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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Is Reform UK Ending Britain’s Two-Party System? A 2025 Political Analysis

क्या रिफॉर्म यूके खत्म कर रही है ब्रिटेन की द्वि-दलीय व्यवस्था?

(एक गहन विश्लेषण: ब्रिटेन की राजनीति का बदलता परिदृश्य)

ब्रिटेन की राजनीति में इन दिनों हलचल सिर्फ़ चुनावों तक सीमित नहीं है; यह एक बड़े ऐतिहासिक बदलाव का संकेत है। दशकों से चली आ रही लेबर बनाम कंजर्वेटिव की द्वि-दलीय राजनीति अब दरकती दिखाई दे रही है। और इस बदलाव के केंद्र में है निगेल फराज की पॉपुलिस्ट पार्टी रिफॉर्म यूके (Reform UK)। मई 2025 के स्थानीय चुनावों और हालिया YouGov पोल्स ने इस प्रश्न को और प्रासंगिक बना दिया है – क्या ब्रिटेन की पारंपरिक राजनीतिक संरचना टूटने के कगार पर है?


🔹 रिफॉर्म यूके का उभार: “थर्ड फोर्स” से मेनस्ट्रीम तक

रिफॉर्म यूके, जो पहले ब्रेक्सिट पार्टी के नाम से जानी जाती थी, 2018 में एक सीमित एजेंडे के साथ आई थी। लेकिन सात वर्षों में यह “सिंगल-इश्यू” पार्टी से उठकर एक व्यापक पॉपुलिस्ट मूवमेंट में बदल चुकी है।

  • फराज की करिश्माई अपील: ट्रंप-शैली की रैलियां, सोशल मीडिया पर पैना प्रहार, और आव्रजन-विरोधी नैरेटिव।
  • मई 2025 की जीतें: 1,641 काउंसिल सीटों में सबसे आगे, 10 स्थानीय प्राधिकरणों पर नियंत्रण, 2 मेयर पद।
  • रनकॉर्न एंड हेल्स्बी का मिनी-भूकंप: लेबर को 6 वोट से हराना — यह सीट 2024 के चुनाव में 15,000 वोट की लेबर बढ़त वाली थी।

इस तरह के परिणाम रिफॉर्म यूके को सिर्फ़ “बैकबेंच प्रोटेस्ट पार्टी” से उठाकर पावर पॉलिटिक्स के केंद्र में ले आए हैं।


🔹 ताज़ा पोल्स: लेबर और कंजर्वेटिव दोनों से आगे

YouGov के सितंबर 2025 MRP पोल के अनुसार:

  • रिफॉर्म: 311 सीटें (पूर्ण बहुमत 326 से सिर्फ़ 15 कम)
  • लेबर: 21% वोट शेयर
  • कंजर्वेटिव: 17% वोट शेयर
  • रिफॉर्म: 27% वोट शेयर (पहली बार दोनों पारंपरिक दलों से आगे)

1832 के बाद यह पहला मौका है जब किसी गैर-लेबर/कंजर्वेटिव पार्टी ने चार महीने लगातार राष्ट्रीय पोल्स में बढ़त बनाई है।


🔹 क्यों टूटी ‘टू-पार्टी सिस्टम’ की चेन

ब्रिटेन में लंबे समय से “साफ़ विकल्प” था – लेबर की प्रगतिशील, वेलफ़ेयर-उन्मुख नीतियां बनाम कंजर्वेटिव्स की फ्री-मार्केट और पारंपरिक नीतियां। लेकिन हालिया घटनाओं ने इसे उलट दिया:

  1. लेबर की गिरती विश्वसनीयता

    • कीर स्टार्मर की 2024 में बनी 411 सीटों वाली मेगा-सरकार अब आर्थिक मंदी, महंगाई और विंटर फ्यूल पेमेंट्स कटौती जैसी विवादास्पद नीतियों के कारण दबाव में।
    • सिर्फ़ 11% लोग सरकार के प्रदर्शन से संतुष्ट।
    • लेबर वोट शेयर 37.5% से 23.3% पर गिरा।
  2. कंजर्वेटिव्स की ऐतिहासिक हार और आंतरिक संकट

    • 2024 में महज़ 121 सीटें।
    • मई 2025 में 500+ लोकल सीटें गंवाईं।
    • नेतृत्व संकट (ऋषि सुनक का इस्तीफ़ा, किज़र बडेनॉच का कमज़ोर पकड़)।
  3. रिफॉर्म यूके की स्मार्ट पोजिशनिंग

