेरिकी दबाव और रणनीतिक समीकरण
अमेरिका 2022 से लगातार यह प्रयास कर रहा है कि रूस के ऊर्जा निर्यात को सीमित कर उसकी सैन्य क्षमताओं को कमजोर किया जा सके।
भारत को इस प्रयास में शामिल करने की अमेरिकी रणनीति दो स्तरों पर काम करती है —
- राजनयिक दबाव: रूस से दूरी बनाने के बदले भारत को रक्षा, सेमीकंडक्टर, और तकनीकी सहयोग में अधिक लाभ देने की पेशकश।
- रणनीतिक सहयोग: क्वाड (Quad) और इंडो-पैसिफिक साझेदारी के भीतर भारत को “प्रमुख स्तंभ” के रूप में प्रस्तुत करना, जिससे चीन की बढ़ती क्षेत्रीय शक्ति का संतुलन बनाया जा सके।
यदि भारत अमेरिकी उद्देश्यों के अनुरूप अपनी ऊर्जा नीति में परिवर्तन करता है, तो यह वाशिंगटन और नई दिल्ली के बीच विश्वास की एक नई नींव रखेगा। लेकिन इससे उसकी स्वतंत्र विदेश नीति की धारणा पर प्रश्नचिह्न भी लग सकता है।
भू-राजनीतिक प्रभाव
1. भारत-अमेरिका संबंधों में नई निकटता
रूस से तेल आयात बंद करना अमेरिका के दृष्टिकोण से “रणनीतिक निष्ठा” का संकेत होगा। इससे भारत को रक्षा तकनीक हस्तांतरण, सेमीकंडक्टर उत्पादन और स्वच्छ ऊर्जा निवेश जैसे क्षेत्रों में लाभ मिल सकता है।
यह कदम क्वाड देशों के बीच समन्वय को भी सशक्त कर सकता है, विशेषकर दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में बढ़ती चीनी सक्रियता के सन्दर्भ में।
2. भारत-रूस संबंधों में तनाव की संभावना
भारत और रूस दशकों से विश्वास-आधारित साझेदार रहे हैं — 1971 की मित्रता संधि से लेकर ब्रह्मोस मिसाइल और कुदनकुलम परमाणु संयंत्र तक।
यदि भारत रूसी तेल से दूरी बनाता है, तो मॉस्को इसे “राजनीतिक झुकाव”(वाशिंगटन की ओर) के रूप में देख सकता है।
इससे रूस रक्षा आपूर्ति, परमाणु सहयोग या ब्रिक्स मंच पर भारत के हितों के प्रति कम सहानुभूति दिखा सकता है।
3. चीन का लाभ और शक्ति-संतुलन में परिवर्तन
भारत के हटने से रूस के लिए सबसे बड़ा उपभोक्ता चीन ही रहेगा।
मॉस्को, जो पहले ही बीजिंग पर निर्भरता बढ़ा रहा है, भारत की अनुपस्थिति में ऊर्जा छूट और निवेश के बदले चीन को अधिक रणनीतिक रियायतें दे सकता है।
यह परोक्ष रूप से रूस-चीन धुरी को और मजबूत करेगा — एक ऐसा परिदृश्य जो भारत और अमेरिका दोनों के लिए चिंताजनक है।
आर्थिक प्रभाव और घरेलू चुनौतियाँ
भारत ने रूस से जो तेल खरीदा, वह प्रायः $60 प्रति बैरल से कम कीमत पर उपलब्ध रहा। यह मूल्य नियंत्रण नीति ने भारत की मुद्रास्फीति को स्थिर रखा और राजकोषीय दबाव को कम किया।
रूस से तेल आयात रोकने का अर्थ होगा —
- ऊर्जा आयात बिल में तेज वृद्धि,
- रुपये पर दबाव,
- और पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों में वृद्धि।
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमानों के अनुसार, कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में हर $10 की वृद्धि से भारत का व्यापार घाटा लगभग $12 बिलियन बढ़ जाता है।
साथ ही, भारत की कई रिफाइनरियाँ रूसी उरल्स क्रूड पर आधारित तकनीकी प्रोफाइल रखती हैं। यदि आपूर्ति स्रोत बदलता है, तो रिफाइनरी अपग्रेड और परिवहन लागत भी बढ़ेगी।
