Skip to main content

MENU👈

Show more

Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

वाम और दक्षिण से परे: यूपीएससी के लिए धर्म, स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता | Beyond Left and Right

वाम और दक्षिण से परे: धर्म, स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता — यूपीएससी अभ्यर्थियों के लिए एक दृष्टिकोण

“क्या मैं वामपंथी हूं या दक्षिणपंथी? – एक स्वतंत्र विचारक की पहचान”

प्रस्तावना
भारतीय राजनीति और समाज में लोगों को अक्सर दो खांचों—वामपंथ और दक्षिणपंथ—में बांटने की कोशिश की जाती है। लेकिन क्या हर व्यक्ति इन विचारधाराओं में पूरी तरह फिट बैठता है? क्या कोई व्यक्ति धार्मिक होने के बावजूद धर्मनिरपेक्षता का समर्थन नहीं कर सकता? क्या लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को महत्व देने वाला व्यक्ति वामपंथी हो सकता है? क्या राष्ट्रवाद से ज्यादा अंतर्राष्ट्रवाद को प्राथमिकता देने वाला व्यक्ति दक्षिणपंथी हो सकता है? ये सवाल हमें गहरे सोचने पर मजबूर करते हैं। यह ब्लॉग इन सवालों का विश्लेषण करता है और यूपीएससी अभ्यर्थियों के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो भारतीय समाज, शासन और नैतिकता को समझने में मदद करता है।


विचारधारा से परे: एक नई पहचान की खोज

लेखक (अरविंद सिंह) ने खुद से यह सवाल पूछा:
“मैं धार्मिक हूं, लेकिन धर्मनिरपेक्षता में विश्वास रखता हूं। मैं राष्ट्रवादी हूं, लेकिन कट्टर राष्ट्रवाद का विरोध करता हूं और अंतर्राष्ट्रवाद का समर्थन करता हूं—मैं दक्षिणपंथी नहीं हूं। मैं लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का कट्टर समर्थक हूं। मैं समानता और सामाजिक न्याय की बात करता हूं, लेकिन समानता से ज्यादा स्वतंत्रता को प्राथमिकता देता हूं—मैं वामपंथी भी नहीं हूं। तो मैं कौन हूं?”

इस प्रश्न का उत्तर स्पष्ट है: व्यक्ति किसी एक विचारधारा में पूरी तरह फिट नहीं बैठता। यह दृष्टिकोण भारत की बहुलवादी परंपरा को दर्शाता है, जहां विविध पहचानें एक साथ सह-अस्तित्व में रहती हैं। यूपीएससी अभ्यर्थियों के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारतीय समाज और शासन की जटिलता को समझने में मदद करता है।

विस्तृत दृष्टिकोण:
यह सोच भारत की ऐतिहासिक और दार्शनिक परंपराओं, जैसे गौतम बुद्ध का मध्यम मार्ग या सर्व धर्म समभाव (सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान) के सिद्धांत से मेल खाती है। ये परंपराएं संतुलन और समावेशिता को बढ़ावा देती हैं, जो भारतीय संविधान की आधारशिला हैं। उदाहरण के लिए, संविधान की प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर जोर दिया गया है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन को दर्शाता है। यूपीएससी अभ्यर्थी इन सिद्धांतों को समकालीन शासन चुनौतियों, जैसे अल्पसंख्यक अधिकारों और राष्ट्रीय एकता के बीच संतुलन, से जोड़ सकते हैं।


उदारवादी और मध्यमार्गी सोच: एक संतुलित दृष्टिकोण

जो व्यक्ति धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों को महत्व देता है, उसे उदारवादी (Liberal) या मध्यमार्गी (Centrist) कहा जा सकता है।

