भारत की आर्थिक वृद्धि का परिदृश्य: आईएमएफ की अक्टूबर 2025 रिपोर्ट से उदित आख्यान
प्रस्तावना
हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की विश्व आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट केवल आंकड़ों की घोषणा नहीं करती, बल्कि वह विश्व अर्थव्यवस्था की नब्ज़ टटोलती है। अक्टूबर 2025 की रिपोर्ट भी इसी परंपरा का हिस्सा है — लेकिन इस बार इसमें भारत की कहानी कुछ अलग ढंग से उभरती है।
वैश्विक व्यापारिक अनिश्चितताओं, अमेरिकी टैरिफ नीति की धमकियों और यूरोपीय मंदी की पृष्ठभूमि में, भारत का 6.6% की अनुमानित वृद्धि दर हासिल करना आशा की किरण जैसा है। यह अनुमान अप्रैल 2025 की तुलना में 0.2 प्रतिशत अंक की वृद्धि दिखाता है, जबकि 2026 के लिए इसे मामूली रूप से घटाकर 6.2% किया गया है — मानो रिपोर्ट कह रही हो कि भारत की रफ़्तार मजबूत है, पर मंज़िल तक का रास्ता अब भी चुनौतीपूर्ण है।
दुनिया भर में जहां 2025 की वैश्विक वृद्धि दर 3.2% और 2026 में 3.1% रहने की संभावना है, वहीं भारत का यह दोगुनी गति से बढ़ना केवल आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि एक वैचारिक परिवर्तन का संकेत है — जहां विकास सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक, तकनीकी और नीतिगत जागरूकता का रूप ले रहा है।
2025: आशा और आत्मविश्वास का वर्ष
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने जिस दृढ़ता से अपने विकास पथ को पुनर्स्थापित किया है, वह किसी संयोग का परिणाम नहीं है। महामारी के झटके के बाद देश ने एक योजनाबद्ध आर्थिक रणनीति अपनाई — बुनियादी ढांचा, डिजिटल समावेशन और उत्पादन-उन्मुख नीति सुधारों का त्रिकोण।
राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) के तहत 111 लाख करोड़ रुपये के निवेश ने सड़कों, बंदरगाहों, ऊर्जा और शहरी परियोजनाओं को गति दी। उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI) ने विनिर्माण क्षेत्र में नई जान फूंकी, और अब भारत न केवल वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का एक हिस्सा है, बल्कि उसकी धुरी बनता जा रहा है।
स्टार्टअप पारिस्थितिकी की बात करें, तो भारत आज अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप केंद्र है। डिजिटल इंडिया और यूपीआई जैसे नवाचारों ने वित्तीय समावेशन को जन-आंदोलन बना दिया है — गांवों में मोबाइल से भुगतान अब रोज़मर्रा की आदत है, न कि किसी “नवाचार” की खबर।
इस बदलाव की गहराई इस तथ्य में दिखती है कि अब भारत की वृद्धि केवल उत्पादन या उपभोग से नहीं, बल्कि विचारों और तकनीकी आत्मविश्वास से संचालित हो रही है। यही कारण है कि 2025 का 6.6% का अनुमान केवल “संख्या” नहीं, बल्कि भारत के आत्मविश्वास की अभिव्यक्ति है।
लेकिन हर गति के साथ एक सावधानी
आईएमएफ ने 2026 के लिए अनुमान को घटाकर 6.2% किया है। यह कमी मामूली है, पर संकेत गहरा है।
भारत के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती है — गति को स्थायित्व में बदलना।
मुद्रास्फीति का दबाव बना हुआ है; वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें अभी भी 80 डॉलर प्रति बैरल के आसपास हैं। यदि अमेरिका या यूरोप में नीति सख्त होती है, तो उसका प्रभाव पूंजी प्रवाह और विनिमय दर पर पड़ सकता है।
