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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

DRDO’s Indigenous Military Combat Parachute System: A Leap Towards India’s Strategic Self-Reliance

स्वदेशी सैन्य युद्ध पैराशूट प्रणाली: डीआरडीओ की तकनीकी उपलब्धि और सामरिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक

परिचय

भारत ने हाल ही में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के माध्यम से स्वदेशी सैन्य युद्ध पैराशूट प्रणाली का 32,000 फीट की ऊँचाई पर सफल परीक्षण किया है। यह केवल एक तकनीकी प्रयोग नहीं, बल्कि भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता और सामरिक स्वावलंबन की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह प्रणाली न केवल सैनिकों और उपकरणों की सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित करती है, बल्कि कठिनतम भौगोलिक परिस्थितियों में भारतीय सशस्त्र बलों की परिचालन क्षमता को भी नई ऊँचाइयाँ प्रदान करती है।


तकनीकी विशेषताएँ: विज्ञान और विश्वसनीयता का संगम

डीआरडीओ द्वारा विकसित यह पैराशूट प्रणाली उच्च-ऊँचाई वाले सैन्य अभियानों के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन की गई है। 32,000 फीट की ऊँचाई पर सफल परीक्षण इसकी अद्वितीय स्थिरता, नियंत्रण क्षमता और मजबूती को प्रमाणित करता है। इस ऊँचाई पर वायुदाब अत्यंत कम होता है और ऑक्सीजन की कमी के कारण पैराशूट सिस्टम का नियंत्रण जटिल हो जाता है। ऐसे में इस प्रणाली की कार्यक्षमता डीआरडीओ की तकनीकी परिपक्वता का संकेत है।

यह पैराशूट प्रणाली —

  • सैनिकों और युद्ध सामग्री को उच्च ऊँचाई से सुरक्षित उतारने में सक्षम है।
  • हल्के, टिकाऊ और ताप-सहनशील मिश्रित पदार्थों से निर्मित है।
  • सटीक दिशा-नियंत्रण (Precision Landing) प्रणाली से लैस है, जो लैंडिंग के दौरान अधिकतम नियंत्रण प्रदान करती है।
  • अत्याधुनिक त्वरित परिनियोजन (Rapid Deployment) तंत्र से युक्त है, जिससे सैनिकों को न्यूनतम समय में युद्धक्षेत्र में उतारा जा सके।

इन विशेषताओं के कारण यह प्रणाली विशेष रूप से हिमालयी सीमांत क्षेत्रों, जैसे लद्दाख, सियाचिन या अरुणाचल प्रदेश के पर्वतीय इलाकों में सामरिक दृष्टि से अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकती है।


सामरिक महत्व: ऊँचाइयों से सुरक्षा की नई परिभाषा

भारत की भौगोलिक स्थिति और सीमावर्ती चुनौतियों को देखते हुए, यह स्वदेशी पैराशूट प्रणाली एक सामरिक बल गुणक (Strategic Force Multiplier) की भूमिका निभा सकती है।

  1. उच्च ऊँचाई पर तेज़ परिनियोजन:
    सियाचिन या लद्दाख जैसे सीमांत क्षेत्रों में सैनिकों और सामरिक उपकरणों की तेज़ आपूर्ति युद्धक्षमता को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकती है। यह प्रणाली ऐसे अभियानों को तेज़, लचीला और अधिक सुरक्षित बनाएगी।

  2. विदेशी निर्भरता में कमी:
    अब तक भारत पैराशूट प्रणालियों के लिए फ्रांस, रूस और अमेरिका जैसे देशों पर निर्भर रहा है। डीआरडीओ की यह प्रणाली इस निर्भरता को समाप्त कर ‘आत्मनिर्भर भारत’ की परिकल्पना को साकार करती है।

  3. वैश्विक रक्षा बाजार में भारत की उपस्थिति:
    विश्वभर में उच्च-ऊँचाई वाली सैन्य पैराशूट प्रणालियों की माँग बढ़ रही है। डीआरडीओ की तकनीक भारत को एक संभावित निर्यातक राष्ट्र के रूप में स्थापित कर सकती है, जिससे भारत की रक्षा उद्योग को आर्थिक और कूटनीतिक दोनों लाभ मिलेंगे।