  • उदारवाद (Liberalism): यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता, मानवाधिकार और खुली सोच को प्राथमिकता देता है। उदाहरण के लिए, एक उदारवादी व्यक्ति धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन करेगा, लेकिन राज्य द्वारा धर्म-आधारित नीतियों का विरोध करेगा।
  • मध्यमार्ग (Centrism): यह सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर संतुलित दृष्टिकोण अपनाता है, न तो अति-वामपंथी और न ही अति-दक्षिणपंथी। एक मध्यमार्गी आर्थिक सुधारों (दक्षिणपंथी नीति) और सामाजिक कल्याण (वामपंथी आदर्श) दोनों का समर्थन कर सकता है।
  • प्रगतिशील धार्मिकता (Progressive Religiousness): भारतीय संदर्भ में यह सोच धार्मिक मूल्यों को आधुनिक लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ जोड़ती है। उदाहरण के लिए, एक प्रगतिशील हिंदू भगवद्गीता की आध्यात्मिक शिक्षाओं का पालन करते हुए सभी समुदायों के लिए समान अधिकारों का समर्थन कर सकता है।

विस्तृत दृष्टिकोण:
प्रगतिशील धार्मिकता का उदाहरण स्वामी विवेकानंद जैसे ऐतिहासिक व्यक्तित्वों में देखा जा सकता है, जिन्होंने हिंदू दर्शन में निहित रहते हुए सार्वभौमिकता और सहिष्णुता की वकालत की। इसी तरह, डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाकर सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया। समकालीन भारत में, अंतर-धार्मिक संवाद या आगा खान फाउंडेशन जैसे समावेशी विकास कार्य इस संतुलन को दर्शाते हैं। यूपीएससी अभ्यर्थियों के लिए यह दृष्टिकोण धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक सद्भाव और समावेशी शासन से संबंधित सवालों को समझने में उपयोगी है।


स्वतंत्र विचारक: एक नई पहचान

जो व्यक्ति विचारधाराओं के लेबल से परहेज करता है और तर्क, अनुभव और मूल्यों के आधार पर निर्णय लेता है, उसे स्वतंत्र विचारक कहा जा सकता है।

  • विशेषताएं:
    • तर्क और विवेक पर आधारित निर्णय।
    • मानवता, स्वतंत्रता और न्याय जैसे सार्वभौमिक मूल्यों को प्राथमिकता।
    • परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन।
  • भारत में प्रासंगिकता: भारत जैसे विविध समाज में स्वतंत्र विचारक समावेशिता को बढ़ावा देता है। उदाहरण के लिए, एक स्वतंत्र विचारक हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए आरक्षण (वामपंथी नीति) और आर्थिक उदारीकरण (दक्षिणपंथी नीति) दोनों का समर्थन कर सकता है, बशर्ते यह तथ्यों और संदर्भ पर आधारित हो।

विस्तृत दृष्टिकोण:
स्वतंत्र विचारक की अवधारणा एक भारतीय सिविल सेवक की भूमिका से मेल खाती है, जिसके लिए निष्पक्षता और तटस्थता आवश्यक है। उदाहरण के लिए, सांप्रदायिक तनाव के दौरान एक जिला मजिस्ट्रेट को व्यक्तिगत या वैचारिक पक्षपात के बजाय संवैधानिक मूल्यों के आधार पर मध्यस्थता करनी होती है। यह दृष्टिकोण यूपीएससी के जीएस पेपर 4 (नैतिकता) में परीक्षण किए जाने वाले गुणों, जैसे निष्पक्षता और भावनात्मक बुद्धिमत्ता, को दर्शाता है।


यह पहचान क्यों महत्वपूर्ण है?

भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और वैचारिक विविधता के कारण कठोर लेबल अव्यवहारिक हैं। भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती इसकी विविध दृष्टिकोणों को समायोजित करने की क्षमता में निहित है। एक प्रगतिशील, उदारवादी या स्वतंत्र विचारक निम्नलिखित में योगदान देता है:

  • समावेशिता: विविध पहचानों का सम्मान करते हुए संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखना।
  • संघर्ष समाधान: परस्पर विरोधी विचारधाराओं, जैसे समान नागरिक संहिता या गौ-संरक्षण कानूनों पर बहस, के बीच मध्यस्थता करना।
  • भविष्य-उन्मुख शासन: परंपरा और प्रगति को संतुलित करने वाली नीतियां, जैसे डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देना और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना।

विस्तृत दृष्टिकोण:
यह पहचान समकालीन चुनौतियों, जैसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, दुष्प्रचार और वैश्विक एकीकरण, से निपटने के लिए महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, डिजिटल इंडिया पहल प्रौद्योगिकी के माध्यम से समावेशी विकास को बढ़ावा देती है, जो स्वतंत्रता और समानता के मूल्यों से मेल खाती है। यूपीएससी अभ्यर्थी निबंधों या साक्षात्कार में ऐसे उदाहरणों का उपयोग करके एक संतुलित और दूरदर्शी दृष्टिकोण प्रदर्शित कर सकते हैं।


निष्कर्ष

वामपंथ या दक्षिणपंथ जैसे लेबल अक्सर जटिल मानवीय पहचानों को सरलीकृत करते हैं। जो व्यक्ति धर्म के साथ धर्मनिरपेक्षता, स्वतंत्रता के साथ समानता, और राष्ट्रवाद के साथ अंतर्राष्ट्रवाद को संतुलित करता है, वह एक नए युग के स्वतंत्र विचारक की भावना को दर्शाता है। यह पहचान न केवल व्यक्तिगत है, बल्कि भारत में समावेशी शासन के लिए एक खाका भी है। जैसा कि लेखक ने कहा:
“आप किसी एक विचारधारा में पूरी तरह फिट नहीं होते—आप स्वयं एक विचारधारा हैं।”

यूपीएससी अभ्यर्थियों के लिए, यह दृष्टिकोण संतुलित, तथ्य-आधारित सोच विकसित करने और संवैधानिक लोकाचार के साथ तालमेल बिठाने का आह्वान है।


यूपीएससी से संबंध

यह ब्लॉग कई यूपीएससी पेपरों के लिए प्रासंगिक है और जटिल मुद्दों का विश्लेषण करने के लिए एक ढांचा प्रदान करता है। नीचे, मैं संबंधों को विस्तार से और अतिरिक्त अंतर्दृष्टि के साथ प्रस्तुत करता हूं।

  1. जीएस पेपर 1 (भारतीय समाज)

    • विषय: धर्मनिरपेक्षता, धार्मिक विविधता और सांस्कृतिक बहुलवाद भारतीय समाज को समझने के लिए केंद्रीय हैं। ब्लॉग का प्रगतिशील धार्मिकता पर जोर यह दर्शाता है कि व्यक्ति व्यक्तिगत आस्था के साथ सामाजिक समावेशिता को कैसे संतुलित कर सकता है।
    • उदाहरण: सबरीमाला मंदिर प्रवेश मामला (2018) धार्मिक परंपरा और लैंगिक समानता के बीच तनाव को दर्शाता है, जिसके लिए धर्मनिरपेक्षता और अधिकारों की संतुलित समझ आवश्यक है। अभ्यर्थी इस मामले का उपयोग संवैधानिक मूल्यों को समझाने के लिए कर सकते हैं।
  2. जीएस पेपर 2 (राजनीति और शासन)

    • विषय: भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता (अनुच्छेद 25-28), अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) और समानता (अनुच्छेद 14) ब्लॉग के विचारों से मेल खाते हैं। अभ्यर्थी विश्लेषण कर सकते हैं कि ये सिद्धांत शासन को कैसे निर्देशित करते हैं, जैसे शिक्षा का अधिकार अधिनियम या अल्पसंख्यक कल्याण नीतियों में।
    • उदाहरण: अयोध्या फैसला (2019) ने धार्मिक भावनाओं और कानूनी सिद्धांतों को संतुलित किया, जो धर्मनिरपेक्षता का व्यावहारिक उदाहरण है। अभ्यर्थी इसे संवैधानिक निष्ठा को दर्शाने के लिए उद्धृत कर सकते हैं।
  3. जीएस पेपर 4 (नैतिकता, सत्यनिष्ठा और अभिवृत्ति)

