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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

RSS at 100: History, Ideology and Its Impact on Indian Society

 “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 वर्ष: इतिहास, विचारधारा और भारतीय समाज पर प्रभाव”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का 100वां वर्ष 2025 में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो इसके ऐतिहासिक विकास, वैचारिक यात्रा और भारतीय समाज पर गहरे प्रभाव को दर्शाता है। 1926 में नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित RSS ने एक सदी में खुद को भारत के सबसे बड़े और सबसे प्रभावशाली स्वयंसेवी संगठनों में से एक के रूप में स्थापित किया है। इसकी यात्रा को समझने के लिए इसके ऐतिहासिक विकास, नेतृत्व के योगदान, वैचारिक आधार, और सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव को विस्तार से देखना आवश्यक है।

स्थापना और प्रारंभिक वर्ष

RSS की स्थापना 1926 में विजयादशमी के दिन नागपुर में हुई थी, जब डॉ. हेडगेवार ने 15-20 युवाओं के साथ पहली शाखा शुरू की। इसका प्राथमिक उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना और राष्ट्रीय चेतना को जागृत करना था। उस समय भारत ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अधीन था, और सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल का दौर था। हेडगेवार का मानना था कि हिंदू समाज की आंतरिक कमजोरियां—जैसे जातिगत विभाजन और संगठन का अभाव—राष्ट्रीय प्रगति में बाधक थीं।

पहली शाखा में शारीरिक प्रशिक्षण (जैसे व्यायाम, लाठी चलाना) और वैचारिक शिक्षा (हिंदू संस्कृति और राष्ट्रीयता पर चर्चा) पर जोर दिया गया। हेडगेवार ने "स्वयंसेवक" की अवधारणा को बढ़ावा दिया, जिसमें व्यक्तिगत अनुशासन, सामूहिक एकता और निस्वार्थ सेवा पर बल था। यह मॉडल RSS की रीढ़ बना, जो आज भी शाखाओं के माध्यम से जीवित है।

नेतृत्व और विस्तार

RSS के विकास में इसके सरसंघचालकों (प्रमुखों) का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। प्रत्येक नेता ने संगठन को नई दिशा दी और इसे समय के साथ प्रासंगिक बनाए रखा।

  1. केशव बलिराम हेडगेवार (1926-1940):
    हेडगेवार ने RSS को एक सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन के रूप में स्थापित किया। उनकी दृष्टि थी कि हिंदू समाज को संगठित और अनुशासित करके भारत को एक मजबूत राष्ट्र बनाया जा सकता है। उन्होंने शाखा प्रणाली को स्थानीय स्तर पर मजबूत किया और स्वयंसेवकों में "चरित्र निर्माण" और "राष्ट्रभक्ति" के मूल्यों को स्थापित किया। उनके नेतृत्व में RSS ने महाराष्ट्र के बाहर भी अपनी उपस्थिति दर्ज की।

  2. माधव सदाशिव गोलवलकर (1940-1973):
    गोलवलकर, जिन्हें "गुरुजी" के नाम से जाना जाता है, ने RSS को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार दिया। उन्होंने संगठन को एक संरचित ढांचा प्रदान किया, जिसमें प्रचारकों (पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं) की व्यवस्था थी। गोलवलकर ने RSS की वैचारिक नींव को मजबूत किया, विशेष रूप से "हिंदुत्व" की अवधारणा को, जिसे उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर के विचारों से प्रेरित होकर परिभाषित किया। उनकी पुस्तक Bunch of Thoughts RSS की वैचारिक दिशा को स्पष्ट करती है। हालांकि, उनके कार्यकाल में RSS को 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद प्रतिबंध का सामना करना पड़ा, क्योंकि कुछ लोगों ने संगठन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। गोलवलकर ने इस संकट का सामना करते हुए संगठन को एकजुट रखा और प्रतिबंध हटवाने में सफलता प्राप्त की।

  3. मधुकर दत्तात्रय देवरस (1973-1994):
    देवरस, जिन्हें "बालासाहेब" कहा जाता था, ने RSS को सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में अधिक सक्रिय बनाया। उन्होंने शाखाओं को स्थानीय चुनावी क्षेत्रों के साथ जोड़ा, जिससे RSS का प्रभाव सामाजिक स्तर से राजनीतिक स्तर तक फैला। उनके कार्यकाल में RSS ने राम जन्मभूमि आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने भारतीय जनता पार्टी (BJP) और विश्व हिंदू परिषद (VHP) जैसे सहयोगी संगठनों के साथ मिलकर हिंदू राष्ट्रवाद को मुख्यधारा में लाने में मदद की। देवरस ने सामाजिक समरसता (सामाजिक एकता) पर भी जोर दिया, ताकि जातिगत भेदभाव को कम किया जा सके।

