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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

US Government Shutdown 2025: Impact on India and the Global Economy

अमेरिकी सरकारी शटडाउन 2025: भारत और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर

प्रस्तावना – सिर्फ अमेरिकी संकट नहीं, एक वैश्विक संकेत
अक्सर अमेरिकी सरकारी शटडाउन को मीडिया “बजट गतिरोध” या “राजनीतिक टकराव” कहकर पेश करता है। लेकिन 2025 का अमेरिकी शटडाउन इससे कहीं गहरा है। यह सिर्फ अमेरिका की प्रशासनिक समस्या नहीं बल्कि यह बताता है कि किसी एक देश के राजनीतिक ठहराव से पूरी दुनिया की आर्थिक नब्ज़ प्रभावित हो सकती है। 2018-19 में जब अमेरिका में सबसे लंबा 35 दिन का शटडाउन हुआ था तो अमेरिकी जीडीपी को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ और वैश्विक निवेशक भी डगमगा गए। आज भी वही स्थिति दोहराई जा रही है।


अमेरिकी शटडाउन क्या है – एक अवधारणात्मक ढाँचा

अमेरिका में सरकार का बजट कांग्रेस पास करती है। जब सरकार और कांग्रेस के बीच खर्च और कर नीति पर सहमति नहीं बनती, तो सरकारी विभागों के पास खर्च करने के पैसे खत्म हो जाते हैं और वे बंद होने लगते हैं — इसे “शटडाउन” कहते हैं। 2025 में यह गतिरोध स्वास्थ्य फंडिंग और मेडिकेड कट्स पर डेमोक्रेट्स और ट्रंप प्रशासन के बीच हुआ। इससे पता चलता है कि यह केवल पैसों का झगड़ा नहीं बल्कि विचारधाराओं की टकराहट भी है। अमेरिका की “चेक एंड बैलेंस” प्रणाली ऐसी स्थितियों को टालने के बजाय कभी-कभी और गहरा कर देती है।


वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर – अमेरिकी निर्णयों की गूंज

अमेरिका वैश्विक वित्त का केंद्र है। डॉलर दुनिया की सबसे अहम मुद्रा है, अमेरिकी बॉन्ड बाज़ार सबसे बड़ा है और फेडरल रिज़र्व की नीति दुनिया भर के निवेशकों को प्रभावित करती है। जब वहां शटडाउन होता है तो निवेशक सुरक्षित विकल्पों जैसे सोना, स्विस फ्रैंक या डिजिटल संपत्तियों की ओर भागते हैं। इससे उभरते देशों में पूँजी का प्रवाह धीमा पड़ता है और वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता बढ़ती है। हर हफ्ते का शटडाउन दुनिया की जीडीपी वृद्धि को कम कर सकता है और खासकर उन देशों को चोट पहुँचाता है जो अमेरिकी बाज़ार पर निर्भर हैं।


भारत पर प्रभाव – तीन परतों में समझना

1. वित्तीय बाज़ार और पूँजी प्रवाह
अमेरिकी शटडाउन से डॉलर और अमेरिकी ट्रेज़री बॉन्ड पर असर पड़ता है, जिसका सीधा प्रभाव भारतीय रुपये और शेयर बाजार पर आता है। 2018-19 के शटडाउन में भारतीय शेयर बाजार 2-3% गिरा और रुपये पर दबाव बढ़ा। इस बार भी विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) धीमा पड़ सकता है। इसके साथ ही हाल ही में H-1B वीज़ा शुल्क बढ़ने से भारतीय आईटी सेक्टर पर पहले ही दबाव है।

2. निर्यात और सेवाएँ
अमेरिका की मांग में ठहराव आने से भारत की आईटी सेवाएँ, फार्मा निर्यात और बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग प्रभावित हो सकते हैं। अमेरिकी वीज़ा प्रोसेसिंग धीमी होने से भारतीय पेशेवरों को मुश्किल होगी। पहले भी एक शटडाउन में 30,000 से अधिक वीज़ा प्रभावित हुए थे, और अब नई फीस नीति के चलते यह असर दोगुना हो सकता है।

