महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA): 20 साल का सफर और सियासी घमासान
परिचय: एक योजना जो बनी ग्रामीण भारत की धड़कन
2005 में जब भारत में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) की शुरुआत हुई, तो यह ग्रामीण भारत के लिए एक क्रांतिकारी कदम था। गाँवों में बेरोजगारी और गरीबी से जूझ रहे परिवारों को न सिर्फ रोजगार का हक मिला, बल्कि एक उम्मीद की किरण भी दिखी। 2025 में इस योजना ने अपनी 20वीं सालगिरह मनाई, लेकिन इस मौके पर खुशी के साथ-साथ सियासी तू-तू मैं-मैं भी जोरों पर है। कांग्रेस ने केंद्र की मोदी सरकार पर इस योजना को कमजोर करने का आरोप लगाया है, तो सरकार का दावा है कि उसने इसे और मजबूत किया है। आइए, इस योजना की कहानी, इसकी उपलब्धियों और विवादों को सरल और रुचिकर अंदाज में समझते हैं।
MGNREGA की कहानी: एक नजर में
शुरुआत: 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुवाई में शुरू हुई यह योजना ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलने का वादा लेकर आई थी। इसका मकसद था हर ग्रामीण परिवार को साल में कम से कम 100 दिन का रोजगार देना, ताकि उनकी आजीविका सुरक्षित हो सके।
प्रभाव: पिछले दो दशकों में MGNREGA ने करोड़ों परिवारों को रोजगार दिया। गाँवों में सड़कें, तालाब, कुएँ और सामुदायिक भवन जैसे ढाँचे बने। खास बात यह रही कि इस योजना ने महिलाओं को भी बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर दिए, जिससे उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्थिरता मिली और गरीबी कम करने में यह योजना एक बड़ा हथियार बनी।
कांग्रेस का हमला: “मोदी सरकार ने योजना को कमजोर किया”
MGNREGA की 20वीं सालगिरह पर कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा। उनके प्रमुख आरोप इस प्रकार हैं:
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कम फंडिंग का दर्द: कांग्रेस का कहना है कि पिछले 11 सालों में मोदी सरकार ने इस योजना को पर्याप्त बजट नहीं दिया। नतीजा? कई बार मजदूरों को काम ही नहीं मिला, और जो काम मिला, उसकी मजदूरी भी समय पर नहीं दी गई।
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मजदूरों का बकाया: कई राज्यों में मजदूरों को उनकी मेहनत का पैसा समय पर नहीं मिल रहा। यह देरी न सिर्फ श्रमिकों का शोषण है, बल्कि उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति को और कमजोर करती है।
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‘कागजी गारंटी’ का तंज: कांग्रेस का दावा है कि MGNREGA अब सिर्फ कागजों पर चल रही है। रोजगार के दिन और लाभार्थियों की संख्या लगातार घट रही है, जिससे इस योजना की मूल भावना को ठेस पहुँची है।
कांग्रेस इसे अपनी ‘सपनों की योजना’ मानती है और इसे कमजोर करने का आरोप लगाकर भाजपा पर हमलावर है।
मोदी सरकार का जवाब: “हमने योजना को बनाया और बेहतर”
केंद्र सरकार इन आरोपों को सिरे से खारिज करती है। उसका कहना है कि MGNREGA को न सिर्फ बनाए रखा गया, बल्कि इसे तकनीक और पारदर्शिता के साथ और मजबूत किया गया। सरकार के प्रमुख दावे:
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तकनीक का सहारा: आधार से जुड़े भुगतान और डिजिटल रिकॉर्ड ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई है। अब पैसा सीधे मजदूरों के खाते में जाता है, जिससे बिचौलियों की भूमिका खत्म हुई।
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कोविड में ‘संकटमोचक’: जब कोविड-19 महामारी ने देश को हिलाकर रख दिया, तब MGNREGA ने ग्रामीण भारत को संबल दिया। लाखों प्रवासी मजदूरों को अपने गाँवों में रोजगार मिला, जिससे उनकी आजीविका बची।
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नया फोकस: सरकार का कहना है कि वह सिर्फ मजदूरी-आधारित रोजगार पर निर्भर नहीं है। वह ग्रामीण युवाओं के लिए कौशल विकास और स्थायी रोजगार के अवसरों पर जोर दे रही है, ताकि दीर्घकालिक समाधान मिले।
सियासत और सामाजिक हकीकत
कांग्रेस का नजरिया: MGNREGA उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। यह योजना उनके लिए सियासी हथियार भी है, जिसके जरिए वह ग्रामीण वोटरों को लुभाने की कोशिश करती है।
भाजपा का रुख: शुरुआत में भाजपा ने इस योजना को ‘गड्ढे खोदने’ वाली योजना कहकर तंज कसा था। लेकिन सत्ता में आने के बाद उसने इसे अपनाया और अपने हिसाब से सुधार किए।
सामाजिक महत्व: ग्रामीण भारत के लिए MGNREGA आज भी एक ‘जीवनरेखा’ है। लेकिन कम बजट, भुगतान में देरी और जमीनी स्तर पर खराब प्रबंधन ने इसकी विश्वसनीयता को चोट पहुँचाई है। फिर भी, यह योजना गाँवों में गरीब परिवारों के लिए एक बड़ा सहारा बनी हुई है।
UPSC के नजरिए से: क्यों है यह महत्वपूर्ण?
MGNREGA न सिर्फ सामाजिक और आर्थिक नीतियों का हिस्सा है, बल्कि UPSC जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी एक अहम विषय है।
- GS Paper 2 (शासन): इस योजना के क्रियान्वयन में पारदर्शिता, जवाबदेही और जमीनी चुनौतियों का विश्लेषण।
- GS Paper 3 (अर्थव्यवस्था): ग्रामीण रोजगार, गरीबी उन्मूलन और समावेशी विकास में इसकी भूमिका।
- निबंध (Essay): “ग्रामीण रोजगार नीतियों के जरिए समावेशी विकास” या “MGNREGA: उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ” जैसे विषयों पर यह एक बेहतरीन केस स्टडी हो सकती है।
निष्कर्ष: योजना या सियासत?
MGNREGA ने पिछले 20 सालों में ग्रामीण भारत को आर्थिक और सामाजिक ताकत दी है। गाँवों में बनी सड़कें, तालाब और सामुदायिक ढाँचे इसकी सफलता की कहानी बयां करते हैं। लेकिन सियासी खींचतान और फंडिंग की कमी ने इसके भविष्य पर सवाल खड़े किए हैं। जरूरत इस बात की है कि MGNREGA को सिर्फ वोटों का हथियार न बनाया जाए। इसके लिए अधिक बजट, समय पर भुगतान और पारदर्शी प्रबंधन जरूरी है, ताकि यह योजना वास्तव में ग्रामीण भारत की ‘आजीविका गारंटी’ बन सके।
आपके लिए सवाल: क्या आपको लगता है कि MGNREGA जैसी योजनाएँ ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बना सकती हैं, या इनमें और सुधार की जरूरत है? अपनी राय साझा करें!
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