  4. राजेंद्र सिंह (1994-2000):
    राजेंद्र सिंह, जिन्हें "रज्जू भैया" के नाम से जाना जाता था, ने RSS को एक आधुनिक और विद्वतापूर्ण चेहरा प्रदान किया। उनके नेतृत्व में संगठन ने वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति बढ़ाई और बौद्धिक चर्चाओं को प्रोत्साहित किया। उन्होंने RSS को अधिक समावेशी और खुला बनाने की कोशिश की, ताकि यह नए युग की चुनौतियों के लिए प्रासंगिक रहे।

  5. के.एस. सुदर्शन (2000-2009):
    सुदर्शन ने वैचारिक शुद्धता और हिंदुत्व के मूल सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित किया। उनके कार्यकाल में RSS ने तकनीकी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाने की कोशिश की, साथ ही सामाजिक सेवा के क्षेत्र में अपने प्रयासों को बढ़ाया। सुदर्शन ने स्वदेशी और आत्मनिर्भरता जैसे विचारों को प्रोत्साहित किया।

  6. मोहन भागवत (2009-वर्तमान):
    वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत ने RSS को अभूतपूर्व विस्तार दिया है। उनके नेतृत्व में शाखाओं की संख्या 83,000 से अधिक हो गई है, जो भारत के लगभग हर कोने में मौजूद हैं। भागवत ने RSS को सामाजिक परिवर्तन और सेवा के क्षेत्र में सक्रिय बनाया है, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, और आपदा प्रबंधन में योगदान। उन्होंने सामाजिक समरसता और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों पर जोर दिया है। भागवत का नेतृत्व समकालीन चुनौतियों—जैसे डिजिटल युग और वैश्वीकरण—के अनुरूप RSS को ढालने में महत्वपूर्ण रहा है।

वैचारिक आधार

RSS का मूल दर्शन "हिंदुत्व" है, जिसे वह भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय पहचान के रूप में परिभाषित करता है। यह विचारधारा सावरकर के Hindutva: Who is a Hindu? से प्रेरित है, जो हिंदू को न केवल धार्मिक पहचान, बल्कि सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान के रूप में देखता है। RSS का मानना है कि भारत की एकता और प्रगति के लिए हिंदू समाज का संगठन और सशक्तिकरण आवश्यक है।

RSS की शाखा प्रणाली इसके वैचारिक प्रसार का मुख्य साधन है। दैनिक शाखाओं में स्वयंसेवक शारीरिक प्रशिक्षण, बौद्धिक चर्चा और सामाजिक सेवा में भाग लेते हैं। यह प्रणाली न केवल अनुशासन और एकता को बढ़ावा देती है, बल्कि स्वयंसेवकों को सामाजिक और राजनीतिक कार्यों के लिए तैयार भी करती है।

सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव

RSS का भारतीय समाज और राजनीति पर गहरा प्रभाव रहा है। इसके सहयोगी संगठन, जिन्हें "संघ परिवार" कहा जाता है, विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय हैं:

  • भारतीय जनता पार्टी (BJP): RSS का राजनीतिक विंग, जो आज भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है।
  • विश्व हिंदू परिषद (VHP): धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर काम करता है।
  • अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP): छात्रों के बीच RSS के विचारों को बढ़ावा देता है।
  • सेवा भारती: सामाजिक सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत।
  • विद्या भारती: स्कूलों का एक नेटवर्क, जो हिंदू मूल्यों पर आधारित शिक्षा प्रदान करता है।

RSS ने राम जन्मभूमि आंदोलन, गौ-रक्षा, और स्वदेशी जैसे मुद्दों को मुख्यधारा में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, संगठन को अपने वैचारिक रुख और कथित सांप्रदायिकता के लिए आलोचना भी झेलनी पड़ी है। विरोधियों का कहना है कि RSS का हिंदुत्व का विचार समावेशी नहीं है और अल्पसंख्यकों के लिए चुनौतियां पैदा करता है। दूसरी ओर, RSS का दावा है कि वह सभी भारतीयों को एक सांस्कृतिक पहचान के तहत एकजुट करना चाहता है, न कि किसी धार्मिक विभाजन को बढ़ावा देना।

