भारत का विदेशी कर्ज बनाम विदेशी मुद्रा भंडार 2025: आर्थिक मजबूती का संतुलन
प्रस्तावना
भारत की अर्थव्यवस्था 2025 में नई ऊंचाइयों की ओर बढ़ रही है। 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की महत्वाकांक्षा के बीच देश की बाहरी वित्तीय स्थिति – विशेषकर विदेशी मुद्रा भंडार और विदेशी कर्ज – चर्चा का प्रमुख विषय बन गई है। सितंबर 2025 तक भारत के विदेशी मुद्रा भंडार 702.57 बिलियन डॉलर और विदेशी कर्ज 663 बिलियन डॉलर है। पहली नजर में यह स्थिति संतुलित और मजबूत प्रतीत होती है, लेकिन गहराई से देखने पर अवसरों, चुनौतियों और नीतिगत जिम्मेदारियों की कई परतें सामने आती हैं।
1. विदेशी मुद्रा भंडार: सुरक्षा और आत्मविश्वास का आधार
विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश के लिए “आर्थिक बफर” की तरह होता है। यह आयात भुगतान, मुद्रा की स्थिरता और बाहरी झटकों को झेलने की क्षमता तय करता है।
- रिकॉर्ड स्तर: भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार सितंबर 2025 के अंत में भंडार 704.89 बिलियन डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंचा।
- आयात कवरेज: यह भंडार 10-11 महीने के आयात को कवर करता है, जबकि वैश्विक मानक 3-6 महीने का है।
- कारण: 2024-25 में 6% से अधिक निर्यात वृद्धि, FDI प्रवाह में मजबूती, और RBI की सक्रिय नीति।
- स्थिर रुपया: 2025 में रुपये का अवमूल्यन सिर्फ 2.9% रहा, जो अन्य उभरते बाजारों से बेहतर है।
मेरे विचार में यह केवल “अच्छे आंकड़े” नहीं हैं, बल्कि यह दिखाते हैं कि भारत ने आर्थिक प्रबंधन के स्तर पर गंभीर अनुशासन बनाए रखा है। हालांकि यह भी सच है कि इस भंडार का बड़ा हिस्सा “हॉट मनी” (अल्पकालिक निवेश) और विदेशी पोर्टफोलियो प्रवाह पर निर्भर है, जो संकट के समय बाहर भी जा सकता है।
2. विदेशी कर्ज: सीमित लेकिन चुनौतियों के साथ
भारत का विदेशी कर्ज मार्च 2025 में 663 बिलियन डॉलर पर है, जो मार्च 2024 के 663.8 बिलियन डॉलर से लगभग अपरिवर्तित है।
- GDP के अनुपात में: यह कर्ज जीडीपी के 19.4% के बराबर है, जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कम है।
- कर्ज संरचना: 53.8% अमेरिकी डॉलर में, 31.5% रुपये में और केवल 18.5% अल्पकालिक।
- डेट सर्विस रेशियो: 2024 में 5.3% से बढ़कर 2025 में 6.7% हो गया।
- भविष्य की चुनौतियां: बुनियादी ढांचा, हरित ऊर्जा और रक्षा परियोजनाओं के लिए बढ़ते निवेश से कर्ज बढ़ सकता है।
मेरी राय में, आज की “संतुलित” स्थिति हमें संतुष्ट नहीं कर सकती, क्योंकि वैश्विक ब्याज दरें बढ़ रही हैं और डॉलर में कर्ज का हिस्सा ज्यादा है। इससे भुगतान क्षमता पर दबाव आ सकता है।
3. भंडार बनाम कर्ज: अनुपात और इतिहास
1991 के भुगतान संकट में भारत के पास सिर्फ 5 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था, जबकि कर्ज और आयात की जरूरतें उससे कहीं अधिक थीं। 2025 में स्थिति उलट है:
- भंडार-कर्ज अनुपात: 97-106% के बीच।
- अल्पकालिक कर्ज: भंडार का सिर्फ 20%।
- जोखिम न्यूनतम: डिफॉल्ट या तात्कालिक भुगतान संकट का खतरा बहुत कम।
मेरे अनुसार यह अनुपात भारत की “स्मार्ट मैनेजमेंट” का परिणाम है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि व्यापार घाटा, खासकर चीन के साथ 99 बिलियन डॉलर का असंतुलन, भविष्य में इस अनुपात पर दबाव डाल सकता है।
4. व्यापार घाटा और बाहरी दबाव
भारत का 2024-25 में कुल व्यापार घाटा 94.26 बिलियन डॉलर रहा। इलेक्ट्रॉनिक्स और तेल आयात पर निर्भरता सबसे बड़ी चुनौती है।
