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Supreme Court Reconsiders RTE Act Exemption for Minority Institutions: Key Insights and Implications

RTE Act और अल्पसंख्यक संस्थान: सुप्रीम कोर्ट की पुनर्विचार पहल प्रस्तावना भारत का संविधान शिक्षा को न केवल एक अधिकार, बल्कि हर बच्चे के भविष्य को संवारने का आधार मानता है। अनुच्छेद 21A के तहत 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया है। इसी दिशा में 2009 में लागू Right to Education (RTE) Act एक क्रांतिकारी कदम था, जिसने निजी और सरकारी स्कूलों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) और वंचित बच्चों के लिए 25% सीटें आरक्षित करने का दायित्व सौंपा। लेकिन 2014 में सुप्रीम कोर्ट के प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम भारत संघ (Pramati, 2014) फैसले ने अल्पसंख्यक संस्थानों को RTE के दायरे से पूरी तरह बाहर कर दिया। यह निर्णय अल्पसंख्यक समुदायों की स्वायत्तता की रक्षा तो करता था, लेकिन शिक्षा के समान अवसर के सिद्धांत पर सवाल भी उठाता था। अब, 1 सितंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर पुनर्विचार का फैसला किया है और इसे एक बड़ी पीठ (Larger Bench) को सौंपा है। यह कदम शिक्षा और अल्पसंख्यक अधिकारों के बीच संतुलन की नई बहस को जन्म देता है। पृष्ठभूमि: संवैधानिक...

Ayushi Verma: A Story of Perseverance and Patriotism

 सपनों को पंख: रीवा की आयुषी वर्मा से सीखें जज़्बे की कहानी


रीवा (मध्य प्रदेश) की आयुषी वर्मा की सफलता केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह उस सामाजिक परिवर्तन और प्रेरणा का प्रतीक है जो भारत के युवा वर्ग में नई ऊर्जा का संचार करती है। UPSC CDS परीक्षा में ऑल इंडिया 24वीं रैंक और टेक्निकल एंट्री में प्रथम स्थान प्राप्त कर भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के रूप में चयनित होना, यह दर्शाता है कि कठिन परिश्रम और स्पष्ट दृष्टि से कोई भी सपना साकार किया जा सकता है।


सपनों की नींव और प्रेरणा

रीवा की गलियों में पली-बढ़ी आयुषी ने बचपन में ही वायुसेना की पायलट अवनी चतुर्वेदी का पोस्टर देखा था। उस क्षण उनके मन में यह संकल्प जन्मा कि “मैं भी राष्ट्र की सेवा वर्दी पहनकर करूंगी।” यही संकल्प समय के साथ उनके जीवन का लक्ष्य बन गया।


संघर्ष और अनुशासन का मार्ग

आयुषी की यात्रा हमें यह सिखाती है कि सफलता संयोग नहीं, बल्कि सतत प्रयासों का परिणाम है।

  • इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान उन्होंने सामान्य ज्ञान, समसामयिकी और शारीरिक फिटनेस को बराबर प्राथमिकता दी।
  • असफलताओं से विचलित न होकर उन्होंने उन्हें आत्ममंथन और सुधार का अवसर माना।
  • पारिवारिक प्रोत्साहन ने उनके आत्मविश्वास को और मजबूत किया।

सामाजिक और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

UPSC जैसे कठिनतम परीक्षा तंत्र में उनकी सफलता यह संदेश देती है कि भारत के छोटे कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों से भी प्रतिभा राष्ट्रीय सेवा में अग्रसर हो सकती है।

  • यह उपलब्धि महिलाओं की भागीदारी को सशक्त करती है और लैंगिक समानता की दिशा में ठोस उदाहरण प्रस्तुत करती है।
  • यह कहानी युवाओं के बीच राष्ट्रवाद और सार्वजनिक सेवा की भावना को प्रोत्साहित करती है।

UPSC अभ्यर्थियों के लिए सबक

  1. सपनों को स्पष्ट लक्ष्य में बदलें – आयुषी ने अपने बचपन के सपने को ठोस तैयारी में ढाला।
  2. अनुशासन और निरंतरता – सफलता की कुंजी केवल प्रतिभा नहीं, बल्कि लगातार परिश्रम है।
  3. असफलता से सीखना – हर असफल प्रयास ने उन्हें और मजबूत बनाया।
  4. राष्ट्रीय दृष्टिकोण – उनकी कहानी हमें याद दिलाती है कि UPSC तैयारी केवल करियर नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का साधन है।

निष्कर्ष

आयुषी वर्मा की यात्रा एक साधारण लड़की से भारतीय सेना की लेफ्टिनेंट बनने तक की है—जो हर उस विद्यार्थी के लिए प्रेरणा है, जो UPSC अथवा अन्य कठिन परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है। यह केवल व्यक्तिगत सफलता नहीं, बल्कि सामाजिक उत्थान और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है।

👉 युवाओं के लिए संदेश: सपने देखने का साहस कीजिए, उन्हें साधने के लिए अनुशासन अपनाइए, और राष्ट्रसेवा को अपने जीवन का ध्येय बनाइए।



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