वर्तमान स्थिति और भविष्य

मोहन भागवत के नेतृत्व में RSS ने डिजिटल युग में अपनी उपस्थिति को मजबूत किया है। सोशल मीडिया और तकनीक के उपयोग ने संगठन को युवाओं तक पहुंचने में मदद की है। साथ ही, RSS ने सामाजिक मुद्दों—जैसे पर्यावरण संरक्षण, ग्रामीण विकास, और शिक्षा—पर ध्यान केंद्रित करके अपनी छवि को और अधिक समावेशी बनाने की कोशिश की है।

100वें वर्ष में RSS का लक्ष्य अपनी शाखाओं को और विस्तार देना, सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना, और भारत को एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करने में योगदान देना है। संगठन की ताकत इसकी अनुशासित संरचना, स्वयंसेवकों की निष्ठा, और वैचारिक स्पष्टता में निहित है।

निष्कर्ष

RSS का 100 साल का सफर एक छोटे से समूह से लेकर एक विशाल संगठन तक की यात्रा को दर्शाता है, जिसने भारतीय समाज और राजनीति को गहरे रूप से प्रभावित किया है। हेडगेवार की नींव से लेकर भागवत के आधुनिक दृष्टिकोण तक, RSS ने समय के साथ खुद को ढाला है, लेकिन अपने मूल सिद्धांतों—हिंदुत्व, अनुशासन, और सेवा—को बनाए रखा है। भविष्य में, RSS का प्रभाव भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर और भी गहरा हो सकता है, बशर्ते वह समकालीन चुनौतियों का सामना करने में सक्षम रहे।

श्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

UPSC और RSS

यूपीएससी (UPSC) परीक्षा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से सीधे तौर पर प्रश्न पूछे जाने के उदाहरण दुर्लभ हैं, क्योंकि यूपीएससी सामान्य रूप से विशिष्ट संगठनों पर केंद्रित प्रश्नों के बजाय व्यापक सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, या राजनीतिक मुद्दों पर सवाल पूछती है। हालांकि, RSS के वैचारिक आधार (हिंदुत्व), इसके सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव, या इसके सहयोगी संगठनों (जैसे BJP, VHP) से संबंधित विषयों पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रश्न पूछे गए हैं, विशेष रूप से सामान्य अध्ययन पेपर 1 (इतिहास और समाज) और पेपर 2 (शासन और राजनीति) में। साक्षात्कार चरण में भी RSS से संबंधित मुद्दों पर चर्चा हो सकती है, खासकर सामाजिक सौहार्द, राष्ट्रीय एकता, या सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में।

क्या RSS से सीधे प्रश्न पूछे गए हैं?

यूपीएससी के पिछले प्रश्नपत्रों का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि RSS का नाम लेकर सीधे प्रश्न कम ही पूछे गए हैं। इसके बजाय, निम्नलिखित संदर्भों में RSS से संबंधित विषय सामने आए हैं:

  1. हिंदुत्व और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद:

    • सामान्य अध्ययन पेपर 1 में भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीय आंदोलन, या सामाजिक सुधारों से संबंधित प्रश्नों में हिंदुत्व की विचारधारा या सांस्कृतिक संगठनों की भूमिका पर अप्रत्यक्ष रूप से चर्चा हो सकती है। उदाहरण:
      • "20वीं सदी में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उदय ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को कैसे प्रभावित किया?"
        (इसमें RSS के प्रारंभिक योगदान का उल्लेख संभव है।)
  2. सामाजिक समरसता और जातिगत सुधार:

    • RSS द्वारा सामाजिक समरसता (सामाजिक एकता) पर जोर को सामान्य अध्ययन पेपर 1 में सामाजिक मुद्दों के संदर्भ में पूछा जा सकता है। उदाहरण:
      • "भारत में सामाजिक एकता को बढ़ावा देने में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका की समीक्षा करें।"
        (यहां RSS के सामाजिक कार्यों, जैसे सेवा भारती, का उल्लेख प्रासंगिक हो सकता है।)
  3. राजनीतिक प्रभाव और संघ परिवार:

