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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Delhi High Court Verdict on Aishwarya Rai Bachchan Case – A Milestone for Personality Rights

दिल्ली हाई कोर्ट का ऐश्वर्या राय बच्चन मामले में फैसला: व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा में एक मील का पत्थर

प्रस्तावना

दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में बॉलीवुड अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन के व्यक्तित्व अधिकारों (Personality Rights) के अनधिकृत व्यावसायिक और ऑनलाइन शोषण के खिलाफ महत्वपूर्ण और दूरगामी असर वाले दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यह फैसला केवल एक सेलिब्रिटी के कानूनी अधिकार की सुरक्षा तक सीमित नहीं है; यह डिजिटल युग में निजता, गरिमा, और व्यक्तिगत पहचान की रक्षा की दिशा में भारतीय न्यायपालिका का सक्रिय रुख दर्शाता है।
यूपीएससी के दृष्टिकोण से यह मामला संवैधानिक अधिकार, साइबर गवर्नेंस, बौद्धिक संपदा, और सामाजिक-आर्थिक न्याय—इन चार आयामों का संगम है।


1. संवैधानिक और कानूनी परिप्रेक्ष्य

  • अनुच्छेद 21 : जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देता है। पुट्टस्वामी (2017) के ऐतिहासिक फैसले ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी।
  • व्यक्तित्व अधिकार: व्यक्ति के नाम, छवि, आवाज और अन्य विशिष्ट पहचान के अनधिकृत उपयोग को रोकने का अधिकार।
  • विद्यमान ढांचा:
    • कॉपीराइट अधिनियम, 1957
    • ट्रेड मार्क अधिनियम, 1999
    • आईटी अधिनियम, 2000
    • डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 (DPDP)
      हालांकि, व्यक्तित्व अधिकारों के लिए समर्पित और स्पष्ट कानून अभी भी अनुपस्थित है, जिससे अदालतों को न्यायिक सक्रियता के माध्यम से संतुलन बनाना पड़ता है।

यूपीएससी के अभ्यर्थियों के लिए यह समझना ज़रूरी है कि यह मामला न्यायिक सक्रियता बनाम विधायी पहल की बहस को भी सामने लाता है।


2. डिजिटल युग की नई चुनौतियां

  • डीपफेक और फोटोशॉप : तकनीकी प्रगति के कारण किसी भी व्यक्ति की आवाज़, चेहरा और भाव-भंगिमा को बदलना आसान।
  • अनधिकृत विज्ञापन व प्रमोशन: मशहूर हस्तियों की छवियों का उपयोग ब्रांड वैल्यू बनाने के लिए बिना अनुमति के।
  • सामान्य नागरिक भी प्रभावित: साइबर बुलिंग, फिशिंग और कैरेक्टर असैसिनेशन के खतरे।

ऐश्वर्या राय बच्चन के मामले ने यह दर्शाया कि ब्रांड वैल्यू + निजता + गरिमा—तीनों का अटूट संबंध है। यह केवल मशहूर हस्तियों के लिए नहीं, बल्कि डिजिटल युग में हर नागरिक के लिए जोखिम को इंगित करता है।


3. सामाजिक-आर्थिक और नैतिक आयाम

  • आर्थिक पहलू : भारतीय विज्ञापन उद्योग का मूल्य 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक (FICCI-EY 2024 रिपोर्ट)। इस उद्योग में छवि और प्रतिष्ठा की केंद्रीय भूमिका है।
  • सामाजिक न्याय : व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा केवल “प्रिविलेज्ड” तक सीमित न रहकर सभी नागरिकों के लिए सुलभ हो।
  • नैतिक विमर्श : तकनीक का जिम्मेदार उपयोग, कंपनियों के लिए नैतिक विज्ञापन मानदंड और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही।

4. तुलनात्मक और वैश्विक दृष्टिकोण

  • संयुक्त राज्य अमेरिका : “Right to Publicity” कानून; मशहूर हस्तियों के नाम और छवि के व्यावसायिक उपयोग पर स्पष्ट अधिकार।
  • यूरोपीय संघ : GDPR (जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन) व्यक्तिगत डेटा व पहचान की रक्षा के लिए।
  • भारत : अद्यतन डेटा प्रोटेक्शन और साइबर कानूनों के बावजूद व्यक्तित्व अधिकारों के लिए समर्पित अधिनियम नहीं।

यूपीएससी के अभ्यर्थियों के लिए यह एक तुलनात्मक अध्ययन का अवसर है, जिससे वे देख सकें कि भारत में किस तरह के कानूनी सुधार लाए जा सकते हैं।


5. नीतिगत विकल्प और भविष्य की दिशा

  • समर्पित व्यक्तित्व अधिकार कानून : जो कॉपीराइट/ट्रेडमार्क और निजता के अधिकारों के बीच सेतु का काम करे।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही : रियल-टाइम शिकायत निवारण और त्वरित टेकेडाउन तंत्र।
  • जागरूकता अभियान : आम नागरिकों को व्यक्तित्व अधिकारों के बारे में जानकारी देना।
  • स्वनियमन + सहनियमन : विज्ञापन और मीडिया उद्योग को एथिकल कोड अपनाना।

यह नीति-निर्माताओं के लिए एक “विंडो ऑफ अपॉर्चुनिटी” है—तकनीकी उन्नति के साथ-साथ कानूनी सुरक्षा को मजबूत करने की।


6. यूपीएससी के लिए मुख्य सीख

  • GS Paper II (संविधान व शासन) : निजता, मौलिक अधिकार और न्यायिक सक्रियता।
  • GS Paper III (टेक्नोलॉजी व साइबर सुरक्षा) : डीपफेक, डेटा प्रोटेक्शन, डिजिटल गवर्नेंस।
  • निबंध/केस स्टडीज़ : व्यक्तित्व अधिकारों के सामाजिक व नैतिक आयाम।
  • सामाजिक न्याय और नीति विश्लेषण : अभिजात और सामान्य नागरिक के बीच डिजिटल अधिकारों का अंतर।

निष्कर्ष

दिल्ली हाई कोर्ट का यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका की प्रगतिशील सोच का उदाहरण है। यह केवल मशहूर हस्तियों को नहीं बल्कि हर नागरिक को डिजिटल युग में अपनी पहचान और गरिमा की रक्षा के लिए न्यायिक सहारा देता है।
यह फैसला निजता बनाम व्यावसायिक हित के बीच संतुलन खोजने की दिशा में एक नई शुरुआत है।

नीति-निर्माताओं को चाहिए कि वे इस अवसर का लाभ उठाकर व्यक्तित्व अधिकारों के लिए स्पष्ट और सशक्त कानूनी ढांचा तैयार करें, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को जवाबदेह बनाएं और जागरूकता बढ़ाएं।
यूपीएससी अभ्यर्थियों के लिए यह एक आदर्श केस-स्टडी है, जो दिखाती है कि कैसे संविधान, टेक्नोलॉजी और समाज के बीच संतुलन स्थापित किया जा सकता है।




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