भारत ने रूस व्यापार पर नाटो प्रमुख की चेतावनी को करारा जवाब दिया
विश्लेषणात्मक सम्पादकीय लेख | UPSC GS Paper 2/Essay दृष्टिकोण
भूमिका:
भारत ने हाल ही में रूस के साथ अपने व्यापारिक संबंधों पर नाटो (NATO) महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग की टिप्पणियों को 'पाखंडपूर्ण' और 'दोहरे मानदंडों' का परिचायक बताते हुए कड़ी प्रतिक्रिया दी है। यह प्रकरण न केवल अंतरराष्ट्रीय राजनीति में शक्ति-संतुलन के बदलते स्वरूप को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक उत्तर-दक्षिण संबंधों में बढ़ती असहमति और एशियाई शक्तियों के उभार की भी पुष्टि करता है।
विवाद की पृष्ठभूमि:
नाटो महासचिव ने एक बयान में कहा था कि भारत जैसे देशों को रूस के साथ अपने घनिष्ठ आर्थिक संबंधों पर पुनर्विचार करना चाहिए, विशेषकर तब जब रूस यूक्रेन के खिलाफ युद्धरत है। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से चेतावनी दी थी कि रूस के साथ व्यापार करना यूक्रेन में युद्ध को "लंबा खींचने" में मदद कर रहा है।
भारत ने इस बयान को स्पष्ट रूप से खारिज करते हुए कहा कि यह "दोहरे मानकों और भूराजनैतिक स्वार्थों" से प्रेरित है। भारत ने इस बात को भी रेखांकित किया कि यूरोपीय देश अब भी रूस से गैस व उर्वरक का आयात कर रहे हैं, जबकि भारत पर नैतिकता की दुहाई दी जा रही है।
भारत का दृष्टिकोण: संप्रभु निर्णय और रणनीतिक स्वायत्तता
भारत ने स्पष्ट किया है कि वह "रणनीतिक स्वायत्तता" की नीति का पालन करता है, और अपनी विदेश नीति को किसी बाहरी दबाव या पश्चिमी विमर्श के अनुसार नहीं ढालता।
- भारत रूस से सस्ती दरों पर तेल आयात कर रहा है, जिससे घरेलू मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिली है।
- भारत ने यूक्रेन युद्ध पर संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है – युद्धविराम और संवाद की वकालत करते हुए रूस से अपने रिश्ते भी नहीं तोड़े।
- संयुक्त राष्ट्र में भी भारत ने 'रूसी निंदा प्रस्तावों' पर मतदान से परहेज करते हुए मध्यस्थ की भूमिका निभाने की कोशिश की है।
नाटो की भूमिका और आलोचना:
नाटो प्रमुख की टिप्पणी पश्चिमी देशों की उस प्रवृत्ति को उजागर करती है, जिसमें वे अपने हितों के अनुरूप नियमों की व्याख्या करते हैं।
- पश्चिमी यूरोप अभी भी रूस से एलएनजी और अन्य संसाधनों का आयात कर रहा है।
- अमेरिका ने भी अपने रणनीतिक हितों के तहत रूस के खिलाफ कठोरता और नरमी दोनों दिखाई है।
ऐसे में केवल भारत को 'आलोचना' का लक्ष्य बनाना वैचारिक पाखंड की मिसाल बन जाता है।
भारत की जवाबी रणनीति: वैश्विक दक्षिण की आवाज
भारत का यह रुख केवल आत्म-सुरक्षा नहीं, बल्कि वैश्विक दक्षिण (Global South) की ओर से एक सशक्त उत्तर भी है। भारत यह संकेत देना चाहता है कि:
- "नए विश्व व्यवस्था" में दक्षिणी राष्ट्र अपने निर्णय स्वयं लेंगे।
- भारत की नीति नैतिकता और व्यावहारिकता के संतुलन पर आधारित है।
- कोई भी शक्ति भारत को ‘नैतिक उपदेश’ देकर दबाव नहीं बना सकती, विशेषकर वे राष्ट्र जो स्वयं 'भौगोलिक स्वार्थ' से प्रेरित होकर नीति बनाते हैं।
यूक्रेन शांति वार्ता: भारत की मध्यस्थता भूमिका
भारत ने जी-20 शिखर सम्मेलन से लेकर द्विपक्षीय मंचों पर शांति वार्ता को प्राथमिकता दी है। भारत का यह रुख स्पष्ट करता है कि वह न तो युद्ध को बढ़ावा देता है और न ही किसी एक पक्ष की कठोरता को नैतिक आधार देता है। भारत की यह संतुलित कूटनीति आज बहुध्रुवीय विश्व की आवश्यकता बन गई है।
निष्कर्ष:
भारत और नाटो के बीच यह बयानबाज़ी वैश्विक कूटनीति के बदलते समीकरणों का संकेत है। भारत अब किसी भी 'पश्चिम केंद्रित आदेश' के आगे झुकने को तैयार नहीं है। नाटो प्रमुख की टिप्पणी से यह स्पष्ट होता है कि पश्चिम अब भी अपनी 'वैश्विक वर्चस्व' की सोच से बाहर नहीं आया है।
भारत का उत्तर वैश्विक दक्षिण की उभरती चेतना, रणनीतिक आत्मनिर्भरता और यथार्थवादी कूटनीति का परिचायक है। आने वाले वर्षों में यह स्पष्ट होता जा रहा है कि भारत केवल 'पालक' नहीं, बल्कि 'निर्धारक' भूमिका में विश्व मंच पर उभरेगा।
UPSC उपयोगिता:
- GS Paper 2: भारत की विदेश नीति, बहुपक्षीय संगठन, वैश्विक दक्षिण
- निबंध: नैतिकता बनाम यथार्थवाद, शक्ति-संतुलन की राजनीति
- समसामयिक मुद्दे: भारत-रूस संबंध, यूक्रेन युद्ध पर भारत का रुख, पश्चिमी नैरेटिव की आलोचना
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