आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक 2025: भारत और वैश्विक परिप्रेक्ष्य
आर्थिक स्वतंत्रता किसी भी देश की आर्थिक समृद्धि और विकास का आधार होती है। यह व्यक्तियों और व्यवसायों को अपनी आर्थिक गतिविधियों को स्वतंत्र रूप से संचालित करने की क्षमता प्रदान करती है, जिसमें श्रम, पूंजी और संपत्ति पर नियंत्रण शामिल है। हेरिटेज फाउंडेशन और वॉल स्ट्रीट जर्नल द्वारा प्रकाशित आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक (Index of Economic Freedom) 2025 दुनिया भर के 184 देशों में इस स्वतंत्रता के स्तर को मापता है। यह सूचकांक 12 कारकों—जैसे संपत्ति अधिकार, भ्रष्टाचार से मुक्ति, सरकारी खर्च, व्यापार स्वतंत्रता, निवेश स्वतंत्रता, और वित्तीय स्वतंत्रता—के आधार पर देशों को 0 से 100 के पैमाने पर स्कोर देता है। यह निबंध 2025 की इस रिपोर्ट के वैश्विक रुझानों, भारत की स्थिति, और आर्थिक स्वतंत्रता के महत्व पर प्रकाश डालता है।
आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक का महत्व
आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक केवल एक रैंकिंग तालिका नहीं है, बल्कि यह देशों की आर्थिक नीतियों और उनके नागरिकों की समृद्धि के बीच संबंध को दर्शाता है। उच्च आर्थिक स्वतंत्रता वाले देशों में प्रति व्यक्ति आय अधिक, गरीबी कम, और सामाजिक-आर्थिक विकास तेज होता है। उदाहरण के लिए, 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष 20% स्वतंत्र देशों की प्रति व्यक्ति आय निचले 20% से पांच गुना अधिक है। यह सूचकांक नीति निर्माताओं को यह समझने में मदद करता है कि किन क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है, जैसे कि भ्रष्टाचार नियंत्रण, श्रम नियमों में लचीलापन, या व्यापार अवरोधों को कम करना।
2025 की वैश्विक स्थिति
2025 की रिपोर्ट में वैश्विक औसत स्कोर 59.7 है, जो "मुख्य रूप से अस्वतंत्र" श्रेणी में आता है। यह स्कोर पिछले 30 वर्षों में सबसे निचले स्तर पर है, जो वैश्विक स्तर पर आर्थिक स्वतंत्रता में गिरावट को दर्शाता है। इस गिरावट के प्रमुख कारणों में नीतिगत अस्थिरता, व्यापार प्रतिबंधों में वृद्धि, और सरकारी हस्तक्षेप का बढ़ना शामिल है।
शीर्ष पांच देशों में सिंगापुर (83.5), स्विट्जरलैंड (81.3), आयरलैंड (80.4), ताइवान (79.9), और लक्जमबर्ग (78.2) शामिल हैं। सिंगापुर लगातार अपनी मजबूत संपत्ति अधिकार व्यवस्था, कम भ्रष्टाचार, और व्यापार-अनुकूल नीतियों के कारण शीर्ष पर बना हुआ है। दूसरी ओर, उत्तर कोरिया (2.3), क्यूबा, और वेनेजुएला जैसे देश "दमित" श्रेणी में हैं, जहां आर्थिक स्वतंत्रता लगभग नगण्य है। क्षेत्रीय दृष्टिकोण से, यूरोप सबसे अधिक स्वतंत्र क्षेत्र है, जबकि उप-सहारा अफ्रीका और मध्य पूर्व/उत्तरी अफ्रीका में स्वतंत्रता का स्तर कम है।
भारत की स्थिति
2025 की रिपोर्ट में भारत 184 देशों में 128वें स्थान पर है, जिसका स्कोर 53.0 है। यह स्कोर इसे "मुख्य रूप से अस्वतंत्र" श्रेणी में रखता है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 40 देशों में भारत 26वें स्थान पर है। 2024 की तुलना में भारत के स्कोर में 0.1 अंक की मामूली वृद्धि हुई है, लेकिन पिछले सात वर्षों में यह सबसे निचला स्कोर है।
भारत की ताकत:
- सरकारी खर्च (74.2): भारत का सरकारी खर्च स्कोर अपेक्षाकृत मजबूत है, जो राजकोषीय नीतियों में कुछ हद तक संतुलन दर्शाता है।