    • विषय: ब्लॉग का निष्पक्षता, तटस्थता और मूल्य-आधारित निर्णय पर जोर एक सिविल सेवक के गुणों से मेल खाता है। स्वतंत्र विचारक नैतिक दुविधाओं को सुलझाने के लिए भावनात्मक बुद्धिमत्ता और नैतिक शासन को बढ़ावा देता है।
    • उदाहरण: एक सिविल सेवक को धार्मिक उत्सव की व्यवस्था करते समय सार्वजनिक सुरक्षा और सभी समुदायों के लिए सम्मान सुनिश्चित करना होता है, जो धर्मनिरपेक्ष और समावेशी मूल्यों को दर्शाता है।
  4. निबंध पेपर

    • विषय: “बहुलवादी समाज में धर्मनिरपेक्षता,” “स्वतंत्रता बनाम समानता,” या “भारतीय शासन में मध्यम मार्ग” जैसे विषयों के लिए ब्लॉग की अंतर्दृष्टि उपयोगी है। अभ्यर्थी निबंधों को ऐतिहासिक उदाहरणों (जैसे, अशोक का धम्म) और समकालीन चुनौतियों (जैसे, सोशल मीडिया में ध्रुवीकरण) के इर्द-गिर्द संरचित कर सकते हैं।
    • सुझाव: संवैधानिक, दार्शनिक और व्यावहारिक दृष्टिकोणों को शामिल करके निबंध में गहराई लाएं।

यूपीएससी अभ्यर्थियों के लिए मुख्य बिंदु

  1. वैचारिक कठोरता से बचें: उदारवादी और मध्यमार्गी आदर्शों से प्रेरणा लेकर संतुलित दृष्टिकोण विकसित करें।
  2. आस्था और धर्मनिरपेक्षता में संतुलन: समझें कि व्यक्तिगत विश्वास संवैधानिक तटस्थता के साथ कैसे सह-अस्तित्व में रह सकते हैं।
  3. मानवाधिकारों पर जोर: उत्तरों में स्वतंत्रता और न्याय जैसे सार्वभौमिक मूल्यों को प्राथमिकता दें।
  4. उदाहरणों का उपयोग: अयोध्या या सबरीमाला जैसे मामलों का उल्लेख करके तर्कों को वास्तविक संदर्भों से जोड़ें।
  5. संतुलित तर्क विकसित करें: निबंध और नैतिकता में संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करके विश्लेषणात्मक गहराई प्रदर्शित करें।

यूपीएससी अभ्यास प्रश्न (विस्तारित)

(ए) प्रारंभिक परीक्षा प्रकार – वस्तुनिष्ठ / बहुविकल्पीय

  1. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन उदारवाद (Liberalism) के मूल तत्व को सबसे अच्छे ढंग से व्यक्त करता है?
    (अ) धार्मिक आधार पर शासन करना
    (ब) व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानवाधिकारों को प्राथमिकता देना
    (स) समानता से पहले राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देना
    (द) समाजवाद को प्राथमिकता देना
    उत्तर: (ब)

  2. भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा सही है?
    (अ) राज्य किसी धर्म को मान्यता नहीं देता, सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार करता है।
    (ब) राज्य केवल अल्पसंख्यक धर्मों को संरक्षण देता है।
    (स) राज्य किसी धर्म में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
    (द) राज्य धर्मनिरपेक्षता का पालन केवल चुनाव के समय करता है।
    उत्तर: (अ)

  3. “मध्यमार्गी” (Centrist) विचारधारा किसका प्रतीक है?
    (अ) अति-वामपंथ और अति-दक्षिणपंथ के बीच संतुलित दृष्टिकोण
    (ब) धर्म और राजनीति को एक करना
    (स) लोकतंत्र के बजाय राजतंत्र को बढ़ावा देना
    (द) केवल समानता पर आधारित समाज बनाना
    उत्तर: (अ)

