उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: एनडीए की स्थिति, संवैधानिक महत्व और UPSC दृष्टिकोण
भारत में उपराष्ट्रपति चुनाव केवल एक संवैधानिक प्रक्रिया भर नहीं है, बल्कि यह लोकतांत्रिक व्यवस्था, गठबंधन राजनीति और संसदीय संतुलन की कसौटी भी है। 2025 के उपराष्ट्रपति चुनाव में संसद सदस्य मतदान कर रहे हैं और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के उम्मीदवार राधाकृष्णन को बढ़त हासिल मानी जा रही है। इस संदर्भ में यह चुनाव कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है।
संवैधानिक और संस्थागत महत्व
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 63 से 71 तक उपराष्ट्रपति के पद का उल्लेख किया गया है। यह पद केवल संवैधानिक औपचारिकता नहीं, बल्कि राज्यसभा के सभापति के रूप में संसदीय कार्यवाही की निष्पक्षता और संतुलन का दायित्व भी निभाता है।
- उपराष्ट्रपति सरकार और विपक्ष के बीच संतुलनकारी भूमिका निभाते हैं।
- यह चुनाव संसद की आंतरिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया को रेखांकित करता है।
राजनीतिक दृष्टिकोण से
एनडीए द्वारा राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाना केवल गणितीय मजबूती नहीं, बल्कि रणनीतिक संकेत भी है:
- संसद में मजबूत उपस्थिति और क्षेत्रीय दलों का सहयोग।
- विपक्ष की एकजुटता की चुनौती, परंतु आंतरिक मतभेद उनकी स्थिति कमजोर करते हैं।
- यह चुनाव एनडीए की सत्ता-समर्थन क्षमता और भविष्य की चुनावी रणनीति दोनों को दर्शाता है।
लोकतंत्र और गठबंधन राजनीति
भारत का लोकतंत्र केवल बहुमत की राजनीति पर आधारित नहीं है, बल्कि गठबंधन सहयोग और सहमति-निर्माण की परंपरा पर भी टिका है।
- एनडीए की बढ़त बताती है कि केंद्र में सत्तारूढ़ गठबंधन क्षेत्रीय और छोटे दलों के साथ समन्वय स्थापित करने में सफल रहा है।
- यह प्रवृत्ति आने वाले लोकसभा और राज्यसभा समीकरणों पर भी प्रभाव डालेगी।
नैतिक और संस्थागत विमर्श
UPSC GS-4 (नैतिकता) के दृष्टिकोण से, उपराष्ट्रपति पद केवल राजनीतिक हितों का विस्तार न होकर नैतिकता और निष्पक्षता का प्रतीक होना चाहिए।
- इस पद पर बैठने वाले को संसदीय परंपराओं, संवाद और सहमति की संस्कृति का संवाहक होना चाहिए।
- यदि पदाधिकारी राजनीतिक झुकाव से ऊपर उठकर कार्य करते हैं, तो लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता और बढ़ती है।
लोकतांत्रिक प्रक्रिया की जीवंतता
यह चुनाव भारत की राजनीतिक गतिशीलता का आईना है:
- विभिन्न दलों की सक्रिय भागीदारी लोकतंत्र की मजबूती को दिखाती है।
- संसद के भीतर बहस और विमर्श लोकतांत्रिक मूल्यों को गहरा करते हैं।
- यह भी आवश्यक है कि ऐसे चुनाव केवल सत्ता-संतुलन का साधन न बनकर संवैधानिक गरिमा और लोकतांत्रिक आदर्शों को पुष्ट करें।
निष्कर्ष
उपराष्ट्रपति चुनाव केवल किसी व्यक्ति की जीत नहीं, बल्कि लोकतंत्र की संस्थागत परंपराओं की परीक्षा है। राधाकृष्णन की उम्मीदवारी एनडीए की मजबूती को रेखांकित करती है, किंतु निर्वाचित उपराष्ट्रपति से अपेक्षा होगी कि वे सभी दलों और वर्गों का प्रतिनिधित्व करें। लोकतांत्रिक भारत के लिए यह चुनाव एक अवसर है – संवैधानिक मूल्यों को सुदृढ़ करने और संसद को संवाद व सहमति का मंच बनाए रखने का।
UPSC दृष्टिकोण: संभावित प्रश्न और उत्तर लेखन संकेत
1. GS Paper-2 (संविधान और राजनीति)
प्रश्न: “भारत में उपराष्ट्रपति का पद केवल संवैधानिक औपचारिकता नहीं है, बल्कि संसदीय संतुलन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मजबूती का प्रतीक है।” विश्लेषण कीजिए।
संकेत:
- अनुच्छेद 63-71: संवैधानिक आधार।
- राज्यसभा सभापति की भूमिका।
- निष्पक्षता और संतुलन।
- समकालीन उदाहरण: 2025 चुनाव।
- चुनौतियाँ: राजनीतिकरण, दलगत दबाव।
- निष्कर्ष: संस्थागत महत्व और लोकतंत्र की स्थिरता।
2. GS Paper-2 (गठबंधन राजनीति)
प्रश्न: “उपराष्ट्रपति चुनाव भारत की गठबंधन राजनीति और संसदीय गणित का दर्पण है।” स्पष्ट कीजिए।
संकेत:
- सांसदों द्वारा चुनाव की प्रक्रिया।
- छोटे दलों और क्षेत्रीय समर्थन की भूमिका।
- विपक्ष की एकजुटता बनाम मतभेद।
- 2025 संदर्भ: एनडीए की बढ़त।
- व्यापक असर: गठबंधन सरकारें, नीति निर्माण।
- निष्कर्ष: पद चुनाव = राजनीतिक समीकरण + लोकतंत्र का सशक्तिकरण।
3. GS Paper-4 (नैतिकता और मूल्य)
प्रश्न: “लोकतांत्रिक संस्थाओं में उच्च संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों से राजनीतिक निष्पक्षता और नैतिक नेतृत्व अपेक्षित है।” उपराष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में चर्चा कीजिए।
संकेत:
- उपराष्ट्रपति पद की गरिमा।
- नैतिक मूल्य: निष्पक्षता, संविधान-निष्ठा, परंपराओं का सम्मान।
- चुनौतियाँ: दलगत दबाव, गठबंधन समीकरण।
- अपेक्षित आदर्श: संवाद-संस्कृति, नैतिक नेतृत्व।
- निष्कर्ष: लोकतंत्र की विश्वसनीयता।
4. निबंध विषय संभावनाएँ
- “लोकतांत्रिक भारत में संवैधानिक पद: सत्ता का गणित या नैतिक मूल्यों का प्रतीक?”
- “गठबंधन राजनीति और संवैधानिक संस्थाओं की मजबूती: अवसर और चुनौतियाँ”
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