- चीन पर निर्भरता: 99.2 बिलियन डॉलर का घाटा, खासकर इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स, सोलर पैनल और केमिकल्स में।
- ऊर्जा आयात: 100 बिलियन डॉलर से अधिक का तेल और गैस आयात।
- वैश्विक माहौल: अमेरिकी नीतिगत बदलाव, ब्याज दरें, और भू-राजनीतिक तनाव।
मेरे विचार में, यदि इस असंतुलन को नहीं सुधारा गया तो मजबूत भंडार भी धीरे-धीरे दबाव में आ सकते हैं।
5. सरकार और RBI की रणनीतियां
भारत ने कई नीतियों के ज़रिए इस संतुलन को बनाए रखने की कोशिश की है:
- PLI स्कीम: इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा और फार्मा में आयात निर्भरता कम करने के लिए।
- आत्मनिर्भर भारत: रक्षा, टेक्नोलॉजी और ऊर्जा में घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर जोर।
- मुक्त व्यापार समझौते (FTA): यूएई, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ, जिससे निर्यात को बढ़ावा मिल सके।
- FDI आकर्षण: 2025 में 50 बिलियन डॉलर से अधिक का प्रत्यक्ष निवेश।
- RBI का सक्रिय हस्तक्षेप: रुपये को स्थिर रखना, विदेशी पूंजी प्रवाह को नियंत्रित करना।
यह सभी कदम सही दिशा में हैं। लेकिन मेरी राय में “आत्मनिर्भरता” और “वैश्विक व्यापार एकीकरण” के बीच संतुलन बनाना सबसे बड़ी चुनौती है।
6. भविष्य की राह – मेरी राय
भारत के सामने अगले 5 सालों में तीन बड़े लक्ष्य हैं:
- निर्यात-प्रधान वृद्धि: केवल घरेलू उत्पादन बढ़ाना काफी नहीं; हमें वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी हिस्सेदारी बढ़ानी होगी।
- ऊर्जा आयात पर निर्भरता कम करना: हरित ऊर्जा, बैटरी स्टोरेज और घरेलू तेल-गैस उत्पादन बढ़ाना।
- कर्ज प्रबंधन: विदेशी कर्ज को दीर्घकालिक और सस्ते स्रोतों से लेना, ताकि भुगतान दबाव कम हो।
अगर भारत यह सब कर पाता है तो 2027 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना संभव है।
7. अंतरराष्ट्रीय संदर्भ
- UNCTAD के अनुसार 2025 में वैश्विक व्यापार वृद्धि केवल 2.5% रहने का अनुमान है।
- मैकिंसे रिपोर्ट कहती है कि 2030 तक “चीन+1” रणनीति से भारत को 0.8–1.2 ट्रिलियन डॉलर का लाभ मिल सकता है।
- भू-राजनीतिक तनाव: अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध, रूस-यूक्रेन संघर्ष और मध्य-पूर्व की अस्थिरता वैश्विक पूंजी प्रवाह को प्रभावित कर सकते हैं।
मेरी राय है कि भारत को इन अनिश्चितताओं के बीच अपनी स्थिति को “सुरक्षित लेकिन लचीली” बनाना होगा।
8. सामाजिक व नैतिक आयाम
विदेशी कर्ज और भंडार सिर्फ आर्थिक आंकड़े नहीं हैं; इनका असर समाज और नीति पर भी पड़ता है:
- रोज़गार: निर्यात बढ़ने से रोज़गार सृजन होता है।
- मूल्य स्थिरता: मजबूत भंडार से रुपये की स्थिरता बनी रहती है, जिससे महंगाई कम होती है।
- नैतिक जिम्मेदारी: आने वाली पीढ़ियों पर कर्ज का बोझ न डाला जाए, इसके लिए सतर्क कर्ज नीति जरूरी है।
9. निष्कर्ष: संतुलन ही शक्ति
2025 में भारत की बाहरी वित्तीय स्थिति मजबूती और सावधानी की कहानी कहती है। विदेशी मुद्रा भंडार विदेशी कर्ज को कवर करते हैं, लेकिन व्यापार घाटा और कर्ज सेवा लागत रणनीतिक पुनरावलोकन की मांग करते हैं।
मेरी राय में भारत को अब “सेफ्टी नेट” से आगे बढ़कर “स्ट्रैटेजिक नेट” बनाना होगा – यानी भंडार का इस्तेमाल निर्यात को बढ़ाने, घरेलू निवेश को आकर्षित करने और संरचनात्मक सुधारों के लिए करना चाहिए। अगर नीति निर्माताओं ने निर्यात-प्रधान वृद्धि, आयात प्रतिस्थापन और गहरे व्यापारिक साझेदारियों पर ध्यान दिया तो भारत आने वाले दशक में वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने के लक्ष्य के और करीब होगा।
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