कृषि क्षेत्र भी अनिश्चित मौसम के चक्र में फँसा है। जलवायु परिवर्तन अब एक दूर की चिंता नहीं, बल्कि हर मौसम में महसूस की जाने वाली हकीकत बन चुका है। ग्रामीण भारत की आय वृद्धि दर शहरों की तुलना में धीमी है, जिससे असमानता बढ़ती है। बेरोजगारी दर 6.5% के आसपास है — जो यह बताती है कि आर्थिक वृद्धि हमेशा रोज़गार वृद्धि में नहीं बदलती।
भारत के लिए यह वह बिंदु है जहां उसे “तेज़ी” से “संतुलन” की ओर बढ़ना होगा। एक ऐसी वृद्धि जो केवल उच्च वर्ग या महानगरों तक सीमित न रहे, बल्कि उस किसान और छोटे व्यापारी तक पहुँचे जो आर्थिक परिवर्तन के मूल में है।
वैश्विक संदर्भ में भारत की स्थिति
जब दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ धीमी गति से चल रही हैं — अमेरिका में वृद्धि लगभग 1.5%, यूरोप में 0.8% और चीन में 4.8% — तब भारत का 6% से ऊपर बने रहना एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। यह केवल विकास दर नहीं, बल्कि विश्वास दर है।
भारत अब वैश्विक आर्थिक विमर्श का हिस्सा नहीं, बल्कि उसका नेतृत्वकर्ता बनता जा रहा है। जी20, ब्रिक्स और अन्य मंचों पर भारत की उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि नीति, नवाचार और जनशक्ति का संयोजन किसी भी देश को वैश्विक शक्ति बना सकता है।
‘चाइना प्लस वन’ रणनीति के दौर में भारत विनिर्माण और निवेश के लिए एक भरोसेमंद विकल्प के रूप में उभरा है। यह न केवल आर्थिक अवसर है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में रणनीतिक लाभ का स्रोत भी है।
आगे की राह: नीति और समाज का संतुलन
भारत की आर्थिक यात्रा अब एक नये मोड़ पर है — जहां यह प्रश्न उठता है कि क्या वृद्धि केवल तेज़ होनी चाहिए या सार्थक भी?
- संरचनात्मक सुधारों की निरंतरता: भूमि और श्रम सुधारों के साथ पारदर्शी निवेश नीति भारत को एफडीआई के लिए और आकर्षक बना सकती है।
- मानव पूंजी का सशक्तिकरण: शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश केवल सामाजिक नहीं, आर्थिक प्राथमिकता भी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) और आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं उत्पादकता को दीर्घकालिक गति दे सकती हैं।
- हरित और डिजिटल भविष्य: भारत के 2070 के नेट ज़ीरो लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए अक्षय ऊर्जा और ईवी सेक्टर में निवेश आवश्यक है। डिजिटल क्षेत्र में एआई और साइबर सुरक्षा भारत की नई प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त हो सकते हैं।
यदि इन तीनों दिशाओं में तालमेल बैठा, तो भारत “विकसित भारत @2047” के लक्ष्य की ओर स्थिर और सतत रूप से आगे बढ़ सकता है।
निष्कर्ष
आईएमएफ की अक्टूबर 2025 की रिपोर्ट भारत की आर्थिक यात्रा को दो शब्दों में बयां करती है — संभावना और सावधानी।
संभावना इसलिए कि भारत आज भी दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है; और सावधानी इसलिए कि स्थिरता की राह में कई जटिल चुनौतियाँ हैं — वैश्विक मंदी, घरेलू असमानता और जलवायु जोखिम।
भारत के पास आज वह ऊर्जा, मानव पूंजी और नीति-संरचना है जो इसे न केवल एशिया का, बल्कि विश्व का विकास इंजन बना सकती है।
जरूरत है तो केवल इस गति को दिशा देने की — ताकि विकास का अर्थ सिर्फ “वृद्धि” न होकर “समावेश” बन जाए।
संदर्भ
- अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष। विश्व आर्थिक परिदृश्य (World Economic Outlook), अक्टूबर 2025।
- The Hindu (2025)। आईएमएफ ने भारत की वृद्धि दर 2025 के लिए 6.6% और 2026 के लिए 6.2% आंकी।
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