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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Balance of Self-Confidence: The Real Secret of Success

आत्मविश्वास का संतुलन: जीवन में सफलता का अदृश्य सूत्र

आत्मविश्वास मनुष्य के व्यक्तित्व की सबसे सशक्त शक्ति है। यह वह ऊर्जा है जो व्यक्ति को कठिनाइयों के बीच भी डटे रहने, अपने लक्ष्य की ओर निरंतर अग्रसर रहने और अपनी क्षमताओं पर विश्वास बनाए रखने की प्रेरणा देती है। किंतु जब यही आत्मविश्वास सीमाओं से परे जाकर अति-आत्मविश्वास का रूप ले लेता है, तो यह व्यक्ति के पतन का कारण भी बन सकता है। इसी प्रकार जब आत्मविश्वास का स्तर अत्यधिक गिर जाता है, तब व्यक्ति निराशा, हताशा और आत्म-संदेह के भंवर में फँस जाता है। इसलिए, जीवन में सफलता का असली रहस्य आत्मविश्वास के संतुलन में निहित है।


✦ आत्मविश्वास और अति-आत्मविश्वास में अंतर

आत्मविश्वास व्यक्ति को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है, जबकि अति-आत्मविश्वास व्यक्ति को यथार्थ से काट देता है।

  • आत्मविश्वासी व्यक्ति अपने कौशल पर विश्वास रखता है, लेकिन वह अपनी सीमाओं को भी समझता है।
  • अति-आत्मविश्वासी व्यक्ति यह मान लेता है कि वह सर्वज्ञ है और उसे किसी से कुछ सीखने की आवश्यकता नहीं।

इतिहास में अनेक उदाहरण हैं जब अति-आत्मविश्वास ने महान व्यक्तियों को भी असफलता के गर्त में धकेल दिया — चाहे वह कोई राजा हो, वैज्ञानिक हो या खिलाड़ी। इसीलिए आत्मविश्वास को विवेक के साथ संतुलित रखना आवश्यक है।


✦ संतुलन बनाए रखने का व्यावहारिक सूत्र

मनुष्य को चाहिए कि वह निरंतर आत्ममूल्यांकन करता रहे।

  • जब उसे लगे कि वह बहुत श्रेष्ठ है, तब उसे अपने से योग्य और अनुभवी लोगों की ओर देखना चाहिए। ऐसा करने से उसे अपनी सीमाओं और अपूर्णताओं का बोध होगा और उसका अति-आत्मविश्वास नियंत्रित रहेगा।
  • वहीं जब आत्मविश्वास गिरने लगे, तब अपने से कम अनुभव वाले या संघर्षरत लोगों की ओर देखकर स्वयं को यह याद दिलाना चाहिए कि “मैं भी प्रगति के मार्ग पर हूँ और पहले से बेहतर हूँ।”

यह दृष्टिकोण व्यक्ति को न तो घमंडी बनने देता है और न ही आत्महीन।


✦ समाज की भूमिका

सिर्फ व्यक्ति ही नहीं, समाज का भी यह नैतिक दायित्व है कि वह संतुलित आत्मविश्वास के वातावरण का निर्माण करे।

  • समाज को चाहिए कि अति-आत्मविश्वासी व्यक्ति को विनम्रता से यह बोध कराए कि सफलता एक निरंतर यात्रा है, कोई अंतिम पड़ाव नहीं।
  • वहीं आत्मविश्वासहीन व्यक्ति की छोटी-छोटी सफलताओं की प्रशंसा करनी चाहिए ताकि उसका मनोबल बढ़ सके।

किसी को सुधारने के लिए शब्दों का चयन अत्यंत संवेदनशील होना चाहिए, ताकि सामने वाले का आत्म-सम्मान आहत न हो।
याद रखिए, प्रशंसा और आलोचना – दोनों का संतुलन ही व्यक्ति को परिपक्व बनाता है।


✦ आत्मविश्वास का संतुलन: जीवन की कला

जीवन में आत्मविश्वास का संतुलन बनाए रखना किसी रस्सी पर चलने वाले कलाकार की तरह है — थोड़ा भी झुकाव किसी ओर हुआ, तो संतुलन बिगड़ सकता है।

  • अति-आत्मविश्वास व्यक्ति को अहंकार, लापरवाही और असफलता की ओर ले जाता है।
  • आत्मविश्वास की कमी व्यक्ति को डर, संकोच और निष्क्रियता के अंधकार में धकेल देती है।

संतुलित आत्मविश्वास व्यक्ति को स्थिर, सकारात्मक और व्यावहारिक बनाता है। यही संतुलन उसे सफलता, सम्मान और मानसिक शांति का अधिकारी बनाता है।


✦ निष्कर्ष

आत्मविश्वास का संतुलन केवल व्यक्तिगत सफलता नहीं, बल्कि सामाजिक सामंजस्य की भी कुंजी है।
जब व्यक्ति अपने आत्मविश्वास को न तो अत्यधिक बढ़ने देता है और न ही गिरने, तब वह अपने जीवन का सच्चा नायक बन जाता है।
ऐसे व्यक्ति ही समाज में प्रेरणा का स्रोत बनते हैं, जो दूसरों को यह सिखाते हैं कि —

“विश्वास रखो, पर विवेक के साथ;
झुको, पर आत्महीन हुए बिना।”


नोट - भागवत गीता व विकास दिव्यकीर्ति से प्रभावित है यह लेख 

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