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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Gen-Z Protests and Foreign Conspiracy: A Balanced Analysis

‘जेन जी’ विद्रोह और अंतर्राष्ट्रीय साज़िश: एक संतुलित विश्लेषण

प्रस्तावना

पिछले कुछ समय से नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे दक्षिण एशियाई देशों में “जेन जी” आंदोलनों ने सुर्खियाँ बटोरी हैं। इन आंदोलनों को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं—क्या यह युवाओं का स्वाभाविक असंतोष है, या इसके पीछे कोई अंतरराष्ट्रीय साज़िश काम कर रही है? भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों में यह चर्चा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि यहाँ युवा शक्ति देश का भविष्य है। यह लेख इन आंदोलनों के पीछे के कारणों—आंतरिक और बाहरी—का विश्लेषण करता है और नीतिगत समाधान सुझाता है, जो UPSC जैसे दृष्टिकोण से भी प्रासंगिक है।

भू-राजनीतिक संदर्भ: वैश्विक खेल का मैदान

दक्षिण एशिया के देश, खासकर भारत और नेपाल, हमेशा से वैश्विक शक्तियों के लिए रुचि का केंद्र रहे हैं। शीत युद्ध से लेकर डिजिटल युग तक, विदेशी ताकतें इन देशों की राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश करती रही हैं। आज सोशल मीडिया, फर्जी खबरें और साइबर प्रचार ने इस खेल को और आसान बना दिया है। एक गलत सूचना या वायरल वीडियो लाखों लोगों का ध्यान खींच सकता है और सरकारों पर दबाव बना सकता है। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि क्या “जेन जी” आंदोलन पूरी तरह स्थानीय हैं, या इनके तार बाहर से जुड़े हैं?

“जेन जी” विद्रोह की खासियतें

  1. युवाओं की ताकत: इन आंदोलनों में 18–25 साल के नौजवान सबसे आगे हैं। यह पीढ़ी नई सोच, जोश और तकनीक से लैस है।
  2. डिजिटल ताकत: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे ट्विटर, इंस्टाग्राम और टिकटॉक इन आंदोलनों को तेजी से फैलाते हैं। एक हैशटैग रातोंरात लाखों लोगों को जोड़ सकता है।
  3. वैश्विक मुद्दों का स्थानीय रंग: जलवायु परिवर्तन, मानवाधिकार या बराबरी जैसे वैश्विक मुद्दों को स्थानीय समस्याओं से जोड़कर आंदोलन को बल मिलता है।

अंतरराष्ट्रीय साज़िश: कितनी हकीकत, कितना भ्रम?

क्या इन आंदोलनों के पीछे कोई विदेशी साज़िश है? यह सवाल इसलिए उठता है, क्योंकि:

  • सोशल मीडिया अभियान: विदेशी ताकतें फर्जी अकाउंट्स या ट्रोल्स के जरिए जनमत को भड़का सकती हैं।
  • फंडिंग का खेल: कुछ संगठन या एजेंसियाँ गुप्त रूप से आंदोलनों को पैसा दे सकती हैं।
  • प्रचार तंत्र: वैश्विक मीडिया और एनजीओ कभी-कभी किसी देश की छवि को नुकसान पहुँचाने के लिए कहानियाँ गढ़ते हैं।

भारत और नेपाल जैसे लोकतंत्रों में यह आसान है, क्योंकि यहाँ अभिव्यक्ति की आजादी है। लेकिन इसे बढ़ा-चढ़ाकर देखना भी ठीक नहीं। अगर हम हर आंदोलन को साज़िश कहेंगे, तो असली समस्याओं को नजरअंदाज कर देंगे।

घरेलू कारण: युवाओं का असंतोष

“जेन जी” का गुस्सा सिर्फ विदेशी साज़िश का नतीजा नहीं है। इसके पीछे कई वास्तविक कारण हैं:

  • बेरोजगारी: लाखों पढ़े-लिखे युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही।
  • महंगाई: बढ़ती कीमतें और कम आय युवाओं को निराश करती हैं।
  • शिक्षा की गुणवत्ता: डिग्री तो मिल रही है, लेकिन नौकरी के लिए जरूरी स्किल्स नहीं।
  • पारदर्शिता की कमी: भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी से युवा हताश हैं।

लोकतंत्र में युवा सरकार से बेहतर अवसर और पारदर्शिता की उम्मीद करते हैं। अगर ये न मिले, तो उनका गुस्सा सड़कों पर उतरता है।

UPSC दृष्टिकोण: क्यों जरूरी है यह चर्चा?