    • सामान्य अध्ययन पेपर 2 में राजनीतिक गतिशीलता या दबाव समूहों (pressure groups) से संबंधित प्रश्नों में RSS और इसके सहयोगी संगठनों (जैसे BJP) का प्रभाव अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हो सकता है। उदाहरण:
      • "भारत में दबाव समूहों ने राजनीतिक प्रक्रियाओं को कैसे प्रभावित किया है?"
        (इसमें RSS और BJP के संबंधों पर चर्चा हो सकती है।)
  4. राम जन्मभूमि आंदोलन:

    • RSS और विश्व हिंदू परिषद (VHP) की राम जन्मभूमि आंदोलन में भूमिका सामान्य अध्ययन पेपर 1 या 2 में सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों के संदर्भ में पूछी जा सकती है। उदाहरण:
      • "1980 और 1990 के दशक में धार्मिक आंदोलनों ने भारत की राजनीति को कैसे प्रभावित किया?"
  5. साक्षात्कार चरण:

    • साक्षात्कार में RSS से संबंधित सवाल अक्सर समकालीन मुद्दों, सामाजिक सौहार्द, या सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में पूछे जाते हैं। उदाहरण:
      • "हिंदुत्व की अवधारणा को आप कैसे देखते हैं? क्या यह भारत की बहुलवादी परंपराओं के साथ संतुलन बना सकती है?"
      • "सामाजिक संगठनों का राजनीति में प्रभाव: इसे आप कैसे संतुलित करेंगे?"

विशिष्ट उदाहरण (पिछले प्रश्न)

हालांकि RSS का नाम स्पष्ट रूप से कम ही लिया जाता है, निम्नलिखित कुछ उदाहरण हैं जहां RSS से संबंधित विषय अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हो सकते हैं:

  • 2018 (GS पेपर 1): "20वीं सदी में भारत में सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलनों की भूमिका का मूल्यांकन करें।"
    (यहां RSS के प्रारंभिक कार्यों को सांस्कृतिक संगठन के रूप में शामिल किया जा सकता है।)
  • 2020 (GS पेपर 2): "भारत में गैर-राज्य अभिकर्ताओं (non-state actors) की भूमिका और उनके शासन पर प्रभाव की चर्चा करें।"
    (RSS और इसके सहयोगी संगठनों को दबाव समूह के रूप में उल्लेख किया जा सकता है।)
  • 2019 (GS पेपर 4): "सामाजिक सेवा में नैतिकता और निस्वार्थता की भूमिका पर चर्चा करें।"
    (RSS की स्वयंसेवी संस्कृति और सेवा कार्यों को नैतिकता के संदर्भ में शामिल किया जा सकता है।)

RSS के 100वें वर्ष का महत्व

2025 में RSS के शताब्दी वर्ष के कारण इस विषय की प्रासंगिकता बढ़ गई है। यूपीएससी प्रारंभिक, मुख्य, या साक्षात्कार में इस संदर्भ में प्रश्न पूछ सकता है, विशेष रूप से:

  • RSS की ऐतिहासिक यात्रा और सामाजिक योगदान।
  • हिंदुत्व और भारत की बहुलवादी परंपराओं के बीच संतुलन।
  • सामाजिक समरसता और समावेशिता पर RSS के प्रयास।
  • डिजिटल युग में सामाजिक संगठनों की भूमिका।

क्या RSS पर प्रश्न भविष्य में पूछे जा सकते हैं?

RSS के 100वें वर्ष के कारण, 2025-26 की यूपीएससी परीक्षाओं में इस संगठन से संबंधित प्रश्नों की संभावना बढ़ गई है। विशेष रूप से, सामान्य अध्ययन पेपर 1 (सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, सामाजिक सुधार) और पेपर 2 (दबाव समूह, शासन) में अप्रत्यक्ष प्रश्न पूछे जा सकते हैं। साक्षात्कार में भी उम्मीदवारों से RSS की भूमिका, विवादों, और समकालीन प्रासंगिकता पर तटस्थ और संतुलित विचार मांगे जा सकते हैं।