3. रणनीतिक अवसर
हर संकट में अवसर भी होते हैं। भारत डॉलर पर निर्भरता कम कर सकता है, अपने बॉन्ड बाज़ार को मज़बूत कर सकता है और क्षेत्रीय साझेदारियों को गहरा कर सकता है। BRICS, QUAD या BIMSTEC जैसे मंच भारत को अमेरिकी संकट के प्रभाव से बचने का मौका देते हैं।


“फ्रैजाइल इंटरकनेक्शन” – एक सीख

2025 का शटडाउन हमें बताता है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था बहुत ही जुड़ी हुई है। छोटे-से राजनीतिक गतिरोध से भी आपूर्ति श्रृंखलाएँ, पूँजी प्रवाह और मुद्रा संतुलन प्रभावित हो सकते हैं। भारत जैसे उभरते देशों के लिए यह चेतावनी है कि विविधीकरण सिर्फ निर्यात में नहीं बल्कि वित्तीय सुरक्षा कवच बनाने में भी जरूरी है।


भारतीय नीति-निर्माताओं के लिए मुख्य संकेत

  • रिज़र्व मैनेजमेंट: डॉलर भंडार के साथ अन्य मुद्राओं और सोने में संतुलन रखना।
  • घरेलू बॉन्ड मार्केट मजबूत करना: सरकार और निजी क्षेत्र दोनों के लिए।
  • सेवा क्षेत्र का विविधीकरण: अमेरिकी निर्भरता कम कर यूरोप, अफ्रीका और दक्षिण एशिया में बाज़ार तलाशना।
  • संकट-संवाद तंत्र: भारत-अमेरिका वित्तीय संवाद को मजबूत करना ताकि अप्रत्याशित झटकों को संभाला जा सके।

वैश्विक वित्तीय शासन और सुधार

अमेरिकी शटडाउन IMF, विश्व बैंक और G20 जैसे मंचों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वर्तमान वैश्विक सुरक्षा तंत्र पर्याप्त है। भारत इस मौके पर बहुपक्षीय सुधार और “ग्लोबल साउथ” के हितों को आगे बढ़ा सकता है। पर्यटन और सेवा क्षेत्र पर भी असर पड़ता है क्योंकि अमेरिकी उपभोक्ता खर्च घटने से अंतरराष्ट्रीय यात्रा और डिमांड कम होती है।


लोकतंत्र, पूँजीवाद और जिम्मेदारी

यह शटडाउन एक गहरे प्रश्न को जन्म देता है – क्या लोकतांत्रिक राजनीति और वैश्विक पूँजीवाद के बीच संतुलन बिगड़ गया है? दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अगर अपनी ही सरकारी सेवाएँ रोक दे तो यह बताता है कि राजनीतिक सहमति और वैश्विक जिम्मेदारी में दरारें उभर रही हैं। भारत जैसी लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्थाओं को इससे सीख लेनी चाहिए और घरेलू मांग व निर्यात विविधीकरण पर जोर देना चाहिए।


दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य – जोखिम के बीच अवसर

यह संकट भारत के लिए “जोखिम” के साथ-साथ “सुधार” और “रणनीतिक पुनर्संतुलन” का मौका भी है। भारत अंतरराष्ट्रीय व्यापार में रुपये या एशियाई मुद्रा समूह की भूमिका बढ़ा सकता है, तकनीकी और हरित क्षेत्रों में अमेरिका के साथ नए सहयोग ढूंढ सकता है और क्षेत्रीय साझेदारियों को मजबूत कर सकता है।


निष्कर्ष – संकट में छिपा सबक

अमेरिकी सरकारी शटडाउन 2025 हमें याद दिलाता है कि वैश्वीकरण सिर्फ अवसर ही नहीं बल्कि नाजुक परस्पर निर्भरता भी लाता है। भारत और अन्य देशों के लिए यह समय है कि वे अपने वित्तीय और रणनीतिक ढाँचे को अधिक लचीला बनाएं। यदि भारत इस संकट को केवल “बाहरी झटका” न मानकर “नीति-पुनरावलोकन” का अवसर बनाए, तो यह दीर्घकाल में हमारी आर्थिक संप्रभुता और वैश्विक नेतृत्व क्षमता दोनों को मजबूत करेगा।


श्रोत- Reuters 

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