डीआरडीओ और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में प्रगति

डीआरडीओ ने पिछले दशक में स्वदेशी मिसाइल प्रणालियाँ (आकाश, अग्नि, पृथ्वी), रडार प्रणाली (अर्जुन, नेत्र) और संचार तंत्र जैसे अनेक क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता हासिल की है। अब पैराशूट प्रणाली का यह परीक्षण उस तकनीकी श्रृंखला का विस्तार है, जो भारत को "रक्षा तकनीक आयातक" से "रक्षा तकनीक निर्यातक" राष्ट्र में रूपांतरित कर रही है।

यह सफलता भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिफेंस इंडिजेनाइजेशन पॉलिसी’ को बल देती है। साथ ही, यह दर्शाती है कि भारतीय वैज्ञानिक और इंजीनियर अब विश्वस्तरीय प्रौद्योगिकियाँ विकसित करने में सक्षम हैं।


संभावित नागरिक उपयोग और मानवीय अनुप्रयोग

यह पैराशूट प्रणाली केवल युद्ध तक सीमित नहीं है। इसके नागरिक और मानवीय उपयोग भी व्यापक हैं —

  • आपदा राहत अभियानों में राहत सामग्री की आपूर्ति,
  • बाढ़, भूकंप या हिमस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं में तेज़ मानवीय सहायता पहुँचाना,
  • सीमा क्षेत्रों में चिकित्सा आपूर्ति और खाद्य वितरण जैसे गैर-सैन्य अभियानों में भी इसकी उपयोगिता सिद्ध हो सकती है।

इस प्रकार यह प्रणाली न केवल रक्षा सुरक्षा, बल्कि मानवीय सुरक्षा के क्षेत्र में भी भारत की क्षमता का विस्तार करती है।


चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा

हालांकि परीक्षण सफल रहा, लेकिन बड़े पैमाने पर उत्पादन और परिचालन एकीकरण में कुछ चुनौतियाँ शेष हैं —

  • लागत नियंत्रण: उन्नत सामग्रियों और तकनीक के उपयोग से उत्पादन लागत बढ़ सकती है, जिसे व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनाना आवश्यक है।
  • गुणवत्ता परीक्षण: प्रत्येक पैराशूट यूनिट की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए बहु-स्तरीय गुणवत्ता जांच आवश्यक होगी।
  • अनुकूलन और स्वचालन: भविष्य में डीआरडीओ को स्वचालित लैंडिंग सिस्टम, AI-आधारित नियंत्रण और स्मार्ट सेंसर जैसी तकनीकें जोड़नी होंगी ताकि यह प्रणाली अधिक कुशल और अनुकूल बन सके।

यदि इन चुनौतियों का समाधान हो जाता है, तो भारत न केवल स्वदेशी उपयोग में आत्मनिर्भर बनेगा बल्कि वैश्विक पैराशूट प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्रों में भी शामिल हो सकता है।


निष्कर्ष

डीआरडीओ की स्वदेशी सैन्य युद्ध पैराशूट प्रणाली का सफल परीक्षण भारत की रक्षा विज्ञान यात्रा में एक ऐतिहासिक अध्याय जोड़ता है। यह उपलब्धि तकनीकी नवाचार, सामरिक आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय गौरव — तीनों का संगम है।

यह प्रणाली न केवल भारतीय सशस्त्र बलों की परिचालन क्षमता को सुदृढ़ करेगी, बल्कि भारत की वैश्विक रक्षा पहचान को भी पुनर्परिभाषित करेगी। आने वाले वर्षों में यदि इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन और निर्यात प्रारंभ होता है, तो यह भारत को न केवल आत्मनिर्भर बल्कि रक्षा प्रौद्योगिकी में नेतृत्वकर्ता राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक निर्णायक कदम होगा।


संदर्भ:

  • The Hindu (16 अक्टूबर 2025), “A military combat parachute system, indigenously developed by the DRDO, has been successfully tested.”


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