तैयारी के लिए सुझाव

  1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: RSS की स्थापना, प्रमुख सरसंघचालकों (हेडगेवार, गोलवलकर, देवरस, भागवत) और उनकी भूमिका को समझें।
  2. वैचारिक आधार: हिंदुत्व, सामाजिक समरसता, और स्वदेशी जैसे सिद्धांतों का अध्ययन करें।
  3. संघ परिवार: BJP, VHP, ABVP, और सेवा भारती जैसे संगठनों के कार्यक्षेत्र और प्रभाव को जानें।
  4. विवाद और आलोचनाएं: सांप्रदायिकता के आरोपों और 1948 के प्रतिबंध जैसे मुद्दों पर तटस्थ दृष्टिकोण विकसित करें।
  5. समकालीन प्रासंगिकता: RSS के सामाजिक कार्य, डिजिटल उपस्थिति, और युवाओं के बीच प्रभाव को समझें।
  6. संतुलित दृष्टिकोण: साक्षात्कार के लिए RSS के योगदान और आलोचनाओं को संवैधानिक मूल्यों (जैसे समावेशिता, धर्मनिरपेक्षता) के साथ जोड़कर जवाब तैयार करें।

निष्कर्ष

हालांकि RSS से सीधे प्रश्न यूपीएससी में कम पूछे गए हैं, लेकिन इसके वैचारिक, सामाजिक, और राजनीतिक प्रभाव से संबंधित विषय अप्रत्यक्ष रूप से प्रासंगिक रहे हैं। 2025 में शताब्दी वर्ष के कारण, RSS से संबंधित प्रश्नों की संभावना बढ़ी है, विशेष रूप से सामान्य अध्ययन और साक्षात्कार में। उम्मीदवारों को इस विषय पर तथ्यात्मक ज्ञान, विश्लेषणात्मक समझ, और तटस्थ दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए ताकि ऐसे प्रश्नों का प्रभावी ढंग से जवाब दिया जा सके।

यदि प्रश्न पूछें जाते हैं तो संभावित प्रश्न ये हो सकते हैं

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100वें वर्ष के संदर्भ में, यूपीएससी (UPSC) परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न विभिन्न आयामों—ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनीतिक और वैचारिक—को ध्यान में रखकर तैयार किए जा सकते हैं। नीचे कुछ संभावित प्रश्न दिए गए हैं, जो प्रारंभिक, मुख्य और साक्षात्कार चरणों के लिए प्रासंगिक हो सकते हैं। ये प्रश्न RSS की स्थापना, विकास, प्रभाव और विवादों पर आधारित हैं, जो UPSC के सामान्य अध्ययन (GS) पाठ्यक्रम के अनुरूप हैं।

प्रारंभिक परीक्षा (MCQ आधारित)

  1. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना कब और किसके द्वारा की गई थी?
    a) 1920, विनायक दामोदर सावरकर
    b) 1926, केशव बलिराम हेडगेवार
    c) 1930, माधव सदाशिव गोलवलकर
    d) 1925, मोहन भागवत

    उत्तर: b) 1926, केशव बलिराम हेडगेवार

  2. निम्नलिखित में से कौन सा संगठन RSS के सहयोगी संगठनों में शामिल नहीं है?
    a) भारतीय जनता पार्टी (BJP)
    b) विश्व हिंदू परिषद (VHP)
    c) अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP)
    d) राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA)

    उत्तर: d) राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA)

  3. RSS के संदर्भ में 'शाखा' क्या है?
    a) एक प्रशिक्षण केंद्र
    b) एक स्थानीय स्वयंसेवी इकाई
    c) एक राजनीतिक शाखा
    d) एक धार्मिक समिति

    उत्तर: b) एक स्थानीय स्वयंसेवी इकाई

  4. निम्नलिखित में से कौन सा RSS का प्रमुख वैचारिक सिद्धांत है?
    a) समाजवाद
    b) हिंदुत्व
    c) पूंजीवाद
    d) साम्यवाद

    उत्तर: b) हिंदुत्व

मुख्य परीक्षा (वर्णनात्मक प्रश्न)

सामान्य अध्ययन पेपर 1 (इतिहास और समाज)

  1. "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने भारतीय समाज को संगठित करने और राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।" इस कथन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और सामाजिक प्रभाव के संदर्भ में समीक्षा करें। (250 शब्द)

    • संकेत: RSS की स्थापना, हेडगेवार और गोलवलकर के योगदान, सामाजिक समरसता और सेवा कार्यों पर प्रभाव।
  2. RSS के हिंदुत्व के विचार ने भारतीय सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान को कैसे प्रभावित किया है? इसकी समावेशिता और विवादों पर प्रकाश डालें। (200 शब्द)

    • संकेत: हिंदुत्व की अवधारणा, सावरकर का प्रभाव, समावेशी बनाम सांप्रदायिकता के आरोप।