  4. भारत में धार्मिक स्वतंत्रता को कौन-सा संवैधानिक अनुच्छेद सुनिश्चित करता है?
    (अ) अनुच्छेद 14
    (ब) अनुच्छेद 19
    (स) अनुच्छेद 25
    (द) अनुच्छेद 32
    उत्तर: (स)


(बी) मुख्य परीक्षा प्रकार – लघु / विस्तृत उत्तर

  1. जीएस पेपर 2: भारतीय लोकतंत्र में “धर्मनिरपेक्षता” और “धर्म” को एक साथ कैसे संतुलित किया जा सकता है? यूपीएससी दृष्टिकोण से विश्लेषण करें।

    • उत्तर संरचना:
      • प्रस्तावना: भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित करें (सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान, न कि राज्य और धर्म का पूर्ण अलगाव)।
      • मुख्य भाग:
        • संवैधानिक प्रावधानों (अनुच्छेद 25-28) और अयोध्या या ट्रिपल तलाक जैसे मामलों में उनके अनुप्रयोग पर चर्चा करें।
        • चुनौतियां: सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, धर्म का राजनीतिक दुरुपयोग।
        • समाधान: समावेशी नीतियां, अंतर-धार्मिक संवाद, और न्यायिक निष्पक्षता।
      • निष्कर्ष: एकता में विविधता के लिए धर्मनिरपेक्षता को एक उपकरण के रूप में रेखांकित करें।
  2. जीएस पेपर 4 (नैतिकता): “धार्मिक होते हुए भी धर्मनिरपेक्ष होना” – यह सिविल सेवक की तटस्थता के लिए क्यों महत्वपूर्ण है? स्पष्ट करें।

    • उत्तर संरचना:
      • प्रस्तावना: तटस्थता की परिभाषा और सार्वजनिक सेवा में इसकी महत्ता।
      • मुख्य भाग:
        • व्यक्तिगत आस्था और धर्मनिरपेक्ष कर्तव्यों के सह-अस्तित्व को समझाएं, जैसे धार्मिक उत्सवों का प्रबंधन।
        • नैतिक सिद्धांतों (निष्पक्षता, तटस्थता) और प्रगतिशील धार्मिकता के साथ उनके तालमेल पर चर्चा।
        • पक्षपात के जोखिम और स्वतंत्र विचार के माध्यम से उनका समाधान।
      • निष्कर्ष: संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक सद्भाव में सिविल सेवकों की भूमिका से जोड़ें।
  3. निबंध पेपर: “स्वतंत्रता बनाम समानता: भारतीय संदर्भ” – यूपीएससी दृष्टिकोण से 1000 शब्दों का निबंध लिखें।

    • संरचना:
      • प्रस्तावना: भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में स्वतंत्रता (व्यक्तिगत स्वतंत्रता) और समानता (सामाजिक न्याय) के बीच तनाव को प्रस्तुत करें।
      • ऐतिहासिक संदर्भ: स्वतंत्रता संग्राम, आंबेडकर का समानता पर जोर, और गांधी का स्वतंत्रता पर बल।
      • समकालीन मुद्दे: आरक्षण नीतियां, आर्थिक उदारीकरण, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस।
      • संतुलन: संवैधानिक तंत्र (मूल अधिकार और नीति निर्देशक तत्व) और न्यायिक हस्तक्षेप।
      • निष्कर्ष: समावेशी विकास और सामाजिक सद्भाव के लिए मध्यमार्गी दृष्टिकोण की वकालत।
  4. जीएस पेपर 1 (समाज): भारतीय समाज में प्रगतिशील धार्मिकता की भूमिका पर चर्चा करें।

