Cuba–US Relations 2025: Rising Diplomatic Tensions Amid the Russia–Ukraine War and Global Power Shifts
क्यूबा और अमेरिका: शीतयुद्ध की छाया में नई कूटनीतिक टकराहट
अमेरिका और क्यूबा के संबंध हमेशा से द्वंद्व और अविश्वास के बीच झूलते रहे हैं। शीतयुद्ध के दौरान जन्मी यह शत्रुता आज भी अमेरिकी विदेश नीति के कठोर रुख में दिखाई देती है। 1960 के दशक से जारी अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंध (Embargo) न केवल क्यूबा की अर्थव्यवस्था को कमजोर करते रहे हैं, बल्कि पूरे लैटिन अमेरिकी क्षेत्र में अमेरिका की नीतियों पर सवाल भी खड़े करते रहे हैं। 2025 में डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के साथ यह पुराना विवाद एक बार फिर गर्मा गया है—लेकिन इस बार इसका संदर्भ शीतयुद्ध नहीं, बल्कि रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़ा है।
रूस के साथ क्यूबा की निकटता और नई विवाद रेखा
रॉयटर्स की हालिया रिपोर्ट ने यह खुलासा किया है कि अमेरिकी विदेश विभाग ने अपने राजनयिकों को संयुक्त राष्ट्र में उस वार्षिक प्रस्ताव के खिलाफ अभियान चलाने का निर्देश दिया है, जो पिछले तीन दशकों से अमेरिका के क्यूबा प्रतिबंध को समाप्त करने की मांग करता रहा है। इस बार अमेरिका का तर्क है कि क्यूबा रूस के साथ मिलकर यूक्रेन युद्ध में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल है।
अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का दावा है कि लगभग 1,000 से 5,000 तक क्यूबाई नागरिक रूसी सेनाओं के साथ यूक्रेन में लड़ रहे हैं। यूक्रेनी एजेंसी (HUR) का अनुमान इससे भी बड़ा है—20,000 तक भाड़े के सैनिकों की भर्ती, जिनमें से 6,000–7,000 युद्धक्षेत्रों में सक्रिय हैं। यह संख्या केवल युद्ध की नहीं, बल्कि क्यूबा की आर्थिक विवशता की कहानी भी कहती है। मुद्रास्फीति, ईंधन संकट और बेरोज़गारी से जूझते क्यूबाई युवाओं को रूस आकर्षक वेतन और सुरक्षा के वादों के साथ भर्ती कर रहा है।
हवाना सरकार ने इन आरोपों को "पूर्णतः निराधार" बताया है और कहा है कि कुछ निजी एजेंसियाँ युवाओं को गुमराह कर रही हैं। किंतु अमेरिकी प्रशासन इसे राज्य-प्रायोजित सहयोग मानता है और क्यूबा को रूस के "गैर-पश्चिमी गठबंधन" का सक्रिय सदस्य बताता है।
ट्रम्प की कठोर नीति और "राज्य प्रायोजित आतंकवाद" का ठप्पा
जनवरी 2025 में कार्यभार संभालने के बाद ट्रम्प ने क्यूबा को फिर से "State Sponsor of Terrorism" की सूची में डाल दिया—जो ओबामा काल के सुधारों से एकदम विपरीत कदम था। वित्तीय लेन-देन पर नए प्रतिबंध लगाए गए, अमेरिका-क्यूबा यात्रा नियंत्रण को सख्त किया गया और उन तीसरे देशों को भी चेतावनी दी गई जो क्यूबाई डॉक्टरों या श्रमिकों की सेवाएँ लेते हैं।
जून 2025 में जारी National Security Presidential Memorandum (NSPM) में ट्रम्प प्रशासन ने क्यूबा के आर्थिक संकट को उसकी "भ्रष्टाचार और अक्षमता" का परिणाम बताया। वास्तव में यह केवल हवाना पर दबाव नहीं था, बल्कि अमेरिका का एक राजनयिक संकेत भी था कि जो देश रूस के साथ खड़े होंगे, उन्हें आर्थिक अलगाव का सामना करना होगा।
संयुक्त राष्ट्र में कूटनीतिक संघर्ष
संयुक्त राष्ट्र महासभा में हर वर्ष क्यूबा के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाने के लिए प्रस्ताव आता है, और हर बार भारी बहुमत से पारित भी होता है। पिछले वर्ष यह 187-2-1 मतों से पारित हुआ था—केवल अमेरिका और इज़राइल विरोध में थे। अब, ट्रम्प प्रशासन अपने सहयोगियों से “नहीं” वोट या तटस्थता की अपील कर रहा है।
