नेतन्याहू का यूएन संबोधन और ट्रंप का वेस्ट बैंक पर बयान – मध्य पूर्व में बदलते समीकरण
इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का संयुक्त राष्ट्र महासभा का हालिया संबोधन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का वेस्ट बैंक के विलय पर कड़ा रुख मध्य पूर्व की भू-राजनीति में एक नए तनाव का संकेत देता है। नेतन्याहू ने अपने भाषण में जहां ईरान, हमास और हिजबुल्लाह को निशाना बनाकर इजरायल की सुरक्षा नीतियों का बचाव किया, वहीं ट्रंप का यह कहना कि वे वेस्ट बैंक के विलय की अनुमति नहीं देंगे, इजरायल-अमेरिका संबंधों में एक अप्रत्याशित मोड़ लाता है। यह घटनाक्रम क्षेत्रीय शांति प्रक्रिया के लिए नई चुनौतियां और संभावनाएं दोनों प्रस्तुत करता है।
ट्रंप का बयान: नीतिगत बदलाव या रणनीतिक चाल?
ट्रंप का वेस्ट बैंक विलय को खारिज करना उनके पहले कार्यकाल की नीतियों से उलट है, जब उन्होंने इजरायल के प्रति उदार रुख अपनाया था। जेरूसलम को इजरायल की राजधानी मान्यता देना और गोलान हाइट्स पर इजरायल के दावे का समर्थन करना उनके ऐसे फैसले थे, जिन्हें नेतन्याहू की सरकार ने उत्साहपूर्वक स्वागत किया था। लेकिन वेस्ट बैंक पर उनका ताजा बयान न केवल इजरायल की दक्षिणपंथी सरकार के लिए झटका है, बल्कि यह वैश्विक मंच पर संतुलन की कोशिश को भी दर्शाता है।
क्या यह बयान अमेरिकी घरेलू राजनीति और अंतरराष्ट्रीय दबाव का परिणाम है? यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र लंबे समय से वेस्ट बैंक के विलय की आलोचना करते रहे हैं, इसे दो-राज्य समाधान के लिए खतरा बताते हुए। साथ ही, अरब देशों ने चेतावनी दी है कि ऐसा कदम क्षेत्रीय स्थिरता को नुकसान पहुंचा सकता है। ट्रंप का यह रुख संभवतः मध्य पूर्व में अपने सहयोगियों, विशेष रूप से सऊदी अरब जैसे देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने की रणनीति हो सकता है।
नेतन्याहू का संबोधन: आक्रामकता या रक्षात्मक रुख?
नेतन्याहू का संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण उनकी परिचित शैली में था – आक्रामक, आत्मविश्वास से भरा और इजरायल की सुरक्षा को सर्वोपरि रखने वाला। उन्होंने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को वैश्विक खतरा करार दिया और हमास के खिलाफ अपनी सैन्य कार्रवाइयों को उचित ठहराया। हालांकि, ट्रंप के बयान पर उनकी चुप्पी और केवल अमेरिका के साथ "अटूट साझेदारी" की बात करना उनके रणनीतिक संयम को दर्शाता है।
नेतन्याहू के सामने दोहरी चुनौती है। एक ओर, उन्हें घरेलू स्तर पर दक्षिणपंथी समर्थकों को संतुष्ट करना है, जो वेस्ट बैंक विलय की मांग करते हैं। दूसरी ओर, वे अमेरिका जैसे प्रमुख सहयोगी के साथ तनाव नहीं चाहते। उनके भाषण के दौरान फिलिस्तीनी प्रतिनिधिमंडल का वॉकआउट इस बात का संकेत है कि इजरायल-फिलिस्तीन वार्ता में विश्वास का संकट गहरा गया है।
आगे का रास्ता
मध्य पूर्व में शांति की राह पहले से ही जटिल है। ट्रंप का बयान और नेतन्याहू का संबोधन इस जटिलता को और बढ़ाते हैं। दो-राज्य समाधान, जिसे संयुक्त राष्ट्र और कई देश शांति का आधार मानते हैं, अब भी दूर की कौड़ी लगता है। इजरायल को चाहिए कि वह अपनी सुरक्षा चिंताओं को संबोधित करते हुए फिलिस्तीनी आकांक्षाओं को भी स्वीकार करे। वहीं, अमेरिका को चाहिए कि वह अपने सहयोगियों के बीच संतुलन बनाए, ताकि क्षेत्रीय स्थिरता प्रभावित न हो।
इस समय वैश्विक समुदाय की जिम्मेदारी है कि वह इजरायल और फिलिस्तीन के बीच सार्थक बातचीत को प्रोत्साहित करे। ट्रंप का बयान इस दिशा में एक अवसर हो सकता है, बशर्ते इसे रचनात्मक कूटनीति के साथ लागू किया जाए। अन्यथा, यह केवल मध्य पूर्व में तनाव को और गहराने का काम करेगा।
स्रोत: रॉयटर्स के अंग्रेजी लेख से प्रेरित
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