- व्यवसाय स्वतंत्रता (72.3): व्यवसाय शुरू करने और संचालित करने की प्रक्रिया में सुधार हुआ है, विशेष रूप से डिजिटल प्रक्रियाओं और एकल-खिड़की मंजूरी जैसे सुधारों के कारण।
- कर बोझ (71.3): भारत का कर ढांचा मध्यम स्तर पर है, जो व्यवसायों और व्यक्तियों के लिए कुछ राहत प्रदान करता है।
भारत की कमजोरियां:
- सरकारी अखंडता (38.7): भ्रष्टाचार भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार की आवश्यकता है।
- श्रम स्वतंत्रता (40.7): जटिल श्रम कानून और नियामक बाधाएं श्रम बाजार की स्वतंत्रता को सीमित करती हैं।
- वित्तीय स्वास्थ्य (20.4): उच्च राजकोषीय घाटा और सार्वजनिक ऋण भारत की आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करते हैं।
- संपत्ति अधिकार (51.1) और न्यायिक प्रभावशीलता (48.9): संपत्ति अधिकारों की सुरक्षा और न्यायिक प्रणाली की दक्षता में सुधार की आवश्यकता है।
भारत के समक्ष चुनौतियां और अवसर
भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन आर्थिक स्वतंत्रता के मामले में यह अभी भी मध्यम स्तर पर है। भ्रष्टाचार, जटिल नियम-कानून, और नौकरशाही बाधाएं निवेश और व्यापार के लिए चुनौतियां पैदा करती हैं। हाल के वर्षों में, भारत ने कुछ सुधार किए हैं, जैसे कि मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, और जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर), जिन्होंने व्यवसाय करने की प्रक्रिया को सरल बनाया है। फिर भी, श्रम कानूनों में लचीलापन, भ्रष्टाचार नियंत्रण, और न्यायिक सुधार जैसे क्षेत्रों में और प्रगति की आवश्यकता है।
2025 की रिपोर्ट भारत के लिए एक अवसर है कि वह अपनी नीतियों को और अधिक बाजार-अनुकूल बनाए। उदाहरण के लिए, श्रम सुधारों को लागू करने और निवेश के लिए अनुकूल वातावरण बनाने से भारत की रैंकिंग में सुधार हो सकता है। इसके अलावा, डिजिटल अर्थव्यवस्था और स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ावा देने से भारत वैश्विक निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बन सकता है।
निष्कर्ष
आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक 2025 यह दर्शाता है कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक स्वतंत्रता में कमी आई है, लेकिन सिंगापुर और स्विट्जरलैंड जैसे देश इस मामले में अग्रणी बने हुए हैं। भारत, 128वें स्थान और 53.0 के स्कोर के साथ, अभी भी "मुख्य रूप से अस्वतंत्र" श्रेणी में है। भारत की ताकत, जैसे कि सरकारी खर्च और व्यवसाय स्वतंत्रता, उसकी प्रगति को दर्शाती हैं, लेकिन भ्रष्टाचार, श्रम नियमों की जटिलता, और राजकोषीय घाटे जैसी कमजोरियां इसे पीछे खींचती हैं।
आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना भारत के लिए न केवल आर्थिक विकास, बल्कि सामाजिक समृद्धि और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए भी महत्वपूर्ण है। नीतिगत सुधारों, पारदर्शिता, और निवेश-अनुकूल वातावरण के माध्यम से भारत इस सूचकांक में अपनी स्थिति को बेहतर कर सकता है। इसके लिए सरकार, निजी क्षेत्र, और नागरिक समाज को मिलकर काम करना होगा ताकि भारत एक अधिक स्वतंत्र और समृद्ध अर्थव्यवस्था बन सके।
स्रोत: हेरिटेज फाउंडेशन (heritage.org/index), 2025 आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक।
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