Skip to main content

MENU👈

Show more

Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Afghanistan Crisis 2025: Taliban Rule, Climate Change, and Internet Blackout Challenges

अफगानिस्तान में गहराता संकट: वैश्विक समुदाय के लिए चेतावनी

अफगानिस्तान आज एक अभूतपूर्व संकट के दौर से गुजर रहा है, जहां तालिबान का कट्टरपंथी शासन, जलवायु परिवर्तन, डिजिटल अलगाव और आर्थिक पतन ने मिलकर देश को तबाही के कगार पर ला खड़ा किया है। यह संकट केवल अफगान नागरिकों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक समुदाय के लिए एक गंभीर चेतावनी है कि यदि तत्काल और समन्वित कार्रवाई नहीं की गई, तो इसके परिणाम क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं।

मानवाधिकारों पर हमला और डिजिटल दमन

2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद से अफगानिस्तान में मानवाधिकारों का व्यवस्थित उल्लंघन हो रहा है। महिलाओं और लड़कियों पर लगाए गए कठोर प्रतिबंध—जैसे माध्यमिक और उच्च शिक्षा पर रोक, रोजगार और आवागमन की स्वतंत्रता पर पाबंदी, और सार्वजनिक स्थानों पर चेहरा ढकने का आदेश—ने समाज को दशकों पीछे धकेल दिया है। तालिबान का नया कानून, जो "सदाचार की प्रोत्साहन और व्यभिचार की रोकथाम" के नाम पर महिलाओं की आवाज को सार्वजनिक रूप से दबाता है, लैंगिक भेदभाव का एक क्रूर उदाहरण है। पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और पूर्व सरकारी कर्मियों की मनमानी गिरफ्तारियां, यातनाएं और हत्याएं इस दमन को और गहरा रही हैं।

हाल ही में हुए इंटरनेट ब्लैकआउट ने तालिबान की नियंत्रणवादी नीतियों को और उजागर किया है। नेटब्लॉक्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह ब्लैकआउट चरणबद्ध तरीके से लागू किया गया, जिसने टेलीफोन सेवाओं को भी प्रभावित किया। यह कदम न केवल सूचना के प्रवाह को रोकता है, बल्कि कार्यकर्ताओं और नागरिकों को वैश्विक समुदाय से अलग करता है, जिससे उनकी आवाज दब जाती है। यह डिजिटल दमन तालिबान की उस रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है, जो विरोध को कुचलने और अपने शासन को मजबूत करने के लिए बनाई गई है।

जलवायु परिवर्तन और जल संकट

जलवायु परिवर्तन ने अफगानिस्तान की पहले से ही नाजुक स्थिति को और जटिल बना दिया है। काबुल, जो अब एशिया के सबसे जल-तनावग्रस्त शहरों में से एक है, पानी की भयावह कमी से जूझ रहा है। अनियमित वर्षा और लंबे सूखे ने नदियों और भूजल को सूखा दिया है, जिससे खेती, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ा है। जलजनित बीमारियां और कुपोषण बढ़ रहे हैं, खासकर बच्चों और महिलाओं में। पानी की तलाश में लंबी दूरी तय करने के कारण बच्चों, विशेष रूप से लड़कियों, की शिक्षा बाधित हो रही है, जिससे स्कूल छोड़ने की दर बढ़ रही है। सहायता एजेंसियां इस संकट से निपटने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन तालिबान की नीतियां और सुरक्षा चुनौतियां उनके प्रयासों को सीमित कर रही हैं।

मानवीय और आर्थिक आपदा

अफगानिस्तान की 4 करोड़ की आबादी में से 23.7 मिलियन लोग मानवीय सहायता पर निर्भर हैं। 12.4 मिलियन लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, और 2.9 मिलियन लोग भुखमरी के कगार पर हैं। तालिबान के सत्ता में आने के बाद अर्थव्यवस्था में एक-तिहाई की गिरावट आई है, जिसने बेरोजगारी और गरीबी को बढ़ा दिया है। पाकिस्तान से 6.65 लाख से अधिक शरणार्थियों की जबरन वापसी ने इस संकट को और गहरा कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय सहायता में कमी, विशेष रूप से अमेरिकी फंडिंग में कटौती, ने खाद्य और स्वास्थ्य सेवाओं को और कमजोर किया है। संयुक्त राष्ट्र की 2025 की मानवीय योजना को केवल 31% फंडिंग मिली है, जो इस संकट की गंभीरता को दर्शाता है।

वैश्विक समुदाय की जिम्मेदारी

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया अब तक अपर्याप्त रही है। कोई भी देश तालिबान को औपचारिक मान्यता नहीं दे रहा है, और अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) ने तालिबान नेताओं के खिलाफ लिंग-आधारित उत्पीड़न के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं। जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और नीदरलैंड ने तालिबान को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में लाने की प्रक्रिया शुरू की है। फिर भी, प्रतिबंधों और तालिबान की नीतियों ने सहायता वितरण को जटिल बना दिया है। वैश्विक समुदाय को मानवीय सहायता बढ़ाने, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए टिकाऊ समाधानों को बढ़ावा देने और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए तालिबान पर दबाव बनाने की जरूरत है।

आगे की राह

अफगानिस्तान का संकट एक जटिल चुनौती है, जिसके समाधान के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। तालिबान के साथ रचनात्मक संवाद, मानवीय सहायता में वृद्धि, और जल प्रबंधन जैसे टिकाऊ उपाय इस संकट को कम कर सकते हैं। साथ ही, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए, ताकि महिलाएं और बच्चे इस संकट से सबसे अधिक प्रभावित न हों। अफगानिस्तान के लोग दशकों से युद्ध, अस्थिरता और अब पर्यावरणीय संकट का सामना कर रहे हैं। वैश्विक समुदाय को अब एकजुट होकर इस मानवीय त्रासदी को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

स्रोत:

1. वाशिंगटन पोस्ट

2. रॉयटर्स

3. संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA) और अन्य मानवाधिकार रिपोर्ट्स

4. अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) और अन्य अंतरराष्ट्रीय समाचार स्रोत

5. संयुक्त राष्ट्र मानवीय आवश्यकताएं और प्रतिक्रिया योजना, 2025

यह संपादकीय अफगानिस्तान के संकट की गंभीरता को रेखांकित करता है और वैश्विक समुदाय से तत्काल कार्रवाई की मांग करता है।

Comments

Advertisement

POPULAR POSTS