भारत-ऑस्ट्रेलिया रक्षा समझौता: इंडो-पैसिफिक में नई रणनीतिक एकता की शुरुआत
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हाल ही में संपन्न हुआ रक्षा समझौता केवल एक द्विपक्षीय दस्तावेज़ नहीं, बल्कि एक उभरते वैश्विक समीकरण का संकेत है। यह उस रणनीतिक दिशा की पुष्टि करता है जिसमें लोकतांत्रिक शक्तियाँ अब इंडो–पैसिफिक क्षेत्र की शांति और स्थिरता के लिए एकजुट हो रही हैं।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और ऑस्ट्रेलियाई उप–प्रधानमंत्री रिचर्ड मार्ल्स द्वारा हस्ताक्षरित यह समझौता दोनों देशों की सशस्त्र सेनाओं को परिचालन स्तर पर जोड़ने की दिशा में एक ठोस कदम है। “हम बहुत उत्साहित हैं,” रिचर्ड मार्ल्स के ये शब्द केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं, बल्कि उस नये विश्वास का प्रतीक हैं जो दिल्ली और कैनबरा के बीच पनप रहा है।
सामरिक गहराई की ओर एक निर्णायक कदम
इस समझौते का सबसे बड़ा उद्देश्य दोनों सेनाओं की परस्पर संचालनक्षमता (interoperability) को मजबूत करना है। अब दोनों देशों के रक्षा कमांड एक-दूसरे के साथ सीधे स्टाफ वार्ताएँ करेंगे — यानी सहयोग अब केवल कूटनीतिक स्तर तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि युद्ध-प्रशिक्षण, तकनीकी सहयोग और खुफिया साझाकरण तक विस्तृत होगा।
समुद्री सुरक्षा सहयोग इस समझौते का केंद्रीय तत्व है। दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर, जहां चीन की नौसैनिक गतिविधियाँ बढ़ती जा रही हैं, वहाँ भारत और ऑस्ट्रेलिया की संयुक्त गश्त क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को नया आकार दे सकती है। साथ ही, यह समझौता आपदा राहत, मानवीय सहायता, और साइबर सुरक्षा जैसे आधुनिक सुरक्षा आयामों को भी शामिल करता है।
ऐतिहासिक संदर्भ और संबंधों का विकास
भारत–ऑस्ट्रेलिया रक्षा संबंधों की जड़ें 2009 की सामरिक साझेदारी में हैं, लेकिन 2020 की “व्यापक सामरिक साझेदारी (Comprehensive Strategic Partnership)” ने इस रिश्ते में नई ऊर्जा भरी। क्वाड समूह (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) में बढ़ते समन्वय ने भी इस सहयोग को संस्थागत स्वरूप दिया।
पिछले तीन वर्षों में दोनों देशों ने ‘ऑस्मिन’ (AUSMIN) जैसे संयुक्त अभ्यासों के माध्यम से रक्षा संवाद को व्यावहारिक रूप दिया। अब यह समझौता इन सभी प्रयासों को एक स्पष्ट दिशा देता है — “कागजी सहयोग से वास्तविक सहयोग” की ओर एक ठोस संक्रमण।
इंडो–पैसिफिक में बदलता शक्ति समीकरण
इंडो–पैसिफिक वह भू–राजनीतिक केंद्र है जहाँ विश्व व्यापार का 60 प्रतिशत से अधिक संचालित होता है। यह क्षेत्र आज चीन की आक्रामक नीतियों, ताइवान जलडमरूमध्य में तनाव और हिंद महासागर में सैन्य विस्तार जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है।
ऐसे में भारत और ऑस्ट्रेलिया की सामरिक साझेदारी केवल आत्मरक्षा की नीति नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता की एक व्यापक रणनीति है। भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और ऑस्ट्रेलिया की ‘इंडो–पैसिफिक स्टेप–अप’ नीति अब एक साझा दृष्टि में परिणत होती दिख रही है। यह दृष्टि है — “मुक्त, खुला और समावेशी इंडो–पैसिफिक।”
आर्थिक और तकनीकी आयाम
रक्षा समझौता केवल सैन्य सहयोग तक सीमित नहीं है। इसके माध्यम से रक्षा प्रौद्योगिकी, अनुसंधान और औद्योगिक निवेश के नये अवसर खुलेंगे। भारत की ‘मेक इन इंडिया’ पहल और ऑस्ट्रेलिया की उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकी — दोनों का संयोजन द्विपक्षीय व्यापार को भी गति देगा।
साथ ही, यह सहयोग नौसैनिक इंजीनियरिंग, ड्रोन निगरानी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और अंतरिक्ष सुरक्षा जैसे भविष्य–मुखी क्षेत्रों तक विस्तृत हो सकता है। इस प्रकार यह समझौता 21वीं सदी के रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र की ओर अग्रसर है।
सामरिक स्वायत्तता और वैश्विक संतुलन
भारत लंबे समय से अपनी ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) की नीति पर कायम है। ऑस्ट्रेलिया के साथ यह समझौता उस स्वायत्तता को कमजोर नहीं करता, बल्कि सशक्त बनाता है। भारत अब ऐसे गठबंधनों का हिस्सा बन रहा है जो उसकी स्वतंत्र विदेश नीति को सीमित नहीं करते, बल्कि बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में उसके प्रभाव को बढ़ाते हैं।
इस साझेदारी के माध्यम से भारत एक “संतुलनकारी शक्ति” (balancing power) के रूप में उभरता है, जो न तो किसी धुरी का अंग है और न ही किसी ध्रुव की छाया — बल्कि अपने स्वतंत्र दृष्टिकोण से वैश्विक शांति और स्थिरता में योगदान देने वाली शक्ति है।
चुनौतियाँ और संभावनाएँ
हर सामरिक साझेदारी की तरह, इस समझौते के सामने भी कुछ चुनौतियाँ हैं —
- ऑस्ट्रेलिया में AUKUS(Australia–United Kingdom–United States Security Partnership) गठबंधन से जुड़ी राजनीतिक बहसें,
- भारत में सीमित रक्षा बजट और तकनीकी निर्भरता की चिंताएँ,
- तथा चीन की संभावित प्रतिक्रिया।
फिर भी, इन चुनौतियों से अधिक महत्वपूर्ण वह परस्पर विश्वास है जो इस समझौते की नींव है। “हम बहुत उत्साहित हैं” – यह वाक्य केवल उत्साह नहीं, बल्कि उस भविष्य की घोषणा है जहाँ भारत और ऑस्ट्रेलिया नये सामरिक क्षितिज तलाशेंगे।
निष्कर्ष
भारत–ऑस्ट्रेलिया रक्षा समझौता केवल सैन्य दस्तावेज़ नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों, नियम–आधारित वैश्विक व्यवस्था और सामूहिक सुरक्षा की पुनर्पुष्टि है। यह समझौता उस साझेदारी का प्रतीक है जो सुरक्षा से आगे बढ़कर विश्वास, समानता और साझा आकांक्षाओं पर आधारित है।
इंडो–पैसिफिक की नई सुबह में भारत और ऑस्ट्रेलिया दो ऐसे स्तंभ बनकर उभर रहे हैं जो क्षेत्र को न केवल सुरक्षित रखेंगे, बल्कि उसे अधिक संतुलित, समावेशी और न्यायसंगत भी बनाएंगे।
यह वास्तव में “एक अत्यंत महत्वपूर्ण कदम” है — जो आने वाले दशकों की रणनीतिक दिशा तय करेगा।
With Hindustan Times Inputs
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