  1. आंतरिक सुरक्षा: गृह मंत्रालय को यह समझना होगा कि आंदोलन कितना स्वाभाविक है और कितना बाहरी ताकतों से प्रेरित। इससे देश की स्थिरता को खतरा हो सकता है।
  2. विदेश नीति: विदेश मंत्रालय को वैश्विक मंच पर भारत की लोकतांत्रिक छवि को मजबूत करना होगा और दुष्प्रचार का जवाब देना होगा।
  3. युवा नीतियाँ: अगर युवाओं की समस्याओं का समाधान हो, तो विदेशी ताकतों के लिए असंतोष भड़काना मुश्किल होगा।
  4. साइबर सुरक्षा: फर्जी खबरों और साइबर प्रचार को रोकने के लिए मजबूत नीतियाँ चाहिए।

दुनिया से सबक

  • अरब स्प्रिंग (2010–12): सोशल मीडिया ने मिस्र, ट्यूनीशिया जैसे देशों में सरकारें बदल दीं, लेकिन बाद में अस्थिरता बढ़ी।
  • हांगकांग विरोध (2019–20): डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने आंदोलन को वैश्विक मंच पर पहुँचाया, लेकिन विदेशी हस्तक्षेप की बातें भी सामने आईं।
  • श्रीलंका का आंदोलन (2022): महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ युवाओं ने सड़कों पर उतरकर सरकार को मजबूर किया।

ये उदाहरण बताते हैं कि जब स्थानीय समस्याएँ गहरी हों, तो बाहरी ताकतें मौके का फायदा उठा सकती हैं।

नीतिगत सुझाव: रास्ता क्या है?

  1. युवाओं के लिए अवसर: रोजगार और स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम्स को बढ़ावा देना होगा। स्टार्टअप और तकनीकी शिक्षा पर जोर देना जरूरी है।
  2. सोशल मीडिया पर नजर: फर्जी खबरों और विदेशी प्रचार को रोकने के लिए साइबर सुरक्षा को मजबूत करना होगा।
  3. खुला संवाद: सरकार और युवाओं के बीच नियमित बातचीत हो, ताकि उनकी शिकायतें सुनी जाएँ और समाधान निकलें।
  4. कूटनीतिक कदम: भारत को वैश्विक मंचों पर अपनी लोकतांत्रिक ताकत और युवा नीतियों को जोर-शोर से पेश करना चाहिए।
  5. असहमति को समझना: विरोध को देशद्रोह समझने की बजाय, इसे नीति सुधार का मौका मानना चाहिए।

निष्कर्ष: संतुलन ही समाधान

“जेन जी” आंदोलन को सिर्फ साज़िश कहकर खारिज करना ठीक नहीं। यह सच है कि विदेशी ताकतें मौके तलाशती हैं, लेकिन उनकी कामयाबी तभी होती है, जब स्थानीय समस्याएँ गहरी हों। भारत जैसे जीवंत लोकतंत्र को चाहिए कि:

  • एक तरफ साइबर सुरक्षा और कूटनीति को मजबूत करे।
  • दूसरी तरफ युवाओं को रोजगार, शिक्षा और संवाद का माहौल दे।

लोकतंत्र की ताकत असहमति को सुनने और उससे सीखने में है। अगर भारत इस संतुलन को बनाए रखे, तो न केवल “जेन जी” का जोश सही दिशा में जाएगा, बल्कि देश की सुरक्षा और प्रगति भी सुनिश्चित होगी।


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