चीन की तेल भंडारण रणनीति — भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा का सबक
विश्व राजनीति और अर्थव्यवस्था का सबसे निर्णायक तत्व आज “ऊर्जा” बन चुकी है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि ऊर्जा की आपूर्ति और मूल्य किसी भी देश की आर्थिक स्थिरता और कूटनीतिक ताकत को गहराई से प्रभावित करते हैं। इसी पृष्ठभूमि में चीन द्वारा हाल ही में अपनी रणनीतिक तेल भंडारण क्षमता में तेज़ी से विस्तार करने की खबर केवल एक आर्थिक कदम नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। यह कदम भारत सहित सभी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सबक प्रस्तुत करता है — कि ऊर्जा सुरक्षा केवल संसाधन का प्रश्न नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और आत्मनिर्भरता का मूल स्तंभ है।
🔹 चीन की दीर्घदृष्टि: ऊर्जा को शक्ति में बदलने की नीति
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने बीते दो वर्षों में अपने तेल भंडारण स्थलों की संख्या और क्षमता दोनों को अभूतपूर्व गति से बढ़ाया है। यह केवल आपूर्ति व्यवधान से बचाव का उपाय नहीं, बल्कि वैश्विक ऊर्जा बाजार पर प्रभाव जमाने की एक रणनीतिक चाल है।
चीन का लक्ष्य है कि वैश्विक संकटों के दौरान भी उसकी औद्योगिक और सैन्य मशीनरी कभी ठप न पड़े। 2022 में जब रूस-यूक्रेन युद्ध से यूरोप और एशिया में तेल की कीमतों में अस्थिरता आई, तब चीन ने सस्ते रूसी तेल की खरीद कर अपने भंडारों को भरा — यह आर्थिक चतुराई और रणनीतिक तैयारी का बेहतरीन उदाहरण है।
🔹 भारत की स्थिति: निर्भरता का बोझ और सीमित तैयारी
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है, किंतु उसकी 85% ऊर्जा जरूरतें आयात पर निर्भर हैं। इस निर्भरता ने भारत को वैश्विक तेल बाजार की हर अस्थिरता के प्रति संवेदनशील बना दिया है।
भारत ने रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (SPR) योजना के तहत विशाखापट्टनम, मंगलूरु और पादुर में भंडारण सुविधाएँ विकसित की हैं, परंतु इनकी कुल क्षमता चीन की तुलना में नगण्य है — केवल लगभग 9.5 दिनों की जरूरत के बराबर। इसके विपरीत चीन का भंडार कई महीनों तक घरेलू उपभोग की आपूर्ति कर सकता है।
यह स्थिति स्पष्ट करती है कि भारत की ऊर्जा सुरक्षा नीति अभी भी “प्रतिक्रिया-आधारित” है, जबकि चीन की रणनीति “पूर्वानुमान-आधारित” है। भारत को अब ऊर्जा आपूर्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा के दायरे में लाना होगा, न कि केवल आर्थिक नीति का हिस्सा मानकर छोड़ देना चाहिए।
🔹 नीति की दिशा: विविधता, दक्षता और भंडारण
भारत को चीन से तीन प्रमुख सबक लेने की आवश्यकता है —
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भंडारण क्षमता में निवेश:
भारत को चरणबद्ध तरीके से अपनी SPR क्षमता को दोगुना-तिगुना करना चाहिए, ताकि वह कम-से-कम 30 दिनों की आवश्यकता पूरी कर सके। इसके लिए निजी और विदेशी निवेश को भी जोड़ा जा सकता है। -
ऊर्जा स्रोतों में विविधता:
पश्चिम एशिया पर अत्यधिक निर्भरता भारत की कमजोर कड़ी है। अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, रूस और अमेरिका जैसे नए स्रोतों के साथ दीर्घकालिक अनुबंधों की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। -
नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार:
सौर, पवन और हरित हाइड्रोजन में भारत ने महत्वपूर्ण प्रगति की है, परंतु इसे ऊर्जा नीति की केंद्रीय धारा बनाना होगा। 2070 तक नेट-जीरो का लक्ष्य तभी सार्थक होगा जब जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता लगातार घटती जाए।
🔹 वैश्विक सहयोग और क्षेत्रीय नेतृत्व
भारत को केवल आत्मनिर्भर बनने की दिशा में ही नहीं, बल्कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र में ऊर्जा सहयोग का नेतृत्वकर्ता बनने की दिशा में भी कदम बढ़ाने चाहिए।
- भारत-बांग्लादेश-नेपाल-भूटान के बीच विद्युत व्यापार का जो ढाँचा विकसित हो रहा है, उसे तेल और गैस के क्षेत्र तक भी बढ़ाया जा सकता है।
- इसी प्रकार, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ “क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप” भारत के लिए भविष्य की ऊर्जा स्थिरता सुनिश्चित कर सकती है।
🔹 रणनीतिक आत्मनिर्भरता की ओर
ऊर्जा सुरक्षा केवल भंडारण का प्रश्न नहीं, बल्कि रणनीतिक स्वायत्तता का प्रतीक है। चीन की नीति यह दिखाती है कि किस प्रकार एक देश आर्थिक संकट को अवसर में बदल सकता है। भारत को भी यही दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है — जहाँ ऊर्जा नीति केवल कीमतों या आपूर्ति तक सीमित न रहकर राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण का उपकरण बन जाए।
🔹 निष्कर्ष: भारत के लिए दिशा और अवसर
विश्व ऊर्जा परिदृश्य तीव्र परिवर्तन के दौर में है। आने वाले दशक में ऊर्जा आपूर्ति और भंडारण किसी भी राष्ट्र की आर्थिक क्षमता, औद्योगिक गति और कूटनीतिक स्वतंत्रता का निर्धारण करेंगे।
भारत के पास संसाधन, तकनीक और नीति ढाँचा — तीनों मौजूद हैं, आवश्यकता केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति और त्वरित क्रियान्वयन की है।
यदि भारत अब चीन की तरह दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाता है, तो वह न केवल संभावित ऊर्जा संकटों से स्वयं को बचा सकेगा, बल्कि वैश्विक ऊर्जा शासन में एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में भी उभर सकता है।
यह समय है — जब भारत को ऊर्जा नीति को “आयात की मजबूरी” से निकालकर “सुरक्षा और आत्मनिर्भरता की रणनीति” में बदलना होगा।
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