    • ब्रेक्सिट के बाद के “छोड़े हुए मतदाता” को पकड़ना।
    • इमिग्रेशन, नेशनल प्राइड, और एंटी-एस्टैब्लिशमेंट टोन।
    • सोशल मीडिया + ज़मीनी कैंपेन का कॉम्बिनेशन।

🔹 राजनीतिक भूगोल का बदलाव

रिफॉर्म यूके ने उत्तर और मध्य इंग्लैंड में कंजर्वेटिव का “ब्लू वॉल” और लेबर का “रेड वॉल” दोनों में सेंध लगाई है।

  • वर्किंग-क्लास वोटर: जो कभी ट्रेड यूनियनों के कारण लेबर का था।
  • लोअर मिडिल क्लास/स्मॉल बिज़नेस वोटर: जो कंजर्वेटिव्स की रीढ़ था।

इस तरह रिफॉर्म “ब्रेक्सिट ब्लॉक” को एक सुसंगठित राजनीतिक ताक़त में बदल रही है।


🔹 अन्य पार्टियों की भूमिका: मल्टी-पार्टी डेमोक्रेसी की आहट

  • लिबरल डेमोक्रेट्स: 15% वोट शेयर, 78 सीटें।
  • ग्रीन्स: 11% वोट शेयर, 7 सीटें।
  • स्कॉटिश नेशनल पार्टी: स्कॉटलैंड में पारंपरिक पकड़ बरक़रार।

इन सभी ने मिलकर ब्रिटेन की राजनीति को 1950 के दशक की “दो विकल्प” वाली सरल संरचना से निकालकर जर्मनी-जैसी बहुदलीय व्यवस्था की ओर धकेल दिया है।


🔹 लेबर की रणनीति और स्टार्मर का दांव

सितंबर 2025 की लेबर कॉन्फ्रेंस, लिवरपूल:

  • स्टार्मर ने रिफॉर्म को “नस्लवादी” नीतियों (सामूहिक निर्वासन, शरणार्थियों पर पाबंदी) का समर्थक बताया।
  • पार्टी वर्करों को “आत्ममंथन” छोड़कर सीधी टक्कर देने का आह्वान।
    लेकिन पोल्स और डिप्टी पीएम एंजेला रेनर के इस्तीफ़े ने उनकी स्थिति कमज़ोर कर दी। विश्लेषक मानते हैं कि यदि लेबर ने 2026 तक ठोस नतीजे नहीं दिए तो जल्दी चुनाव (2027) दबाव बन सकता है।

🔹 2029 के चुनाव या उससे पहले?

रिफॉर्म की मौजूदा रफ़्तार बनी रही तो 2029 का चुनाव ऐतिहासिक हो सकता है।

  • सीनारियो 1: रिफॉर्म सबसे बड़ी पार्टी, लेकिन बहुमत से कम।
  • सीनारियो 2: गठबंधन सरकारें (जैसे यूरोप में)।
  • सीनारियो 3: लेबर और कंजर्वेटिव्स का “एंटी-रिफॉर्म” फ्रंट।

इनमें से कोई भी स्थिति ब्रिटेन की द्वि-दलीय व्यवस्था को जड़ से बदल सकती है।


🔹 विशेषज्ञों की राय: “पॉपुलिज़्म 2.0”

ब्रिटिश राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं:

“रिफॉर्म यूके केवल एक पार्टी नहीं है, यह उस गुस्से का राजनीतिक रूपांतरण है जिसे ब्रेक्सिट ने जन्म दिया और आर्थिक संकट ने पोषित किया।”

दूसरे विशेषज्ञ इसे “यूके का ट्रंप मोमेंट” कह रहे हैं – यानी एक ऐसा समय जब पारंपरिक दल जनता से कनेक्ट खो बैठे और पॉपुलिस्ट ताक़तें उस गैप को भरने लगीं।


🔹 निष्कर्ष: एक नई राजनीतिक व्याख्या की शुरुआत

रिफॉर्म यूके की जीत और पोल्स में बढ़त से यह साफ़ है कि ब्रिटेन की राजनीति अब पुरानी द्वि-दलीय बाइनरी में फिट नहीं बैठती।

  • यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी कि दो-पार्टी सिस्टम “ख़त्म” हो गया है,
  • लेकिन यह कहना भी मुश्किल नहीं कि हम ब्रिटेन के राजनीतिक इतिहास के सबसे बड़े रियलाइन्मेंट्स में से एक देख रहे हैं।

अगले 2–3 साल तय करेंगे कि यह उभार स्थायी होगा या अस्थायी, लेकिन इतना तय है – ब्रिटिश राजनीति अब वैसी नहीं रहेगी जैसी हम दशकों से देखते आए हैं।



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