    • उत्तर संरचना:
      • प्रस्तावना: प्रगतिशील धार्मिकता को आस्था और आधुनिक मूल्यों के मिश्रण के रूप में परिभाषित करें।
      • मुख्य भाग:
        • ऐतिहासिक उदाहरण: भक्ति-सूफी आंदोलन, विवेकानंद का सार्वभौमिकवाद।
        • आधुनिक उदाहरण: अंतर-धार्मिक पहल, समावेशी सामुदायिक प्रथाएं।
        • चुनौतियां: सांप्रदायिकता, रूढ़िवादिता, और धर्म का राजनीतिक शोषण।
      • निष्कर्ष: सामाजिक एकता और संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका पर जोर।
  5. नैतिकता केस स्टडी: आप एक जिला मजिस्ट्रेट हैं और आपके धार्मिक विश्वास मजबूत हैं। यदि आपके जिले में किसी धार्मिक मुद्दे पर विवाद होता है, तो आप किन मूल्यों और सिद्धांतों के आधार पर निर्णय लेंगे?

    • उत्तर संरचना:
      • स्थिति विश्लेषण: धार्मिक विवादों की संवेदनशीलता और निष्पक्षता की आवश्यकता को स्वीकार करें।
      • सिद्धांत: तटस्थता, संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता, सार्वजनिक कल्याण, और समावेशिता।
      • कदम:
        • हितधारकों (सामुदायिक नेता, पुलिस, नागरिक समाज) को शामिल करें।
        • पारदर्शी संचार और कानूनी ढांचे का पालन सुनिश्चित करें।
        • तनाव कम करने के लिए संवाद को बढ़ावा दें।
      • निष्कर्ष: व्यक्तिगत विश्वासों के बजाय संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने की महत्ता पर जोर।

(सी) नोट-मेकिंग के लिए कीवर्ड / अवधारणाएं

  • उदारवाद: व्यक्तिगत स्वतंत्रता, मानवाधिकार, खुली सोच।
  • मध्यमार्ग: संतुलित दृष्टिकोण, व्यावहारिक शासन।
  • प्रगतिशील धार्मिकता: आस्था और आधुनिकता का समन्वय, समावेशिता।
  • स्वतंत्र विचारक: तर्कसंगत, मूल्य-आधारित निर्णय लेना।
  • धर्मनिरपेक्षता: सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान, राज्य की तटस्थता।
  • स्वतंत्रता बनाम समानता: व्यक्तिगत अधिकारों और सामाजिक न्याय का संतुलन।
  • संवैधानिक मूल्य: स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, न्याय।

यूपीएससी अभ्यर्थियों के लिए अतिरिक्त नोट्स

  1. करेंट अफेयर्स से संबंध: ब्लॉग के विषयों को हाल के घटनाक्रमों, जैसे नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) या धार्मिक मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों, से जोड़ें।
  2. दार्शनिक आधार: टैगोर, गांधी, या आंबेडकर जैसे भारतीय विचारकों का उपयोग निबंधों और नैतिकता के उत्तरों में गहराई लाने के लिए करें।
  3. डेटा और उदाहरण: तथ्य (जैसे, 2011 की जनगणना: 79.8% हिंदू, 14.2% मुस्लिम) या योजनाएं (जैसे, पीएम का अल्पसंख्यकों के लिए 15-सूत्रीय कार्यक्रम) शामिल करें।
  4. उत्तर प्रस्तुति: मुख्य परीक्षा में शीर्षकों, बुलेट पॉइंट्स और फ्लोचार्ट का उपयोग करें।

आह्वान

भारत के विविध समाज में धर्म, स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता को संतुलित करने के बारे में अपने विचार साझा करें। आप अपनी वैचारिक पहचान को कैसे परिभाषित करते हैं? यूपीएससी अभ्यर्थियों के लिए, आप इन विचारों को अपनी तैयारी में कैसे शामिल करेंगे? नीचे टिप्पणी करें!



Comments

Advertisement

POPULAR POSTS