🌎COP30 और अमेज़न का संकट: प्रतीकात्मकता से विवाद तक की यात्रा
परिचय
जब यह घोषणा हुई कि आगामी संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन — COP30 — का आयोजन ब्राज़ील के बेलें (Belém) शहर में, अमेज़न वर्षावन के किनारे किया जाएगा, तो यह निर्णय अत्यंत प्रतीकात्मक और आशावादी लगा। अमेज़न को पृथ्वी के “फेफड़े” कहा जाता है; अतः इसे वैश्विक जलवायु विमर्श का केंद्र बनाना एक काव्यात्मक न्याय प्रतीत हुआ। परंतु, जैसे-जैसे सम्मेलन की तिथि निकट आ रही है, यह काव्यात्मकता व्यावहारिक असंतोष में बदल रही है।
1. प्रतीकवाद और यथार्थ का टकराव
COP सम्मेलनों का उद्देश्य वैश्विक जलवायु नीतियों पर सामूहिक सहमति बनाना है, किंतु इन आयोजनों की प्रतीकात्मकता अक्सर राजनीतिक और पर्यावरणीय यथार्थ से टकरा जाती है।
अमेज़न क्षेत्र में सम्मेलन आयोजित करने का तात्पर्य था — "विकासशील विश्व" को जलवायु परिवर्तन के केंद्र में लाना। परंतु, इस निर्णय ने अनेक जटिल प्रश्न खड़े कर दिए:
- क्या यह आयोजन क्षेत्रीय पर्यावरणीय क्षरण को और बढ़ाएगा?
- क्या स्थानीय समुदायों को इससे कोई वास्तविक लाभ होगा?
- और क्या यह सम्मेलन ‘ग्रीन डिप्लोमेसी’ का मंच बनेगा या ‘ग्रीन वॉशिंग’ का?
2. अमेज़न: पृथ्वी का संकटग्रस्त फेफड़ा
अमेज़न वर्षावन न केवल जैव-विविधता का स्रोत है बल्कि यह वैश्विक कार्बन संतुलन का मुख्य आधार भी है। परंतु पिछले दो दशकों में यहाँ वन-विनाश (deforestation), खनन, गैर-कानूनी लकड़ी व्यापार और कृषि विस्तार ने पारिस्थितिकी तंत्र को गहराई से प्रभावित किया है।
COP30 का आयोजन इस क्षेत्र में करना, एक ओर ध्यान आकर्षित करने का अवसर है, तो दूसरी ओर यह एक राजनीतिक दोधारी तलवार बन गया है — क्योंकि ब्राज़ील सरकार की विकास नीतियों और स्थानीय उद्योगों की भूमिका पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगाहें टिक गई हैं।
3. वैश्विक जलवायु शासन और विकासशील देशों की भूमिका
COP30 यह भी दर्शाता है कि जलवायु विमर्श अब केवल “पश्चिमी पूंजी” द्वारा नियंत्रित नहीं है। अमेज़न जैसे क्षेत्र में आयोजन से यह संकेत जाता है कि वैश्विक दक्षिण (Global South) अब इस विमर्श का निर्णायक पक्ष बनना चाहता है।
फिर भी, वास्तविक चुनौती यह है कि विकासशील देश “जिम्मेदारी और अधिकार” के संतुलन को कैसे बनाएँ — क्योंकि अधिकांश उत्सर्जन विकसित देशों से आता है, जबकि सबसे अधिक जलवायु प्रभाव गरीब और उष्णकटिबंधीय देशों को झेलना पड़ता है।
4. स्थानीय समुदाय और आदिवासी दृष्टिकोण
अमेज़न में रहने वाले आदिवासी समुदाय जलवायु परिवर्तन के प्रत्यक्ष गवाह हैं। वे अपने पारंपरिक ज्ञान और भूमि अधिकारों के माध्यम से प्रकृति संरक्षण के वास्तविक प्रहरी हैं।
परंतु, COP30 जैसे विशाल आयोजन के दौरान उनकी आवाज़ कहीं प्रशासनिक शोर और कूटनीतिक घोषणाओं में दब न जाए — यह चिंता भी सामने आ रही है। कई स्थानीय संगठनों ने यह भी प्रश्न उठाया है कि क्या यह सम्मेलन “उनके नाम पर” होने के बावजूद “उनसे परे” आयोजित नहीं किया जा रहा?
5. जलवायु कूटनीति और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा
ब्राज़ील, अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ जैसे देशों के बीच जलवायु नेतृत्व की प्रतिस्पर्धा अब कूटनीतिक शक्ति प्रदर्शन का रूप ले चुकी है। COP30 का मंच इसलिए भी संवेदनशील है क्योंकि यहाँ:
- “नेट-ज़ीरो” प्रतिज्ञाओं की प्रामाणिकता पर सवाल उठेंगे,
- जलवायु वित्त (climate finance) की जवाबदेही पर बहस होगी,
- और “हानि एवं क्षति कोष (Loss and Damage Fund)” की दिशा तय होगी।
अतः यह सम्मेलन केवल एक पर्यावरणीय नहीं, बल्कि आर्थिक-सामरिक संवाद भी बनेगा।
6. निष्कर्ष: क्या COP30 निर्णायक मोड़ बनेगा?
अमेज़न की छाया में होने वाला यह सम्मेलन एक ऐतिहासिक अवसर भी है और एक चुनौती भी। यदि यह आयोजन केवल घोषणाओं का मंच बना, तो यह प्रतीकवाद मात्र रह जाएगा। परंतु यदि इसमें ठोस वित्तीय प्रतिबद्धताएँ, तकनीकी हस्तांतरण और स्थानीय सहभागिता सुनिश्चित की गई, तो यह वैश्विक जलवायु शासन का नया अध्याय खोल सकता है।
अंततः, COP30 हमें यह याद दिलाता है कि जलवायु परिवर्तन का संघर्ष केवल वैश्विक नहीं, बल्कि अत्यंत स्थानीय भी है — और जब तक स्थानीय पारिस्थितिकी और मानव समुदाय इसमें साझेदार नहीं बनते, तब तक कोई भी सम्मेलन “सफल” नहीं कहलाया जा सकता।
🔍 शैक्षणिक विश्लेषणात्मक निष्कर्ष
- थीम: पर्यावरणीय प्रतीकवाद बनाम नीतिगत यथार्थ।
- मुख्य अवधारणा: जलवायु न्याय, स्थानीय समुदाय की भागीदारी, और वैश्विक-दक्षिण का सशक्तिकरण।
- प्रासंगिकता (UPSC/IR): COP30 एक अध्ययन-केस है जिसमें वैश्विक शासन, सतत विकास, और पर्यावरण नैतिकता के बीच संतुलन खोजा जा सकता है।
With Washington Post Inputs
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