सऊदी–पाकिस्तान रक्षा समझौता: भारत के लिए अवसर और चुनौती
प्रस्तावना
सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुआ रक्षा समझौता केवल दो देशों की सुरक्षा जरूरतों का परिणाम नहीं है; यह मध्य-पूर्व और दक्षिण एशिया की बदलती भू-राजनीति का संकेतक है। यह कदम ऐसे समय में आया है जब इजरायल–हमास संघर्ष और अमेरिका की घटती क्षेत्रीय प्रतिबद्धताएँ नए शक्ति समीकरण गढ़ रही हैं। भारत के लिए यह विकास ऊर्जा सुरक्षा, सामरिक संतुलन और कूटनीतिक विकल्पों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
समझौते की प्रकृति और संदर्भ
रक्षा समझौते में “एक पर हमला, सब पर हमला” जैसी धारणा दोनों देशों के बीच सामूहिक सुरक्षा दायित्व को रेखांकित करती है। पाकिस्तान की परमाणु क्षमता और सऊदी का वित्तीय व सामरिक प्रभाव इस गठजोड़ को विशेष महत्व देते हैं। अमेरिका की सुरक्षा गारंटी में आई दरार और ईरान की बढ़ती क्षेत्रीय सक्रियता ने सऊदी को इस प्रकार के विकल्प खोजने के लिए प्रेरित किया है।
वैश्विक शक्ति-संतुलन पर असर
यह समझौता खाड़ी क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को और कम कर सकता है, जबकि चीन और रूस जैसी शक्तियों को नई भूमिका निभाने का अवसर दे सकता है। ईरान, तुर्की और कतर जैसे देशों की अलग-अलग प्राथमिकताएँ “इस्लामिक नाटो” की अवधारणा को कमजोर करती हैं, लेकिन यह संकेत स्पष्ट है कि खाड़ी और दक्षिण एशिया में सुरक्षा ढांचे का पुनर्संयोजन जारी है।
भारत के लिए निहितार्थ
भारत के लिए यह विकास कई स्तरों पर महत्वपूर्ण है।
- ऊर्जा और अर्थव्यवस्था: सऊदी भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है। द्विपक्षीय व्यापार 50 अरब डॉलर से अधिक है। किसी भी अस्थिरता का असर भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर पड़ेगा।
- सुरक्षा और सामरिक संतुलन: पाकिस्तान को अतिरिक्त वित्तीय या सामरिक सहयोग मिलने पर भारत-पाक तनाव बढ़ सकता है।
- प्रवासी भारतीय: सऊदी अरब में 26 लाख भारतीय प्रवासी रहते हैं, जिनकी सुरक्षा और कल्याण भारत के लिए संवेदनशील मुद्दा है।
भारत की नीति-उन्मुख चुनौतियाँ और अवसर
भारत के लिए यह समय संतुलन साधने का है।
- कूटनीतिक सक्रियता: सऊदी, यूएई और इजरायल के साथ समानांतर संपर्क बनाए रखना।
- क्षेत्रीय परियोजनाएँ: ईरान के चाबहार बंदरगाह, I2U2 और क्वाड जैसे मंचों को मज़बूत कर अपनी रणनीतिक गहराई बढ़ाना।
- सुरक्षा तैयारी: रक्षा क्षमताओं, खुफिया सहयोग और आतंकवाद विरोधी तंत्र को और सुदृढ़ करना।
- सॉफ्ट पॉवर: शिक्षा, तकनीक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के जरिए क्षेत्र में भारतीय प्रभाव को गहरा करना।
नैतिक व रणनीतिक संतुलन
भारत के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि वह आर्थिक व ऊर्जा हितों को सुरक्षित रखते हुए क्षेत्रीय शांति और आतंकवाद विरोधी सहयोग के प्रति प्रतिबद्धता को कैसे बनाए रखे। यह संतुलन ही भारत की “रणनीतिक स्वायत्तता” की परीक्षा है।
निष्कर्ष
सऊदी–पाकिस्तान रक्षा समझौता क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे में एक नए अध्याय की शुरुआत है। भारत के लिए यह चुनौती भी है और अवसर भी। चुनौती इस रूप में कि पाकिस्तान की सामरिक ताकत बढ़ सकती है; अवसर इस रूप में कि भारत अपने कूटनीतिक, आर्थिक और सॉफ्ट पॉवर संसाधनों के माध्यम से खाड़ी क्षेत्र में स्थिरता और सहयोग के नए मॉडल गढ़ सकता है।
यदि भारत संतुलित और सक्रिय विदेश नीति अपनाए, तो वह न केवल अपने हितों की रक्षा कर पाएगा, बल्कि खाड़ी क्षेत्र में एक स्थिर और रचनात्मक शक्ति के रूप में उभर सकता है।
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