राजनीतिक रूप से भी यह जोखिम भरा है, क्योंकि महंगाई का दबाव सरकार की जनस्वीकृति को प्रभावित कर सकता है — विशेष रूप से 2026 के राज्य चुनावों की पृष्ठभूमि में।
चीन का समीकरण और अमेरिकी रणनीति की सीमाएँ
ट्रम्प ने अपने बयान में चीन को भी इसी दिशा में मनाने की बात कही, परंतु यह संभावना लगभग नगण्य है।
चीन रूस के साथ एक “सीमा रहित साझेदारी” (No-Limits Partnership) की घोषणा पहले ही कर चुका है।
रूसी तेल उसके लिए सिर्फ ऊर्जा नहीं, बल्कि रणनीतिक स्थिरता का साधन है — विशेषकर तब जब अमेरिका उसके खिलाफ व्यापार और तकनीकी प्रतिबंधों का विस्तार कर रहा है।
यदि अमेरिका चीन पर दबाव डालता है, तो वह संभवतः उल्टा परिणाम देगा — बीजिंग और मॉस्को के बीच और अधिक घनिष्ठता बढ़ेगी।
अतः भारत पर दबाव डालना अमेरिका के लिए अपेक्षाकृत सरल विकल्प है, जबकि चीन को झुकाना कठिन और अप्रत्याशित परिणाम वाला कदम होगा।
रणनीतिक स्वायत्तता की परीक्षा
भारत की विदेश नीति का मूल दर्शन “राष्ट्रीय हित सर्वोपरि” रहा है।
रूस से तेल आयात रोकने की घोषणा यदि वास्तविक नीति बनती है, तो यह इस सिद्धांत की अगली परीक्षा होगी।
भारत को अपने ऊर्जा हित, रूस के साथ ऐतिहासिक मित्रता, और अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी — इन तीनों के बीच एक संतुलित समीकरण बनाना होगा।
संभावना यह है कि भारत एक “क्रमिक संक्रमण मॉडल” अपनाए —
- तत्काल प्रतिबंध के बजाय आयात में धीरे-धीरे कमी,
- वैकल्पिक स्रोतों की खोज (सऊदी अरब, UAE, अमेरिका, गुयाना आदि),
- और घरेलू ऊर्जा उत्पादन, विशेष रूप से हरित हाइड्रोजन व बायोफ्यूल में निवेश।
निष्कर्ष
रूस से तेल आयात बंद करने की भारत की कथित प्रतिज्ञा केवल एक आर्थिक निर्णय नहीं, बल्कि एक भूराजनीतिक घोषणापत्र है।
यदि यह लागू होती है, तो यह संकेत होगा कि भारत अब पश्चिमी गठजोड़ों के साथ और निकटता चाहता है — यद्यपि अपने “स्वायत्त” स्वरूप में।
परंतु, इसके साथ जुड़ी आर्थिक लागतें, रूस के साथ संबंधों पर संभावित तनाव, और चीन के लिए खुलती नई रणनीतिक संभावनाएँ — इन सबका संतुलन भारत को अत्यंत सावधानी से साधना होगा।
ऊर्जा राजनीति के इस दौर में, भारत का हर कदम उसकी राजनयिक विश्वसनीयता, रणनीतिक स्वायत्तता, और आर्थिक स्थिरता की त्रयी को परिभाषित करेगा।
आने वाले महीनों में यह स्पष्ट होगा कि यह प्रतिज्ञा एक अस्थायी राजनीतिक संकेत थी या नई दिल्ली की दीर्घकालिक नीति का आरंभिक संकेत।
संदर्भ
- Reuters (2025, October 16). Trump says India’s Modi will stop buying oil from Russia; aims to persuade China too.
- International Energy Agency (IEA), World Energy Outlook 2024.
- Reserve Bank of India, Annual Report on Trade and Balance of Payments 2023.
- Ministry of External Affairs (India), India–Russia Bilateral Relations 2024.
- Observer Research Foundation (2025), India’s Strategic Autonomy and the Energy Dilemma.
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