यह केवल क्यूबा को अलग-थलग करने की कवायद नहीं है, बल्कि एक संदेश है कि अमेरिका अपने गैर-पश्चिमी विरोधियों पर वैश्विक मंचों पर दबाव बनाए रखेगा। इस नीति को ट्रम्प की "कुल दबाव रणनीति" (Total Pressure Strategy) कहा जा रहा है।
क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य: वेनेज़ुएला, निकारागुआ और लैटिन अमेरिका
क्यूबा के प्रति अमेरिकी आक्रामकता केवल हवाना तक सीमित नहीं है। इसका सीधा संबंध वेनेज़ुएला और निकारागुआ जैसे देशों से है, जिन्हें अमेरिका “तानाशाही शासन” कहता है। हाल ही में अमेरिकी नौसेना ने वेनेज़ुएला के तट के पास ड्रग-तस्करी के आरोप में कुछ जहाजों पर हमला किया। हवाना ने इसे “क्षेत्र में सैन्यीकरण की रणनीति” बताया और निंदा की।
क्यूबा के विदेश मंत्री ब्रूनो रॉड्रिगेज ने संयुक्त राष्ट्र में कहा कि अमेरिका अपने Drug War को “लैटिन अमेरिका में राजनीतिक हस्तक्षेप” का औजार बना रहा है। यह बयान केवल वेनेज़ुएला या निकारागुआ की रक्षा नहीं थी, बल्कि एक व्यापक वैचारिक प्रतिरोध का हिस्सा था—जिसमें क्यूबा स्वयं को अमेरिका-विरोधी धुरी का बौद्धिक नेतृत्वकर्ता मानता है।
वैश्विक शक्ति-संतुलन और क्यूबा की भूमिका
आज का क्यूबा रूस, चीन, ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देशों के साथ “गैर-पश्चिमी गठबंधन” में खुद को खड़ा देखता है। यह समूह वैश्विक व्यवस्था में अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती देने का प्रयास कर रहा है।
परंतु यह भी उतना ही सत्य है कि क्यूबा की इस नीति के पीछे कोई महान वैचारिक लक्ष्य नहीं, बल्कि जीवित रहने की आर्थिक मजबूरी है।
रूस-यूक्रेन युद्ध में क्यूबाई युवाओं की उपस्थिति इस बात का प्रतीक है कि छोटे देश वैश्विक शक्ति संघर्षों में मोहरों की तरह इस्तेमाल हो रहे हैं। अमेरिका इसे हवाना की “रूस पर निर्भरता” बताता है, जबकि क्यूबा इसे अपनी “रणनीतिक स्वतंत्रता” कहता है।
कूटनीतिक प्रभावशीलता और नैतिक प्रश्न
ट्रम्प की कठोर नीति अल्पकालिक दबाव तो बना सकती है, परंतु दीर्घकाल में यह अमेरिका की कूटनीतिक साख को कमजोर कर सकती है। संयुक्त राष्ट्र में अधिकांश विकासशील देश अब भी क्यूबा के पक्ष में हैं, क्योंकि वे अमेरिकी प्रतिबंधों को औपनिवेशिक विरासत मानते हैं।
इसके अतिरिक्त, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका में क्यूबाई डॉक्टरों और चिकित्सा सहायता की व्यापक उपस्थिति ने हवाना की सॉफ्ट पावर को मज़बूत किया है।
प्रश्न यह भी उठता है कि क्या क्यूबा पर दबाव डालना वास्तव में लोकतंत्र और मानवाधिकारों को बढ़ावा देता है, या यह केवल पुराने शीतयुद्धीय प्रतिशोध की पुनरावृत्ति है?
निष्कर्ष
क्यूबा-अमेरिका संघर्ष आज केवल दो देशों की कहानी नहीं है; यह वर्तमान वैश्विक राजनीति के ध्रुवीकरण का प्रतीक है—जहाँ एक ओर अमेरिका नेतृत्व वाले पश्चिमी लोकतंत्र हैं, तो दूसरी ओर रूस-चीन नेतृत्व वाला विरोधी गुट।
ट्रम्प प्रशासन का उद्देश्य क्यूबा को अलग-थलग कर रूस पर अप्रत्यक्ष दबाव बनाना है, परंतु यह रणनीति लैटिन अमेरिकी स्थिरता के लिए खतरा भी बन सकती है।
क्यूबा को दंडित करने से अधिक जरूरी है—संवाद, निवेश और मानवीय सहयोग के माध्यम से उसे मुख्यधारा में लाना।
यदि 21वीं सदी में वैश्विक व्यवस्था को टिकाऊ बनाना है, तो छोटे देशों को बड़े युद्धों के मोहरे बनने से रोकना ही सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत होगी।
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