सामान्य अध्ययन पेपर 2 (शासन और राजनीति)

  1. RSS और इसके सहयोगी संगठनों ने भारतीय राजनीति को किस हद तक प्रभावित किया है? क्या यह प्रभाव लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के लिए चुनौती या अवसर प्रस्तुत करता है? तर्कसहित विश्लेषण करें। (250 शब्द)

    • संकेत: RSS और BJP का संबंध, राम जन्मभूमि आंदोलन, राजनीतिक ध्रुवीकरण।
  2. RSS की सामाजिक समरसता की पहल भारत में जातिगत और सामाजिक विभाजनों को कम करने में कितनी प्रभावी रही है? इसकी उपलब्धियों और सीमाओं की समीक्षा करें। (200 शब्द)

    • संकेत: सामाजिक समरसता के प्रयास, सेवा भारती, आलोचनाएं।

सामान्य अध्ययन पेपर 4 (नैतिकता)

  1. RSS की स्वयंसेवी संस्कृति और अनुशासन पर आधारित कार्यप्रणाली में नैतिक मूल्यों का क्या महत्व है? क्या यह आधुनिक भारत में नेतृत्व और सामाजिक सेवा के लिए एक मॉडल हो सकता है? (150 शब्द)
    • संकेत: स्वयंसेवक की निष्ठा, चरित्र निर्माण, नैतिकता और सामाजिक सेवा।

साक्षात्कार (संभावित प्रश्न)

  1. RSS के 100 साल पूरे होने पर इसके योगदान और विवादों को आप कैसे देखते हैं? क्या आप इसे एक सांस्कृतिक संगठन मानते हैं या इसका राजनीतिक प्रभाव अधिक प्रमुख है?

    • अपेक्षित दृष्टिकोण: तटस्थ और संतुलित विश्लेषण, ऐतिहासिक तथ्यों और समकालीन प्रभाव का उल्लेख।
  2. RSS का हिंदुत्व का विचार भारत की बहुलवादी परंपराओं के साथ कैसे संतुलन बनाता है? क्या यह समावेशी है या विभाजनकारी? अपने विचार व्यक्त करें।

    • अपेक्षित दृष्टिकोण: संवेदनशीलता के साथ तर्कसंगत जवाब, भारत की विविधता को ध्यान में रखते हुए।
  3. RSS की शाखा प्रणाली युवाओं को अनुशासित और सामाजिक रूप से जागरूक बनाने में कितनी प्रभावी है? क्या इसे आधुनिक संदर्भ में और समावेशी बनाया जा सकता है?

    • अपेक्षित दृष्टिकोण: शाखा प्रणाली के लाभ, डिजिटल युग की चुनौतियां, समावेशिता पर सुझाव।
  4. RSS को अक्सर सांप्रदायिकता के आरोपों का सामना करना पड़ता है। एक प्रशासक के रूप में, आप सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के लिए इसके प्रभाव को कैसे संतुलित करेंगे?

    • अपेक्षित दृष्टिकोण: संवैधानिक मूल्यों, समावेशिता और सामाजिक एकता पर जोर।

तैयारी के लिए सुझाव

  • ऐतिहासिक तथ्य: RSS की स्थापना, नेतृत्व और प्रमुख घटनाओं (जैसे 1948 का प्रतिबंध, राम जन्मभूमि आंदोलन) को अच्छी तरह समझें।
  • वैचारिक आधार: हिंदुत्व, सामाजिक समरसता और स्वदेशी जैसे सिद्धांतों का विश्लेषण करें।
  • सहयोगी संगठन: संघ परिवार के संगठनों (BJP, VHP, ABVP, सेवा भारती) और उनके कार्यक्षेत्र को जानें।
  • विवाद और आलोचनाएं: RSS पर लगने वाले सांप्रदायिकता और राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोपों को तटस्थ दृष्टिकोण से समझें।
  • समकालीन प्रासंगिकता: डिजिटल युग, युवा जुड़ाव और सामाजिक सेवा में RSS की भूमिका पर ध्यान दें।

ये प्रश्न UPSC के पाठ्यक्रम के विभिन्न पहलुओं—इतिहास, समाज, शासन और नैतिकता—को कवर करते हैं और उम्मीदवारों को तथ्यात्मक ज्ञान, विश्लेषणात्मक सोच और संतुलित दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करेंगे।


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