भारत–मॉरीशस संबंध: ऐतिहासिक बंधनों से रणनीतिक साझेदारी तक
प्रस्तावना
मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम की हालिया भारत-यात्रा (9–16 सितंबर 2025) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मार्च 2025 मॉरीशस यात्रा ने दोनों देशों के रिश्तों को एक नई गति दी है। सांस्कृतिक-ऐतिहासिक समानताओं पर आधारित यह संबंध अब हिंद महासागर क्षेत्र में एक “उन्नत रणनीतिक साझेदारी” का रूप ले चुका है। यह बदलाव न केवल द्विपक्षीय सहयोग को गहरा करता है, बल्कि वैश्विक दक्षिण (Global South) में भारत की बढ़ती भूमिका का भी संकेत है।
ऐतिहासिक जुड़ाव की विरासत
दोनों देशों के रिश्तों की जड़ें गिरमिटिया श्रमिकों के उस प्रवासन में हैं जिसने मॉरीशस के सामाजिक-सांस्कृतिक तानेबाने को गहराई से प्रभावित किया। आप्रवासी घाट और ‘आप्रवासी दिवस’ इसका प्रतीक हैं। यह ऐतिहासिक पूंजी भारत को मॉरीशस में विशिष्ट नैतिक व सांस्कृतिक वैधता प्रदान करती है, जिसे महात्मा गांधी के 1901 के दौरे और बाद में शिक्षा-सांस्कृतिक संस्थानों की स्थापना ने और सुदृढ़ किया।
रणनीतिक सहयोग का उभार
मॉरीशस अब केवल “छोटा भारत” नहीं, बल्कि हिंद महासागर में भारत की सागरीय सुरक्षा संरचना का एक अभिन्न अंग बन चुका है। मॉरीशस को भारत की तटीय निगरानी रडार प्रणाली (CSR) में जोड़ा जाना, विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में संयुक्त गश्त और MAHASAGAR नीति जैसी पहलें इस तथ्य को पुष्ट करती हैं। चीनी निवेश के बढ़ते प्रभाव के बीच मॉरीशस में भारत की यह सक्रियता सामरिक संतुलन के लिए आवश्यक है।
आर्थिक परिप्रेक्ष्य: FDI से स्थानीय मुद्रा निपटान तक
मॉरीशस लंबे समय से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का सबसे बड़ा स्रोत रहा है। हालांकि Double Taxation Avoidance Agreement-DTAA (दोहरा कराधान परिहार समझौता) संशोधनों के बाद प्रवाह कुछ कम हुआ, मार्च 2025 में दोनों देशों के बीच स्थानीय मुद्रा में व्यापार निपटान की सहमति एक गेम-चेंजर कदम है। संसद भवन, जल पाइपलाइन और इलेक्ट्रिक बसें जैसी परियोजनाओं में भारत की सहायता मॉरीशस के अवसंरचनात्मक परिवर्तन की दिशा तय कर रही है।
People-to-People और सांस्कृतिक रिश्तों की गहराई
भारतीय मूल की लगभग 68% आबादी के कारण मॉरीशस में भारत के प्रति गहरी आत्मीयता है। महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट, वर्ल्ड हिंदी सचिवालय, इंडियन कल्चरल सेंटर और OCI प्रावधान इन रिश्तों को संस्थागत रूप देते हैं। प्रधानमंत्री रामगुलाम की अयोध्या और वाराणसी यात्रा ने इस जुड़ाव को नया सांस्कृतिक आयाम दिया है।
चुनौतियाँ: सामरिक व पर्यावरणीय
चीन के बढ़ते निवेश, नशीली द्रव्य तस्करी और हिंद महासागर में उभरते भू-राजनीतिक तनाव भारत–मॉरीशस साझेदारी की स्थिरता के लिए चुनौती हैं। साथ ही समुद्र-स्तर वृद्धि और चक्रवात जैसे पर्यावरणीय खतरे छोटे द्वीपीय राष्ट्रों के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं। भारत की जलवायु-वित्त और आपदा प्रबंधन विशेषज्ञता मॉरीशस के लिए एक सहारा बन सकती है।
UPSC दृष्टिकोण
- GS Paper-II (International Relations): भारत की इंडो-पैसिफिक रणनीति, SAGAR और MAHASAGAR नीतियों में मॉरीशस की भूमिका।
- GS Paper-III (Economy & Security): CECPA, स्थानीय मुद्रा में व्यापार निपटान, समुद्री सुरक्षा और EEZ संरक्षण।
- Essay & Ethics: प्रवासी भारतीयों की भूमिका, सांस्कृतिक कूटनीति, वैश्विक दक्षिण सहयोग।
निष्कर्ष
भारत–मॉरीशस संबंध आज एक ऐसे मुकाम पर हैं जहाँ ऐतिहासिक भावनाएँ और समकालीन रणनीतिक हित एक दूसरे को सुदृढ़ कर रहे हैं। यदि इस साझेदारी को सतत विकास, पारदर्शी निवेश, पर्यावरण सुरक्षा और बहुपक्षीय सहयोग की दिशा में आगे बढ़ाया जाए, तो यह हिंद महासागर क्षेत्र में शांति और समृद्धि का स्थायी मॉडल बन सकता है।
Comments
Post a Comment